यूपी की राजधानी लखनऊ में योगी के ‘बुलडोजर’ राज के शिकार शहरी गरीबों और आम लोगों का जन आंदोलन आहिस्ता आहिस्ता बड़ी शक्ल ले रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शहर के बीच बसे अकबरनगर मुहल्ले के लोगों को उजाड़ने की कार्रवाई शुरू हुई। लोकसभा चुनाव के बाद इसे अंजाम तक पहुंचा दिया गया। तर्क यह दिया गया कि ये लोग डूब क्षेत्र (फ्लड ज़ोन) के अंदर अवैध ढंग से बसे हुए हैं। इस नाम पर नदी से 500 मीटर दूर तक की बसावट को बुलडोजर लगाकर उजाड़ दिया गया। कुल 1169 घर और 101 व्यापारिक प्रतिष्ठान ढहाए गए। हजारों लोग जिन्होंने सालों साल की मेहनत से अपना आशियाना बनाया था वे अचानक सड़क पर आ गए। उन्हें वहां से दूर बसंत कुंज में ले जाकर बसाने की बात की गई।
'गरीबों' के आशियाने उजाड़ते योगी के बुलडोजर कब तक थमे रहेंगे?
- उत्तर प्रदेश
- |
- |
- 31 Sep, 2024

लखनऊ में लोकसभा चुनावों के बाद बस्तियों पर बुलडोजर चलाने का काम रुक गया है तो क्या उपचुनावों के बाद सरकार फिर तमाम तरीकों से जमीन कब्जा अभियान में जुट तो नहीं जाएगी?
दरअसल, यह मुहल्ला लखनऊ के फर्नीचर हब निशातगंज से सटा हुआ है और 1925 के पहले से बसा हुआ था। जाहिर है कई दशकों से लोग वहाँ रह रहे थे और तरह-तरह के स्वरोजगार के माध्यम से अपने परिवार का पेट पाल रहे थे, अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे थे छोटे बड़े स्कूलों में। वहां एक मदरसा भी था जिसमें लगभग तीन हजार गरीब परिवारों के बच्चे तालीम पा रहे थे। सरकार ने वहां से लोगों को उजाड़कर केवल उनके सर की छत ही नहीं छीनी है बल्कि उनकी रोजी रोटी, आजीविका भी छीन ली है। बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी छीन ली है। वहां से दूर शहर के बाहर जिस बसंत कुंज में उन्हें बसाने की बात हो रही है, वहां न स्कूल हैं, न अस्पताल हैं, न शहर से कनेक्टिविटी है। पीएम आवास योजना के तहत बने महज 300 वर्ग फीट के कथित फ्लैट लोगों को लगभग पांच लाख कीमत के किश्तों में भुगतान पर दिए जा रहे हैं। कई पुश्तों से बसा अपना आशियाना उजड़ जाना, अपनी रोजी रोटी, बच्चों की शिक्षा से वंचित हो जाना लोगों के लिए कितना बड़ा मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बसंत कुंज में कुछ लोगों के आत्महत्या करने की दुःखद ख़बरें आ रही हैं। यह सब हुआ है लखनऊ के सुंदरीकरण की कुकरैल रिवर फ्रंट परियोजना के नाम पर, उसे ईको-टूरिज़्म हब बनाने के नाम पर।