धर्म परिवर्तन और दूसरे धर्म में विवाह करने से जुड़े विवादास्पद अध्यादेश के बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक और ऐसे विषय पर अध्यादेश जारी करने की योजना बना रही है। सरकारी ही नहीं निजी ज़मीन पर भी बने धार्मिक स्थलों पर नियंत्रण करने के लिये एक अध्यादेश योगी सरकार लाने तैयारी कर रही है।
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि 'उत्तर प्रदेश रेगुलेशन एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ रिलीजियस प्लेसेज़ ऑर्डिनेंस' का मसौदा तैयार किया जा रहा है। धार्मिक मामलों का विभाग संसदीय कार्य विभाग से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रहा है और इससे जुड़ी जानकारियाँ ले रहा है।
क्या हुआ था 20 साल पहले?
बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 20 साल पहले भी ऐसा ही एक क़ानून बनाने की कोशिश की थी। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता ने 'उत्तर प्रदेश रेगुलेशन एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ रिलीजियस प्लेसेज़ बिल, 2020' विधानसभा में पेश किया था। विपक्ष के ज़ोरदार विरोध के बीच यह विधेयक पारित भी कर दिया गया था।
राज्यपाल सूरज भान ने विधानसभा से पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा था, लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली, वह उनके पास ही पड़ी रही। उस समय के. आर. नारायणन राष्ट्रपति थे।
इस स्थिति के दुबारा आने से बचने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार विधेयक न लाकर सीधे अध्यादेश जारी करने पर विचार कर रही है।
क्या है मक़सद?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार का मक़सद सभी समुदायों के धार्मिक स्थलों पर शिकंजा कसना है। लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने जिस तरह उत्तर प्रदेश रेगुलेशन एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ रिलीजियस प्लेसेज़ बिल, 2020 का विरोध किया था, वैसा ही इस बार भी हो सकता है। राज्य सरकार को इसकी आशंका है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार भले ही यह कहे कि यह सभी धर्मों पर समान रूप ले लागू होगा, उस पर यह आरोप लग सकता है कि वह अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को नियंत्रित करना चाहती है।
इसके पहले योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें यह प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन के कम से कम दो महीने पहले इसकी लिखित जानकारी स्थानीय प्रशासन को देनी होगी। इसमें यह भी कहा गया है कि विवाह के मक़सद से किया गया धर्म-परिवर्तन ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया जाएगा। इसमें दंड के भी प्रावधान है।
लव जिहाद के नाम के इस अध्यादेश को इलाहाबाद, कलकत्ता के अलावा कर्नाटक के हाई कोर्टों ने भी ग़लत माना है। क्या आदित्यनाथ सरकार एक बार फिर इस तरह के विवाद में फँसने जा रही है?
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