लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में मेरठ संसदीय क्षेत्र में मतदान होगा। मेरठ सीट पर इस समय पूरे देश की नजर है। इसका कारण यह है कि भाजपा ने यहां से प्रसिद्ध टीवी सीरियल रामायण में भगवान राम का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल को अपना उम्मीदवार बनाया है।
उनकी वजह से मेरठ सीट वीआईपी सीट बन गई है। अरुण गोविल भले ही घर-घर पहचाना जाने वाला नाम है, वह प्रसिद्ध अभिनेता भले रहे हैं लेकिन उनके लिए एक राजनेता के तौर पर खुद को पेश करना काफी चुनौतिपूर्ण साबित हो रहा है।
इस चुनाव में उनके साथ भाजपा का मजबूत संगठन, पीएम मोदी की करिश्माई छवि, उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता है जिसका फायदा उन्हें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग से मेरठ में ऐसी चुनावी बिसात बिछाई है कि भाजपा परेशान है।
चुनावी समीकरणों को देखे तो पाते हैं कि भाजपा के लिए इस चुनाव में मेरठ से जीतना आसान नहीं दिख रहा है। सपा और बसपा ने ऐसी चाल चली है जिसके कारण मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि मेरठ सीट पर भाजपा, सपा और बसपा के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है।
राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि भाजपा ने मेरठ में अपनी जीत के लिए भले ही भगवान राम की छवि वाले उम्मीदवार अरुण गोविल को उम्मीदवार बना दिया है, लेकिन जातीय समीकरणों ने उनकी जीत की संभावना को मुश्किल बना दिया है।
राम वाली छवि से भाजपा को है उम्मीद
भाजपा को उम्मीद है कि अरुण गोविल में भगवान राम की छवि को देख लोग उन्हें वोट करेंगे। मेरठ की गलियों में राम भजन गूंज रहे हैं। जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे...''राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी… भाजपा समर्थकों के घरों में ये गीत बजाए जा रहे हैं। जगह-जगह माहौल राममय दिखता है।अरुण गोविल सुबह से शाम तक चुनाव प्रचार में इन दिनों व्यस्त है। राजैनितक विश्लेषकों का मानना है कि अरुण गोविल भले ही वोट मांगने के लिए जनसभाओं में जा रहे हैं लेकिन उनके बोलने का अंदाज नेताओं वाला नहीं दिख रहा है। वह सीधे अपनी बात रखते हैं। न तो कोई चुनावी वादा करते हैं और न ही विपक्षी दलों या उम्मीदवारों पर कोई हमला करते हैं।
जहां भी जाते हैं बस यही कहते कि सौ प्रतिशत वोट देना। उच्च आय वर्ग के लोगों को खासतौर से कहते हैं कि मतदान के दिन वोट देने के लिए अवश्य ही अपने घरों से निकलना। उनके भाषणों का अंदाज रामायण के संवाद की तरह लगता है। इसमें कोई राजनैतिक बातें नहीं होती है। वह भले ही चुनावी रण में हैं लेकिन इसमें वह न विरोधियों पर वार कर रहे हैं और न ही पलटवार।
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स्थानीय बनाम बाहरी बना हुआ है मुद्दा
अरुण गोविल भले ही कह रहे हैं कि उनका जन्म मेरठ में हुआ और इंटर की पढ़ाई भी उन्होंने यही से की है लेकिन मेरठ की आम जनता के बीच उनकी इमेज बाहरी उम्मीदवार की है। ऐसे में देखना होगा कि वह लोगों का कितना भरोसा जीत पाते हैं। विरोधी उन्हें बाहरी उम्मीदवार को तौर पर प्रचारित कर रहे हैं।विरोधी कह रहे हैं कि वे और उनका परिवार दशकों से मेरठ में नहीं रहा है, ऐसे में वह बाहरी ही हैं। ऐसे आरोपों के कारण भी उनके लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। इनकी चुनाव में इंट्री के साथ ही स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवारा का मुद्दा भी छाया हुआ है।
उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि अरुण गोविल को मेरठ के स्थानीय मुद्दों की जानकारी नहीं है, वे यहां की जनसमस्याओं को नहीं दूर कर पायेंगे। इसके जवाब में वह कह चुके हैं कि एक बार जीतवा दीजिए, फिर पता करेंगे कि क्या-क्या समस्याएं है। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल भी खूब किया गया है। भाषण कला में निपुण नहीं होने के कारण भी वह वैसा प्रभाव जनता पर नहीं छोड़ पा रहे हैं जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
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सपा-बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा
दूसरी तरफ मेरठ में सपा और बसपा ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर अपना दाव चला है। यही कारण है कि पहली बार सपा और बसपा ने यहां से मुस्लिम उम्मीदवार को चुनावी मैदान में नहीं उतारा है। भाजपा के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जीत आसान नहीं थी, तब एक मुश्किल मुकाबले में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब से 5 हजार से भी कम वोटों के अंतर से जीते थे। इस बार भाजपा ने तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काट कर अरुण गोविल को मैदान में उतारा है।भाजपा के लिए मेरठ की सियासी जंग दोतरफा है। एक तरफ भाजपा को जातीय समीकरणों ने उलझा दिया है वहीं दूसरी तरफ भाजपा को अपने कोर मतदाताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है। भाजपा से इस बार त्यागी-ठाकुर मतदाता नाराज हैं।
इस बार मेरठ में सपा और बसपा की ओर से मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं उतार कर भी भाजपा को परेशानी में डाल दिया है। मुस्लिम उम्मीदवार के मेरठ के चुनावी मैदान में रहने से वोटों का धुव्रीकरण होता रहा है जिसका फायदा भाजपा को मिलता रहा है।
भाजपा के लिए इस बार हिंदू वोटों के बिखराव को रोकने की भी चुनौती है। माना जा रहा है कि सपा और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग ने भाजपा को मेरठ सीट पर उलझा कर रख दिया है। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत मेरठ से ही की थी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी 15 दिन में ही 3 बार चुनाव प्रचार के लिए मेरठ आ चुके हैं। इस बार सपा और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में सपा को कांग्रेस का वोट भी मिलने की उम्मीद है। सपा ने काफी सोच समझकर अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा है।
सपा ने दो प्रत्याशी बदलने के बाद अंत में यहां से दलित चेहरा सुनीता वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा को यहां से पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक समीकरण पर भरोसा है। मुस्लिम और जाटव मतदाताओं को लेकर सपा को पूरा भरोसा है कि यह वोट बैंक उसे मिलेगा। मेरठ सीट पर करीब 48 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। उनका वोट अगर एकमुश्त या बड़े पैमाने पर सपा को मिलता है तब सपा के लिए जीत आसान हो जायेगा।
वहीं बसपा ने देवव्रत त्यागी को अपना उम्मीदवार बनाया है। त्यागी समाज भाजपा से इन दिनों नाराज चल रहा है। बसपा को उम्मीद है कि त्यागी समाज का वोट उसे मिलेगा। बसपा के पास करीब 12 प्रतिशत दलित वोट बैंक है जो उसकी बड़ी ताकत है। बसपा मुस्लिम वोटों को भी अपनी ओर करने के लिए जमकर मेहनत कर रही है।
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