उत्तर प्रदेश में असिस्टेंट प्रोफे़सर पद पर विभिन्न विषयों में भर्ती में अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के चयन में संभावित गड़बड़ियों को लेकर राज्य के राज्यपाल राम नाईक ने सक्रियता दिखाई है। राज्यपाल ने 12 जुलाई को ओबीसी की मेरिट सामान्य वर्ग से ऊपर जाने को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है। राज्यपाल ने पत्र में कहा है कि इस मामले में उचित कार्रवाई हेतु शिकायत पत्र मुख्यमंत्री को भेजा जा रहा है। ‘सत्य हिंदी’ ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों के मुख्य परीक्षा के परिणाम के विश्लेषण (
क्या योगी सरकार ने शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण में किया घालमेल?)में पाया था कि लेक्चरर और प्रोफ़ेसर की बहाली के लिए जो परीक्षाएँ लीं गईं, उसमें आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों का इंटरव्यू के लिए चयन सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से अधिक नंबर पर किया गया।
आयोग ने 16 विषयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए परीक्षाएँ लीं और उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया। इनमें से 14 विषयों में आरक्षित श्रेणी का कट ऑफ़ सामान्य श्रेणी के कट ऑफ़ से ऊपर था, यानी अधिक नंबर पर चुनाव हुआ। सिर्फ़ वाणिज्य और सैन्य विज्ञान विषय ही अपवाद रहे। नियम यह है कि जब सामान्य अभ्यर्थियों के चयन की सीटें भर जाती हैं, उसके बाद आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन होता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि ओबीसी, एससी, एसटी, एवँ महिला अभ्यर्थियों की मेरिट सामान्य से कम जाती है, क्योंकि इस वर्ग के विद्यार्थी अगर सामान्य में चयन योग्य अंक पाते हैं तो उनका चयन सामान्य वर्ग में हो जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग में विसंगतियाँ सामने आईं और ज़्यादातर विषयों के लिए साक्षात्कार हेतु अभ्यर्थियों के चयन में ओबीसी अभ्यर्थियों की मेरिट सामान्य से ऊपर गई है।
इस सिलसिले में शिव प्रकाश यादव ने 4 जुलाई को ई-मेल से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को अवगत कराया कि आरक्षित वर्ग के साथ अन्याय किया जा रहा है। हालाँकि यादव ने सिर्फ़ समाजशास्त्र विषय का उल्लेख किया है, जिसमें सामान्य वर्ग का कट ऑफ़ 103.37 और ओबीसी वर्ग का कट ऑफ़ 130.34 है।
राज्यपाल ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा है कि यादव का पत्र आपको (मुख्यमंत्री को) यथेष्ट कार्रवाई हेतु प्रेषित है। हालाँकि राजभवन को सिर्फ़ एक विषय की शिकायत मिली है। लेकिन राज्यपाल को मिली शिकायत के अलावा भी क़रीब सभी विषयों में ओबीसी की मेरिट सामान्य वर्ग की तुलना में ज़्यादा है।
आयोग के परिणाम को देखने से ऐसा लगता है कि ओबीसी में आने वाली क़रीब 52 प्रतिशत आबादी को ओबीसी में निकली कुछ मामूली वैकेंसीज में समेट दिया गया। इस ओबीसी वर्ग में बड़ी संख्या में अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल होते हैं और सामान्य की तुलना में ओबीसी की सीटें बहुत मामूली होने के कारण उनके चयन की मेरिट सामान्य से बहुत ज़्यादा चली गई है।
इसके अलावा कुल निकली वैकेंसीज और आरक्षित सीटों को देखने पर उसमें भी विसंगतियाँ नजर आती हैं। नियम के मुताबिक़, ओबीसी को 27 प्रतिशत और एससी-एसटी को 22.5 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। आयोग द्वारा निकाली गई वैकेंसीज में यह साफ़ नजर आता है कि 27 और 22.5 प्रतिशत सीटें आरक्षित नहीं की गई हैं। सत्य हिंदी में प्रकाशित विश्लेषण में दी गई तालिका (
योगी का आरक्षण: जनरल से ज़्यादा अंक वाले ओबीसी कट-ऑफ़ में नहीं) में देखा जा सकता है कि किसी भी विषय में आरक्षण के प्रतिशत के मुताबिक़ सीटें आरक्षित नहीं की गई हैं। इसके बारे में सरकार ने अब तक कोई स्पष्टीकरण सार्वजनिक नहीं किया है।
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