स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ खंडपीठ के फ़ैसले ने बीजेपी के आरक्षण विरोधी चरित्र को एक बार फिर सामने ला दिया है। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने और उप मुख्यमंत्री बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव न कराने का ऐलान कर रहे हैं, लेकिन इससे इस मुद्दे पर उनकी सरकार की आपराधिक लापरवाही छिप नहीं सकती।
यूपी निकाय चुनाव: बीजेपी का आरक्षण विरोधी चेहरा फिर उजागर!
- उत्तर प्रदेश
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- 29 Dec, 2022

क्या ओबीसी आरक्षण के लिए ‘ट्रिपल टेस्ट फ़ार्मूले’ के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को जानबूझ कर तो नज़रअंदाज़ नहीं किया गया? क्या योगी सरकार निकाय चुनाव कराना ही नहीं चाहती थी?
हाईकोर्ट ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक नहीं लगायी है, बल्कि ये कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के मुताबिक ओबीसी आरक्षण देने को लेकर ‘ट्रिपल टेस्ट’ के नियम का पालन नहीं किया गया है। यह सीधे-सीधे योगी सरकार की ओबीसी आरक्षण को लेकर गंभीरता पर टिप्पणी है।
हाईकोर्ट ने इस विशेष परिस्थिति में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य मानते हुए को 31 जनवरी, 2023 तक चुनाव कराने का निर्देश दिया है। ऐसा हुआ तो निश्चित ही उन पिछड़ी जातियों के अधिकारों पर डाका जैसा होगा जिनका बड़े पैमाने पर वोट लेकर बीजेपी आज यूपी की सत्ता में है।