ताजा बजट में सरकार ने एक बार फिर बेरोजगार युवाओं के साथ छल किया है। स्किल विकास का गाना तो फिर गाया गया है, लेकिन असलियत यह है कि 2016 से 2022 के दौरान कौशल अर्जित करने वाले श्रमिकों में से केवल 18% को रोजगार मिला है। अर्थात मूल मामला यह है कि रोजगार है ही नहीं, 82% कुशल मज़दूर तो पहले से ही बेरोज़गार हैं। दरअसल, रोज़गार के अवसर अर्थव्यवस्था में पैदा होते हैं, सही अर्थनीति से। और अधिक लोग कौशल अर्जित कर भी लें तब भी उन्हें रोजगार कैसे मिल जायेगा जब अर्थव्यवस्था में रोजगार है ही नहीं, नए अवसर पैदा ही नहीं हो रहे।
बजट में मोदी सरकार ने बेरोजगार युवाओं को फिर छला?
- विचार
- |
- |
- 30 Aug, 2024

बजट में कहा गया है कि एक करोड़ युवाओं को एक साल की इंटर्नशिप/अप्रेंटिसशिप दी जाएगी। लेकिन ये एक करोड़ युवा कौन होंगे, इनके चयन का मानदंड क्या होगा? उनको अप्रेंटिसशिप कौन देगा, कहां देगा?
जो मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र में ग़रीब मज़दूरों का इकलौता सहारा है और जो कोविड के दौरान शहरों से विस्थापित अभागे बेसहारा मज़दूरों का सबसे बड़ा संबल बना था, उसकी उपेक्षा जारी है। इस वर्ष के लिए इसका बजटीय आवंटन 86,000 करोड़ रुपये है। पहले से बढ़ने को कौन कहे, यह पिछले वित्त वर्ष में खर्च किए गए धन से भी कम है। इस वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में 41,500 करोड़ रुपये पहले ही ख़र्च हो जाने के बाद अगले आठ महीनों के लिए केवल 44,500 करोड़ रुपये ही बचे हैं। जाहिर है ग्रामीण भारत में बेरोज़गारी के गहरे संकट से निपटने के लिए यह राशि अपर्याप्त है और यह दिखाता है कि मोदी सरकार भारतीय समाज के आखिरी पायदान पर खड़े बेरोज़गार मज़दूरों के जीवन और आजीविका के प्रति कितनी संवेदनहीन है।