हाथरस बलात्कार व हत्याकांड में पुलिस व प्रसासन के रवैए से कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं जो पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाते हैं। पुलिस और प्रशासन के अफ़सरों ने जिस तरह की संवेदनहीनता दिखाई, उससे यह सवाल उठता है कि इनके प्रशिक्षण में क्या खामियाँ हैं?
यह सवाल भी उठता है कि क्या प्रशासनिक अ़फ़सरों की चयन प्रक्रिया ही दोषपूर्ण है या राजनीतिक दबाव व निजी महत्वाकांक्षा के चक्कर में पड़ कर अफ़सरशाही इस तरह बेलगाम हो जाती है? वर्ना क्या वजह है कि जनता की सेवा के लिए तैनात ये अफ़सर सेवा तो दूर, सामान्य शिष्टाचार भी नहीं जानते और पीड़ित परिवार को ही निशाने पर लेते हैं? उसके साथ तरह-तरह की ज़्यादतियां करते हैं?
पीड़िता के परिवार को ही धमकाया
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि पुलिस और प्रशासन ने हाथरस में पीड़िता के परिजनों को दो दिनों तक घेरेबंदी में रखा, उनसे मिलने को किसी को नहीं जाने दिया, उनकी निगरानी रखी। इससे बड़ी चिंता की बात यह है कि पुलिस -प्रशासन के अफ़सर पीड़िता के परिजनों के साथ बेहद बदतमीजी से पेश आए, उन्हें डराया-धमकाया। यहां तक कि उनके साथ मारपीट तक के आरोप लग रहे हैं।समाचार चैनल 'आज तक' ने एक ख़बर में कहा है कि पीड़िता के परिवार ने बताया कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने उनसे अभद्रता से बात की। पीड़िता की भाभी ने कहा, 'डीएम ने कहा कि अगर तुम्हारी बेटी की कोरोना से मौत हो जाती तो तुम्हें मुआवजा मिल जाता।' पीड़िता के परिवार ने कहा कि एसआईटी ने उसने ही पूछताछ की है, उन्हें उन पर भरोसा नहीं है।
पीड़िता की भाभी ने कहा,
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'हमें दो दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलने दिया गया था क्योंकि पुलिस को डर था कि हम लोग सच्चाई मीडिया को न बता दें।'
पीड़िता की भाभी ने यह भी कहा कि उनका परिवार नार्को टेस्ट नहीं करवाएगा। उन्होंने कहा, 'नार्को टेस्ट डीएम का करवाना चाहिए।' उन्होंने सीबीआई जांच की मांग से भी इनकार किया है।
संवेदनहीनता
पुलिस ने परिजनों को पीड़िता की लाश नहीं सौपी थी और रात के ढ़ाई बजे केरोसीन डाल कर जला दी थी। इस संवेदनहीनता पर पुलिस व प्रशासन को पछतावा तो नहीं ही है, उसने परिजनों से बेहद बदतमीजी से बात की और इसका कारण बताया। पीड़िता की भाभी ने पत्रकारों से कहा,
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'जब हमने शव दिखाने की बात कही तो डीएम ने कहा कि आपको पता है पोस्टमॉर्टम के बाद डेड बॉडी का क्या हाल हो जाता है? हथौड़े से मारकर हड्डियां तोड़ दी जाती हैं। पोस्टमॉर्टम की वजह से बहुत कटी-फटी हालत में है। तुम लोग नहीं देख पाओगे। दस दिन तक खाना नहीं खा पाओगे। सो नहीं पाओगे।'
पीड़िता के परिजनों का यह भी कहना है कि उन्हें नहीं पता कि किसकी लाश जलाई गई। पीड़िता की माँ ने पत्रकारों से कहा, 'हमारी बेटी की मिट्टी नहीं दी उन्होंने। मेरी बहू ने कहा कि दिखा दो एक बार। एसआईटी वाले हमसे कहते कि अरे तुमको पता नहीं कि तुम्हारे खाते में कितने पैसे गए है। हमें बिना दिखाए बॉडी को जला दिया। हम अपनी बिटिया को आखिरी बार देख तक नहीं पाए।'
पुलिस प्रशासन के अफसर पीड़िता के परिजनों से बार-बार यही कहते रहे कि उनके खाते में पैसे डाल दिए गए हैं, उन्हें इस पर चुप हो जाना चाहिए।
कभी वे कहते कि तुन्हें पता नहीं कि तुम्हारे खाते में कितने पैसे हैं तो कभी कहते की तुम्हारी बेटी कोरोना से मर गई होती तो कौन सा मुआवजा मिल गया होता? इसके पहले पीड़िता के परिवार का एक बच्चा किसी तरह छुप कर बाहर गया था, उसने पत्रकारों से बात की थी। उसने कहा था कि उसके ताऊ को पुलिस ने छाती पर लात मारी थी, जिससे वह बेहोश गए थे।
बयान बदलने का दबाव
इसके पहले भी विडियो सोशल मीडिया पर चल चुका है, जिसमें ज़िला मजिस्ट्रेट बयान बदलने के लिए परिवार पर दबाव डाल रहे हैं। इस वीडियो में ज़िला मजिस्ट्रेट प्रवीण कुमार लक्सकर कहते हुए सुने जाते हैं, “अपनी विश्वसनीयता ख़त्म मत कीजिए। ये मीडिया के लोग..कुछ आज चले गए, कुछ कल चले जाएंगे। सिर्फ हम आपके साथ रहेंगे। यह आप पर निर्भर है कि आप बयान बदलें या नहीं। कल हम भी बदल सकते हैं।”
धमकी
इसी वीडियो में पीड़िता की बहन भी यह बात दुहराती है कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने उसे धमकाया है। वह कहती है कि प्रशासन के लोगों ने उस पर दबाव डाला है कि वह और उसके पिता अपना बयान बदल दें।वह कहती है, 'वे हम पर दबाव डाल रहे हैं। वे हमें कह रहे हैं कि यदि हमारी बेटी कोरोना वायरस संक्रमण से मर गई होती तो उसे मुआवजा मिलता। वे कह रहे हैं कि मामला रफा-दफा हो जाएगा। हमें धमकियाँ मिल रही हैं। हमारे पिता को धमकियाँ दी जा रही हैं।'
इतना ही नहीं, पुलिस स्थानीय बीजेपी नेताओं की इस थ्योरी पर काम कर रहे हैं कि यह ऑनर किलिंग का मामला है और परिवार के लोगों ने ही पीड़िता को मार डाला है। पुलिस की संवेदनहीनता का अंदाज इससे लगाया जा सकता है। बेहद कठिन परीक्षा पास कर और बहुत ही कड़े प्रशिक्षण के बाद ये अफ़सर तैनाते होते हैं और काफी अनुभव के बाद ज़िम्मेदारी पूर्ण पदों पर नियुक्त किए जाते हैं।
आखिर ये इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं कि पीड़िता के परिजनों को कहते हैं कि बेटी कोरोना से मर गई होती तो पैसे नहीं मिलते, अभी तो मिल रहे हैं, ले लो और चुप हो जाओ।
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