गोरखपुर सीट बीजेपी की सुरक्षित सीट मानी जाती है। यह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रही है। उनसे पहले भी उनके आध्यात्मिक गुरु इस सीट से चुनाव जीतते रहे थे। तो क्या इस सीट पर सपा उम्मीदवार कड़ी टक्कर दे पाएँगी? आख़िर अखिलेश यादव की सपा ने योगी के गढ़ को भेदने कोई फ़ॉर्मूला लगाया है या नहीं?
इस सवाल का जवाब बाद में, पहले यह जान लें कि इस लोकसभा सीट पर क्या स्थिति है। गोरखपुर सीट पर 1 जून को लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में मतदान होना है। सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद और अभिनेता से नेता बने रवि किशन शुक्ला को मैदान में उतारा है। सपा ने काजल निषाद को मैदान में उतारा है। काजल एक भोजपुरी फिल्म अभिनेत्री भी हैं। कहा जा रहा है कि रवि किशन और काजल निषाद के बीच ही सीधी टक्कर है।
लेकिन क्या काजल निषाद के लिए यह टक्कर आसान है? दरअसल, उनका मुक़ाबला उस गोरखपुर सीट पर है जहाँ योगी आदित्यनाथ दशकों से चुनाव जीतते आ रहे हैं। दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे योगी आदित्यनाथ सीएम बनने से पहले इस निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार सांसद रहे हैं। वह गोरखनाथ मठ के प्रमुख भी हैं। इसका पूर्वी यूपी क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव है।
योगी आदित्यनाथ के आध्यात्मिक गुरु महंत अवैद्यनाथ 1989 से हिंदू महासभा के साथ-साथ भाजपा के टिकट पर तीन बार गोरखपुर से जीते थे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने 1998 में पहली बार चुनाव जीता। इसके बाद लगातार वह चुनाव जीतते रहे। इस तरह उन्होंने कुल मिलाकर लगातार पांच बार सीट जीती है। वह इस सीट से तब तक सांसद रहे जब तक कि वह यूपी के मुख्यमंत्री नहीं बन गए।
2018 के गोरखपुर उपचुनाव में निषाद मतदाताओं ने उलटफेर करने में अहम भूमिका निभाई थी, जब तत्कालीन सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेंद्र शुक्ला को 21 हज़ार 801 वोटों से हराया था। निषाद समुदाय गोरखपुर की आबादी का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है।
भाजपा खेमे की चिंता इसी बात को लेकर है कि काजल निषाद को बड़े पैमाने पर अपने समुदाय का समर्थन मिल रहा है। हालाँकि काजल 2012 और 2022 में कांग्रेस और सपा के टिकट पर कैंपियरगंज से विधानसभा चुनाव हार गई थीं और 2023 में सपा उम्मीदवार के रूप में गोरखपुर मेयर का चुनाव भी हार गई थीं।
बीजेपी के लिए परेशानी की एक और वजह है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार माना जा रहा है कि रवि किशन को कई स्थानीय निवासियों के बीच नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। अंग्रेज़ी अख़बार ने कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर कहा है कि रवि किशन को गोरखपुर शहर में आदित्यनाथ द्वारा आयोजित कुछ कार्यक्रमों में भाग लेने के अलावा पांच साल तक निर्वाचन क्षेत्र में नहीं देखा गया था।
अपने प्रचार अभियान में रवि किशन खुद अपनी सभी सार्वजनिक सभाओं में कहते रहे हैं कि वह 'महाराज जी' के अनुयायी हैं। वह चुनाव अभियानों में यह तक कह रहे हैं कि चुनाव मैदान में वह नहीं, बल्कि 'योगी बाबा' ही हैं।
रिपोर्टें हैं कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कई मतदाता अपनी पसंद के बारे में मुखर हैं, और इस पर विभाजित दिखाई दे रहे हैं। जबकि गोरखपुर के लोगों का एक बड़ा वर्ग योगी के नाम पर भाजपा का पुरजोर समर्थन कर रहा है। वहीं एक अन्य वर्ग इंडिया गठबंधन की जीत के लिए सपा के उम्मीदवार के पीछे रैली कर रहा है। दोनों पक्ष जाति के आधार पर भी बंटे हुए लगते हैं।
गोरखनाथ मंदिर अपने परिसर में एक प्रमुख अस्पताल के अलावा कम से कम 45 शैक्षणिक संस्थान चलाता है। इसके मुख्य पुजारी के रूप में आदित्यनाथ की स्थिति उनके प्रभाव को बढ़ाती है।
हाल ही में गोरखपुर में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की रैली में भी योगी आदित्यनाथ फैक्टर साफ दिखा। वे बड़े पैमाने पर योगी पर हमला करने से बचते रहे।
इस बार के चुनाव में वोट डालने के लिए दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोग गाँव लौटे हैं। अलग-अलग जाति समुदाय वोट डालने की अपनी पसंद को लेकर बँटे हुए दिखते हैं। अब ऐसे में किसका पलड़ा भारी है, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वास्तविक नतीजे तो 4 जून को ही मिल पाएँगे।
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