उत्तर प्रदेश में 26 मंत्रियों को पूर्व मंत्री और महज विधायक बना देने के बाद क्या बीजेपी का अगला कदम कुछ विधायकों से इस्तीफा लेने का है? ऐसे विधायकों की संख्या 6 तक हो सकती है। सिर्फ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य वैसे तो अभी विधान परिषद के सदस्य हैं लेकिन भविष्य में उनके भी किसी न किसी विधायक को उनके लिये जगह बनानी पड़ेगी।
उनके अलावा पांच नये मंत्रियों के लिए भी जो किसी सदन के सदस्य नहीं हैं, के लिये भी जगह बनानी होगी। यह काम जोर-ज़बरदस्ती के जरिए नहीं हो सकता, लेकिन प्यार से इस्तीफा लेने का काम भी राजनीति में बगैर दबाव के कहां हो पाता है।
दानिश आज़ाद अंसारी, जसवंत सैनी, दयाशंकर मिश्र दयालु, जेपीएस राठौर और नरेंद्र कश्यप ऐसे नये मंत्री हैं जो न विधायक हैं न विधान पार्षद। बीजेपी के सामने यह चुनौती है और इसका समाधान विधान परिषद में इन मंत्रियों को भेजना हो सकता है या फिर विधानसभा चुनाव में निर्वाचित होना। पहली स्थिति अपने हाथ में नहीं है और दूसरी स्थिति के लिए विधायकों से विधायकी की बलि लेनी होगी।
6 मंत्री किसी सदन के सदस्य नहीं
बीजेपी ने योगी सरकार 2.0 का चेहरा चमकाने के लिए कई फैसले लिए हैं। बगैर किसी सदन का सदस्य रहे पांच लोगों को मंत्री बनाना इनमें से एक ऐसा ही फैसला है। अन्य फैसलों में 26 मंत्रियों को दोबारा अवसर नहीं देना है। हालांकि योगी सरकार 2.0 को चमकाने में 11 मंत्रियों ने चुनाव हारकर अपना योगदान पहले ही दे दिया है।योगी सरकार 2.0 का चेहरा इसलिए भी बदला हुआ महसूस होगा क्योंकि योगी सरकार 1.0 के 36 मंत्री नयी सरकार में नज़र नहीं आएंगे।मंत्रिपरिषद में केवल 38 निर्वाचित विधायक
योगी सरकार 2.0 में 52 मंत्रियों ने शपथ ली है। इनमें से 38 मंत्री निर्वाचित हुए विधायक हैं जबकि 9 विधान परिषद के सदस्य हैं। 5 मंत्री ऐसे हैं जो न विधायक हैं, न ही पार्षद। पिछली योगी सरकार में विस्तार के बाद मंत्रिपरिषद 60 सदस्यों की हो गयी थी, जबकि पहली बार मुख्यमंत्री योगी के मंत्रिपरिषद में 46 सदस्य थे।योगी सरकार 2.0 में कैबिनेट मंत्रियों की संख्या महज 18 रह गयी है। इनमें दोनों डिप्टी सीएम भी शामिल हैं। 14 स्वतंत्र प्रभार और 20 राज्यमंत्री बनाए गये हैं। सबसे ज्यादा ठाकुर जाति से 10 मंत्री हैं। ओबीसी के अंतर्गत आने वाली जातियों के समूह से 12 मंत्री बनाए गये हैं। ब्राह्मण 8, दलित 7, 3 जाट, 3 बनिया, एक सिख और एक मुस्लिम मंत्री बने हैं।
परफॉर्म नहीं कर पाए 26 मंत्री!
जिन मंत्रियों को दोबारा मौका नहीं मिला है उनके परफॉर्मेंस को लेकर ही शंका रही होगी। हालांकि 70 साल से अधिक उम्र का होना भी एक वजह हो सकती है लेकिन यह आधार फिलहाल दिखायी नहीं पड़ता। श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थ नाथ सिंह, नीलकंठ तिवारी जैसे मंत्रियों के लिए स्थानीय स्तर पर भारी विरोध दिखा था। मथुरा, इलाहाबाद और वाराणसी के इन इलाकों में अमित शाह और नरेंद्र मोदी को खुद स्थिति संभालने के लिए उतरना पड़ा था।
बीजेपी ने ऐसी सीटों को चिन्हित कर रखा है जहां बीजेपी उम्मीदवार जीत तो गये हैं लेकिन उसकी वजह पार्टी रही है उम्मीदवार नहीं। ऐसे विधायकों से इस्तीफे लेकर सीटें खाली करायी जा सकती हैं। इसका मतलब यह है कि मंत्री के बाद विधायक स्तर पर भी सफाई अभियान का नया दौर शुरू हो सकता है।
26 पूर्व मंत्रियों में ही खोजे जाएंगे बलि के बकरे!
दोबारा मंत्री नहीं बनाए गये ऐसे 26 विधायकों में से उन 6 विधायकों को चुनना भी बड़ा काम होगा जिनसे विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने को कहा जाए। ऐसे विधायकों के लिए मंत्री पद के साथ-साथ विधायकी से भी हाथ धोने की स्थिति पैदा हो जाएगी। हालांकि विधायक पद से इस्तीफा देना व्यक्तिगत मामला होता है लेकिन बीजेपी ऐसी पार्टी है जहां इस्तीफे के निर्देश की नाफरमानी की जा सके, ऐसी संभावना कम होती है। एक तरफ 26 मंत्रियों को दोबारा मौका न देकर उन्हें निराश किया गया, वही दूसरी तरफ चुनाव हार चुके केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया गया। यहां तक कि एक अन्य डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को भी दोबारा मौका नहीं मिला। दिनेश शर्मा की जगह ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाकर एक ब्राह्मण की जगह दूसरे ब्राह्मण को बिठाया गया है। लेकिन, महिला विधायकों में ऐसे किसी चेहरे को बीजेपी नहीं खोज सकी जो डिप्टी सीएम बन सके।योगी सरकार 2.0 में महिलाओं की अनदेखी
पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के रूप में डिप्टी सीएम पद के लिए एक मजबूत विकल्प जरूर था। लेकिन, अंतिम मुहर नहीं लग सकी। वह जाटव थीं और उनकी मेहनत और प्रभाव से मथुरा और आसपास की सीटें बीजेपी की झोली में आयीं भी। सवाल यह है कि एक महिला को डिप्टी सीएम बनाने के लिए किसी ब्राह्मण की जगह ब्राह्मण को ही डिप्टी सीएम बनाने की अनावश्यक जरूरत को नजरअंदाज क्यों नहीं किया जा सका?
पांच साल ब्राह्मण डिप्टी सीएम रहे, तो अगले साल जाटव महिला भी रह सकती थीं! बेबी प्रसाद मौर्य की कीमत पर केशव प्रसाद मौर्य को रखने की जरूरत क्यों समझी गयी?
अपनी राय बतायें