उत्तर प्रदेश में मजदूरों के काम के घंटे बढ़ाने का आदेश योगी सरकार ने वापस ले लिया है। व्यापक विरोध के बीच इस मामले में वर्कस फ्रंट की ओर से उच्च न्यायालय में दायर याचिका की सुनवाई से पहले ही यूपी सरकार के प्रमुख सचिव (श्रम) सुरेश चंद्रा ने आदेश वापस लेने के सरकार के इस फ़ैसले की जानकारी दी है। प्रदेश सरकार के इस कदम को मजदूर संगठनों ने अपनी जीत बताया है।
ग़ौरतलब है कि केंद्र सरकार की पहल पर यूपी, गुजरात, मध्य प्रदेश व उत्तराखंड सहित कई राज्यों ने श्रमिकों की हितों की रक्षा वाले 33 क़ानूनों को 1000 दिनों के लिए निलंबित कर दिया था। योगी सरकार का तर्क था कि श्रम क़ानूनों में ढील देने के बाद बाहर की कंपनियों से आने वाला निवेश बढ़ेगा और रोजगार के नए अवसर खुलेंगे। देश भर के मजदूर एवं पत्रकार संगठनों ने सरकार के इस कदम की निंदा करते हुए इसका विरोध किया था।
राजधानी दिल्ली में 22 जून को देश के 10 मजदूर संगठनों ने इसके विरोध में प्रदर्शन करने का एलान किया था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी ने श्रम क़ानूनों में सुधार के नाम पर हुए फेरबदल का जमकर विरोध किया था। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने तो इसके विरोध में सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी थी।
सुनवाई से पहले ही वापस ले लिया आदेश
काम के घंटे 8 की जगह 12 करने की प्रदेश सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के ख़िलाफ़ वर्कर्स फ्रंट द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाख़िल जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के द्वारा नोटिस जारी किया था।
नोटिस जारी करने के बाद हरकत में आयी प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (श्रम) ने मुख्य स्थायी अधिवक्ता, इलाहाबाद उच्च न्यायालय को शुक्रवार देर शाम जारी अपने पत्र में काम के घंटे 12 करने की अधिसूचना वापस लेने की सूचना दी है। पत्र में इसकी सूचना माननीय उच्च न्यायालय को देने का अनुरोध किया गया है।
वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने इसके लिए मजदूरों और उनका सहयोग करने वालों को बधाई दी है। गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई की तिथि 18 मई निर्धारित की थी। इस जनहित याचिका में अधिवक्ता प्रांजल शुक्ला व विनायक मित्तल द्वारा बहस की गयी थी।
इंडियन फ़ेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफ़डब्ल्यूजे) के प्रधान महासचिव परमानंद पांडे ने भी योगी सरकार को चिट्ठी लिखकर काम के घंटे बढ़ाने का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की थी।
कोई निवेश नहीं आएगा: अखिलेश यादव
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि योगी सरकार के इस तरह से श्रम क़ानूनों को निलंबित करने से कोई निवेश नहीं आने वाला है। उन्होंने कहा कि 1000 दिनों के लिए तमाम मजदूरों की हितों की रक्षा के क़ानून सस्पेंड कर दिए गए हैं। ऐसे में कौन सा निवेशक इस तरह की अल्पकालिक योजना के तहत प्रदेश में उद्योग लगाएगा जबकि उसे भी पता नहीं होगा कि तीन साल बाद क्या होगा।
यादव ने कहा कि इस कदम से श्रमिक असंतोष ही बढ़ेगा। उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी सरकार के इस कदम का डटकर विरोध करेगी और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए सड़कों पर उतरेगी।
उन्होंने बातचीत में कहा कि केंद्र के इशारे पर ज्यादातर सरकारें मजदूर विरोधी कदम उठा रही हैं जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अखिलेश का मानना है कि इस तरह के कदमों से केवल औद्योगिक अशांति का माहौल बनेगा जिससे वर्तमान में चल रहे कारखानों पर ही असर पड़ेगा।
बीएमएस ने भी किया था विरोध
श्रम क़ानूनों को निलंबित कर काम के घंटे बढ़ाने का विरोध राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के अनुषांगिक संगठन भारतीय मजदूर संगठन (बीएमएस) ने भी किया है। बीएमएस ने इसके विरोध में सभी राज्य सरकारों का पत्र भी लिखा है और अपने स्थानीय संगठनों को विरोध करने को भी कहा है।
हालांकि श्रमिक संगठनों के 22 मई के विरोध में तो बीएमएस शामिल नहीं है पर उसकी राज्य इकाईयों को विरोध के स्वर तेज करने को कहा गया है। श्रम क़ानूनों में सुधार के नाम पर की गयी मनमानी के विरोध के चलते कई प्रदेशों की बीजेपी सरकारों के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी थी।
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