‘घर’ की कांग्रेस बनाम ‘सब की कांग्रेस’- यह लड़ाई कांग्रेस के भीतर ठानी जा रही है। दिग्गज कांग्रेस नेता, पूर्व मंत्री व वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अंतिम सांस तक ‘घर की कांग्रेस’ से लड़ने की बात कहकर यह जता दिया है कि लड़ाई ठन चुकी है।
गांधी परिवार के लिए जवाबी पलटवार अशोक गहलौत, पवन खेड़ा, मणिकम टैगोर सरीखे नेताओं ने किया है। आगे क्या हो- इस पर कांग्रेस के शुभचिंतकों और विरोधियों सबकी नज़र है।
कपिल सिब्बल जी-23 के प्रमुख नेता हैं जो ऐसा अहसास करा रहे हैं कि वे ‘घर की कांग्रेस’ से बाहर हैं। सवाल यह है कि जिस ‘घर की कांग्रेस’को वे ‘सब की कांग्रेस’ बनाना चाहते हैं उससे बाहर उन्होंने शामियाना क्यों लगा रखा है? सवाल यह भी महत्वपूर्ण है कि कपिल सिब्बल को कब पता चला कि वे ‘सब की कांग्रेस’ में नहीं रहे जो ‘घर की कांग्रेस’ बन चुकी है?
हार के दबाव में ‘दरार’?
कपिल सिब्बल 2014 तक सांसद भी रहे और यूपीए सरकार में मंत्री भी। कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो कपिल सिब्बल भी सत्ता के गलियारे से बाहर होकर पैदल हो चुके थे। कांग्रेस तब तक सबकी रही जब तक उसकी सरकार रही। सरकार से बाहर आते ही कपिल सिब्बल जैसे नेता अपने पेशेवर जिन्दगी में मस्त हो गये। वे कांग्रेस से और कांग्रेस उनसे दूर होती चली गयी। फासला इतना बढ़ा कि कपिल की नज़र में कांग्रेस अब सबकी न होकर ‘घर की कांग्रेस’ हो गयी है।
कपिल सिब्बल सवाल उठा रहे हैं कि राहुल गांधी ने किस हैसियत से चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया? वे जानना चाहते हैं कि राहुल गांधी तो सिर्फ सांसद थे, फिर भी अगर वे सारे फैसले ले रहे थे तो अब उन्हें दोबारा क्यों पार्टी की बागडोर सौंपी जाए? बेशक यह जानना आम कांग्रेसजनों के लिए दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी क्या कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से शक्ति प्राप्त कर संगठन के फैसले ले रहे थे या फिर वे अपनी मनमानी पंजाब कांग्रेस पर थोप रहे थे! कपिल सिब्बल से पहले किसी ने राहुल पर इस तरह से सवाल नहीं उठाया था, यह भी सच्चाई है।
सिब्बल कैसे ले पा रहे हैं बड़े फैसले?
राहुल गांधी अगर सांसद होकर कांग्रेस के बड़े फैसले ले रहे थे तो कपिल सिब्बल जो सांसद भी नहीं हैं, किस तरह से ‘घर की कांग्रेस’ और ‘सब की कांग्रेस’ जैसे अहम विषयों पर फैसला ले रहे हैं?- यह सवाल स्वत: उठ खडा होता है। अब तक जी-23 नेतृत्व के खिलाफ बैठकें करता रहा है और आलाकमान ने उनको सहा है। मगर, अब ऐसा लगता है कि इससे पहले कि जी-23 कोई बड़ा फैसला ले, कांग्रेस नेतृत्व आर-पार की लड़ाई का मन बना चुका है। इसके संकेत कांग्रेस नेताओँ के बयानों में मिले हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कपिल सिब्बल को कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की चुनौती दी है। मगर, चुनाव लड़ने तक कपिल सिब्बल कांग्रेस में बने रह सकेंगे या नहीं- यह बात महत्वपूर्ण है।
जी-23 के नेताओं ने लगातार जहां मोदी नेतृत्व की तारीफ की है वहीं कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। मनीष तिवारी जैसे नेताओं ने पंजाब चुनाव से पहले किताब लिखकर कांग्रेस संस्कृति पर हमला बोला तो गुलाम नबी आजाद ने लगातार बीजेपी के प्रति नरम रुख का इजहार किया। हाल में उनके बेटे भी बीजेपी में शामिल हुए हैं।
इस्तीफा मांग कर आलाकमान दिखा रहा है दम
कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पांच राज्यों में हुए चुनाव में पराजय के बाद इन राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफा देने को कहा है। यह आदेश स्थानीय नेतृत्व को जिम्मेदार बनाने और जिम्मेदार बताने का है। विधानसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्षों को लेनी होगी। अभी प्रतिक्रिया नहीं आयी है। मगर, नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेता प्रतिक्रिया दिए बगैर नहीं रहेंगे। मगर, अब नेतृत्व सख्ती दिखाने को तैयार नज़र आ रहा है।
चुनाव में हार के बाद आवाज़ उठती है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी की हार के बाद बीजेपी के कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोड़ी और ममता बनर्जी का दामन दोबारा थामा। एक के बाद एक बड़े नेता बीजेपी छोड़-छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में जाने लग गये। कांग्रेस छोड़ने का मौका फिलहाल नहीं है। इसके लिए चुनाव का मौसम बीत चुका है। अब कांग्रेस से निकाले जाने का मौसम आ चुका है। सवाल यह है कि घर की कांग्रेस से बाहर कर दिए जाने के बाद कपिल सिब्बल जैसे नेता क्या सब की कांग्रेस बनाने की हिम्मत और जज्बा दिखा पाएंगे?
क्या खुद उपयोगी रह गया है जी-23?
जी-23 में शामिल सभी बड़े नेता कभी न कभी महत्वपूर्ण पदों पर रहे थे। मगर, यह भी सच है कि कांग्रेस के बुरे दिन में इनकी भूमिका कभी ऐसी नहीं दिखी कि वे कांग्रेस के लिए उपयोगी रह गये हैं। कांग्रेस उनके लिए उपयोगी रही, यह बात जग-जाहिर है। कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना उनका अधिकार है लेकिन मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए ऐसा नहीं किया जा सकता। यह अपने नेतृत्व को कमतर दिखाना है। अगर जी-23 में क्षमता है तो वे कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए क्यों नहीं आगे आते?
कांग्रेस के भीतर जारी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया का हिस्सा बनकर भी वे गांधी परिवार को सक्रियता दे सकते हैं। पता नहीं जी-23 के नेता ऐसा क्यों नहीं करना चाहते हैं?
पांच राज्यो में पराजय के बाद पहली बार इतना खुलकर कांग्रेस में घमासान दिखा है। पहली बार ऐसा लगा है कि कांग्रेस में जान अभी बाकी है। जहां ‘घर की कांग्रेस’ प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफा मांगती दिख रही है वहीं ‘सब की कांग्रेस’ बनाने का दावा करने वाले नेता वर्तमान नेतृत्व पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। इस बार नतीजे निकलेंगे।
संगठन के भीतर सत्ता संघर्ष का यह अध्याय इस बार कुछ नतीजे लेकर आएंगे। या तो जी 23 के सामने नेतृत्व घुटने टेकेगा या फिर जी-23 आलाकमान के सामने आत्मसमर्पण कर देगा। इसी तरह या तो बगावत करने वाले सफल होंगे या फिर बगावत करने की सज़ा भुगतेंगे? इनमें से अगर कुछ भी होता है तो समझिए कि कांग्रेस में जान अभी बाकी है।
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