बीते मंगलवार को जब नए विश्वविद्यालय की स्थापना को बगल के अलीगढ़ में आए प्रधानमंत्री अपने भाषण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुशासन का गुणगान करते अघाते नहीं थे, ठीक उसी दिन फ़िरोज़ाबाद में भयावह डेंगू और रहस्य्मयी बुखार की चपेट में आयी 11 साल की वैष्णवी की मौत हो गई थी। उसकी किशोर बहन इलाज के अभाव में हुई वैष्णवी की मौत के लिए लिए ज़िम्मेदार डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर आगरा मण्डल के कमिश्नर की कार के सामने लेटी हुई थी। मीडिया मोदी के दावों को भी दिखा रहा था और कमिश्नर की कार के नीचे लेटी लड़की को भी।
प्रदेश सरकार की वाहवाही में दिए गए पीएम के वक्तव्य वाले दिन ही फ़िरोज़ाबाद सहित समूचे ब्रज क्षेत्र में डेंगू और रहस्य्मयी बुखार से 14 लोगों की मौत हुई थी। मरने वालों में 6 बच्चे भी शामिल थे। शर्मनाक बात यह है कि मौतों का यह सिलसिला बीते 1 महीने से ज़्यादा समय से चल रहा है लेकिन उसे रोक पाने में योगी सरकार पूरी तरह से अक्षम साबित हुई है। न सिर्फ़ फ़िरोज़ाबाद बल्कि अब तो इस बीमारी का संक्रमण निकटवर्ती आगरा, मथुरा, एटा और कासगंज आदि ज़िलों में भी तेज़ी से फैल रहा है।
किंकर्तव्यमूढ़ता की स्थिति में बैठे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 सितम्बर को एक बार फिर लखनऊ से 15 विशेषज्ञों की एक टीम को फ़िरोज़ाबाद भेजने की घोषणा की। 2 सप्ताह में फ़िरोज़ाबाद जाने वाला विशेषज्ञों का यह तीसरा दल होगा। इनमें एक दल केंद्र सरकार का भी है। राज्य सरकार की ओर से अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि पहले जाँच दलों की रिपोर्ट का क्या हुआ? शासन को उसने यदि कोई रिपोर्ट सौंपी तो उस रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई? यह भी कि क्या वे अक्षम साबित हुई जिसके चलते दोबारा नयी टीम भेजने की ज़रूरत आन पड़ी है?
अमेरिकी राष्ट्रपति के 'मलेरिया मिशन पहल' (पीएमईआई) के प्रमुख और जन स्वास्थ्य के विश्वप्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ. राज दरबारी अपने हालिया लेख में चेतावनी देते हैं कि “स्वास्थ्य संकट के ख़तरे की घंटी ख़ुद ब खुद नहीं बजती। यह स्वास्थ्य कर्मियों की ज़िम्मेदारी है कि वे इसे बजाएं। “उप्र. के जन स्वास्थ्यकी के बीते 4 सालों के रिकॉर्ड को देखें तो यहाँ ख़तरे की घंटी तब तक नहीं बजती जब तक 100-200 मौतें झटपट न हो जाएँ। साफ़-सफाई (सैनिटेशन) की अनदेखी, बीमारियों की रोकथाम के कुप्रबंधन और रोगों की निगरानी के तंत्र की ख़स्ताहाली- किसी भी संक्रमण के सुरसा की तरह फैलने के लिए इसके अलावा भला और किस चीज़ की ज़रूरत होगी? उप्र. शासन इन सभी 'सुविधाओं' को उपलब्ध करने के लिए कृत संकल्प है!
बीते 5 वर्षों में प्रदेश के अनेक ज़िले सरकारी अनदेखी के चलते बीमारियों के ऐसे ही क़ब्रिस्तानों में तब्दील होते रहे लेकिन सरकार ने कभी पिछली भूलों से सबक़ लेना अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझा। 2017, 2018 और 2019 में ऐसे ही संक्रामक रोग बच्चों और बड़ों को मौत की नींद सुलाते रहे। 2019 में बरेली में मलेरिया जैसे रोग ने, जो देश के अधिकांश भागों से गायब हो चुका है, एक सप्ताह में 20 हज़ार लोगों को अपनी चपेट में ले लिया था। इससे पहले 2017 में गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी ने 114 बच्चों को मार डाला था। चूँकि यह मामला मुख्यमंत्री के अपने जनपद का था लिहाज़ा उनकी भी ख़ासी बदनामी हुई और उनकी सरकार की भी भद्द पिटी।
2017 में अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए महामारी का ज़िम्मेदार मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को बना दिया गया जो धर्म से मुसलमान था और इस तरह सारे मामले को धार्मिक रंग में डुबाने का प्रयास किया गया।
बाद में इलाहबाद हाईकोर्ट ने डॉ. कफील ख़ान को निरपराधी घोषित करते हुए राज्य सरकार को इस त्रासदी के लिए कस कर फटकारा।
जन स्वास्थ्य की अनदेखी
अनीजा द्वारा दी गयी जानकारी को मीडिया ने आगे बढ़ाया और 30 अगस्त तक पूरे देश को पता चल गया कि फ़िरोज़ाबाद में बेहिसाब मौतें हो रही हैं। इसके बाद भगदड़ मची। प्रदेश के स्वास्थ्य निदेशक ने इससे सहमति जताई, न तो स्वास्थ्यमंत्री की अज्ञानता पर उनके विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई हुई और न ही उन अधिकारियों की ख़बर ली गयी जिन्होंने सूचनाओं को मंत्री तक पहुँचने से रोका था। शोरशराबा जब चरम पर पहुँच गया तो 3 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने मथुरा पहुँचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लौटते वक़्त फ़िरोज़ाबाद पहुंचे। उन्हें फॉलो करते मीडिया ने तसवीर की भयावहता को और भी उजागर किया। यह बात भी प्रकाश में आयी कि अगस्त के पहले हफ़्ते से ही बीमारी ने अपने पाँव पसारने शुरू कर दिए थे।
कहने को फ़िरोज़ाबाद में एक कामचलाऊ मेडिकल कॉलेज और एक ज़िला अस्पताल भी है। आश्चर्य की बात यह है कि स्वास्थ्य का यह संकट महीनेभर से अपने ज़ोरों पर था और बीमारी जितने विकराल रूप में फ़ैल चुकी थी, उसे देखते हुए डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ़ की संख्या को सिर्फ़ तब बहुत कम माना गया जब मुख्यमंत्री स्वयं वहां प्रकट हुए और पीड़ितों के परिवारों ने उनके समक्ष अपना दुखड़ा रोया। बहरहाल, मुख्यमंत्री ने आसपास के ज़िलों से अतिरिक्त चिकित्सकों आदि को भेजने के साथ-साथ लखनऊ से विशेषज्ञों की एक टीम को भेजे जाने का निर्देश दिया ताकि बीमारी के मूल कारणों की पड़ताल की जा सके।
बीमारी की भयावहता और इसके अनियंत्रित होते चले जाने से 8 सितम्बर को केंद्र सरकार ने प्रदेश के प्रशासन को समूचे मामले में गहरी पड़ताल किये जाने के दिशा निर्देश जारी किए।
इससे एक दिन पहले ही केंद्र सरकार के एक दल ने फ़िरोज़ाबाद का मुआयना किया था। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्य के मुख्य सचिव को लिखा कि केंद्रीय जाँच दल ने ज़्यादातर मामलों में डेंगू को सुनिश्चित किया है जबकि अनेक मामलों में ‘स्क्रब टाइफस' और 'लेप्टोस्पाइरोसिस' जैसी बैक्टीरिया जनित बीमारियों की पुष्टि भी हुई है। केंद्र ने राज्य सरकार से फ़िरोज़ाबाद सहित निकटवर्ती ज़िलों में ‘एलिसा जाँच’ सुविधाओं को मज़बूत करने के अलावा बुखार सर्वे और बुखार कैम्प लगाए जाने के दिशा निर्देश भी दिए। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार इन ज़िलों में ज़िला अस्पताल, 'प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र' और 'केंद्रीय स्वास्थ्य केंद्र' के डॉक्टरों के लिए 'डेंगू', 'स्कर्ब टायफस' और 'लेप्टोस्पाइरोसिस' आदि बीमारियों के प्रशिक्षण कैम्प भी आयोजित करे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इसमें कोई क़दम भी नहीं उठाया गया है।
यद्यपि 3 अगस्त के अपने दौरे में मुख्यमंत्री इन बीमारियों की स्थिति में लोगों से सरकारी अस्पतालों तक पहुँचने की अपील कर गए थे लेकिन इतना सब हो जाने के बावजूद डेंगू और अन्य बैक्टीरिया जनित बीमारियों की जाँच के लिए फ़िरोज़ाबाद में सीमित सरकारी लैब की उपलब्धता में कोई इज़ाफ़ा नहीं किया गया। इसका परिणाम यह है कि मरीज़ों की रिपोर्ट मिलने में 48 घंटे तक लग रहे हैं और तब तक मरीज़ों को दाख़िला देने में सरकारी अस्पताल आनाकानी करते हैं। मीडिया ने ऐसे अनेक मामलों को रिपोर्ट किया है जिनमें मरीज़ों के अस्पताल में पहुँचने के बावजूद 2 दिन तक दाखिला नहीं दिया गया और इस भागमभाग में उनकी मृत्यु हो गयी।
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