ग्लेशियर हो या इंसान, रिश्ते हों या चट्टान, यूं ही नहीं दरकता कोई। किसी पर इतना दवाब हो जाए कि वह तनाव में आ जाए अथवा उसका पारा इतना गर्म हो जाए कि उसकी नसें इसे झेल न पाएँ, तो वह टूटेगा ही। किसी के नीचे की ज़मीन खिसक जाए, तो भी वह टूट ही जाता है। चमोली में यही हुआ है।
यूं ही नहीं दरकता कोई ग्लेशियर!
- उत्तराखंड
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- 10 Feb, 2021

चमोली या तपोवन-विष्णुगाड ही नहीं, पूरे हिमालय में भूकम्प का ख़तरा इसलिए भी ज़्यादा है कि शेष भू-भाग हिमालय को पाँच सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की रफ़्तार से उत्तर की तरफ धकेल रहा है। इसका मतलब कि हिमालय चलायमान है। हिमालय में हमेशा हलचल होती रहती है।
वर्षों पहले जोशीमठ की पहाड़ियों के भूगर्भ में सोए हुए पानी के स्रोत के साथ भी यही हुआ था। पनबिजली परियोजना सुरंग निर्माण के लिए किए जा रहे बारूदी विस्फोटों ने उसे जगा दिया था। धीरे-धीरे रिसकर जोशीमठ को पानी पिलाने वाला भूगर्भीय हुआ स्रोत अचानक बह निकला था। जोशीमठ में पेयजल का संकट हो गया था। जिस परियोजना ने कुदरत को छेड़ा, कुदरत ने उस तपोवन-विष्णु गाड परियोजना को तबाह कर दिया।