हाथरस मामले में योगी सरकार पहले दिन से ये स्टैंड लेकर बैठी है कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ और इसे सही साबित करने के लिए वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार दिखती है। जो लोग इसमें रूकावट बनते हैं, उन पर वह कार्रवाई कर रही है।
पीड़िता की मौत के बाद आई सरकारी मेडिकल रिपोर्ट में उसके शरीर पर आई गंभीर चोटों का जिक्र नहीं किया गया था। पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार को सिरे से नकार दिया था, सिर्फ मारपीट की बात कही थी और पहले उन्ही धाराओं में मुक़दमा भी दर्ज किया गया था। लेकिन 8 दिन बाद उसने गैंगरेप की धारा जोड़ी।
जबकि पीड़िता के परिजनों की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म हुआ, अभियुक्तों द्वारा जमकर पीटा गया, उसकी गर्दन तोड़ी गयी और उसकी कमर की हड्डी में भी चोट थी। चोट की बात को पीड़िता का इलाज करने वाले डॉक्टर्स ने भी स्वीकार किया था।
एफ़एसएल रिपोर्ट
इसके बाद योगी सरकार की पुलिस ने फ़ॉरेंसिक लैब (एफ़एसएल) की रिपोर्ट का सहारा लिया और कहा कि इसके मुताबिक़ पीड़िता के साथ बलात्कार के कोई सबूत नहीं हैं। इस रिपोर्ट को लेकर अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर अज़ीम मलिक ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया था कि एफ़एसएल रिपोर्ट की कोई अहमियत नहीं है।
डॉ. मलिक ने अख़बार को बताया था कि हाथरस मामले में एफ़एसएल रिपोर्ट के लिए सैंपल बलात्कार की घटना के 11 दिन बाद लिए गए थे जबकि सरकारी दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया है कि फ़ॉरेंसिक साक्ष्य बलात्कार के 96 घंटे तक ही मिल सकते हैं। उन्होंने कहा था कि इसीलिए यह रिपोर्ट इस मामले में बलात्कार की घटना को साबित नहीं कर सकती और इसकी कोई अहमियत नहीं है।
अब मंगलवार को डॉक्टर मलिक को नौकरी से निकाल दिया गया है। मलिक के अलावा एक अन्य डॉक्टर ओबैद हक़ को भी नौकरी से निकालने का पत्र थमा दिया गया है। हक़ ने पीड़िता की मेडिको लीगल रिपोर्ट को सत्यापित किया था।
डॉ. मलिक और डॉ. हक़ को सीएमओ डॉ. शाह ज़ैदी की ओर से मिले पत्र में कहा गया है, ‘एएमयू के कुलपति प्रोफ़ेसर तारिक़ मंसूर के निर्देश पर उनकी नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाता है। इसलिए, वे आगे कोई काम न करें।’
एएमयू प्रशासन की सफाई
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की ओर से जब एएमयू प्रशासन से इस बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि उनकी ओर से हाथरस मामले में किसी भी डॉक्टर को निलंबित नहीं किया गया है। प्रशासन ने कहा, ‘दो महीने पहले कुछ सीएमओ ने छुट्टी ली थी और इनमें से कुछ लोग कोरोना से पीड़ित हो गए थे। इमरजेंसी में डॉक्टर मलिक और डॉक्टर हक़ को बुलाना पड़ा था। अब सभी सीएमओ वापस आ चुके हैं और कोई खाली जगह नहीं है, इसलिए उनकी सेवाओं की ज़रूरत नहीं है।’
एएमयू प्रशासन की ओर से यह भी कहा गया कि डॉक्टरों के इस फ़ैसले से नाख़ुश होने की बात सामने आई है, इसलिए उन्हें अस्पताल में किसी जगह एडजस्ट किया जा सकता है।
डॉक्टर हक़ ने कहा कि मलिक के मीडिया से बात करने के कारण और उन पर सूचना लीक करने के शक में कार्रवाई की गई है। डॉक्टर हक़ ने कहा कि उन्हें अगस्त के बाद से सैलरी नहीं मिली है। डॉक्टर मलिक ने भी कहा कि उन्हें पिछले महीने की सैलरी नहीं मिली है और उनके सीनियर्स ने उन्हें मीडिया के सामने निजी राय रखने के लिए डांटा।
दोनों डॉक्टर्स पर कार्रवाई से साफ है कि योगी सरकार का दमन चरम पर है और वह इस बात को स्वीकार ही नहीं करेगी कि पीड़िता के साथ बलात्कार हुआ था। ऐसे में पीड़िता और उसके परिवार को इंसाफ़ मिलने की उम्मीद सिर्फ़ अदालतों से ही है।
क्या था मेडिको लीगल रिपोर्ट में?
एएमयू के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के डॉक्टरों की टीम की ओर से तैयार की गई पीड़िता की मेडिको लीगल रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि पीड़िता का 'वेजाइनल पेनीट्रेशन बाई पेनिस' हुआ था। इसके अलावा 'दुपट्टे से उसका गला दबाया गया था', उसे 'क्वाड्रिपैरेसिस' हुआ था, यानी चार अंग- दोनों हाथ और दोनों पांव शिथिल हो गए थे, उसे 'पैराप्लेजिया' हुआ था, यानी होंठ के नीचे का पूरा अंग सुन्न हो गया था। लेकिन योगी सरकार को यह रिपोर्ट नागवार गुजरी थी। इसी रिपोर्ट को डॉक्टर ओबैद हक़ ने सत्यापित किया था।
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