आगरा के अरुण कुमार वाल्मीकि को मैं पिछले कई बरसों से देखता आ रहा था। लोहामंडी के पल छिंगा मोदी नाले के किनारे बसी वाल्मीकि बस्ती उसकी कई-कई पीढ़ियों का वास रही है। चोरी या किसी अन्य छोटी-बड़ी अपराध की किसी वारदात में कभी उसका नाम नहीं आया। उसके रिश्ते के भाई वीरू और संजय वाल्मीकि के बच्चे हमारे 'बस्ती के रंगमंच' में कला और संस्कृति का नियमित प्रशिक्षण लेने वालों में शामिल हैं। वह प्रायः वीरू वाल्मीकि के साथ मेरे यहाँ आता-जाता रहता था।
आगरा: अरुण वाल्मीकि के परिजनों को कब मिलेगा इंसाफ़?
- विचार
- |
- अनिल शुक्ल
- |
- 23 Oct, 2021


अनिल शुक्ल
बिलख-बिलख कर रोती अरुण की मां के इस बयान को कोई भला कैसे नकार सकेगा कि "थाने में पुलिस थी तो वो अकेला कैसे चोरी कर सकता है? वह पुलिसवालों के नाम बताने वाला था, इसलिए उसकी जान ले ली गयी।"
सामान्य बातचीत में वह काफी सुलझा और समझदार लगता था। मैंने उसे कभी उटपटांग बातें करते नहीं देखा-सुना। वह कई सालों से पुलिस थाना जगदीशपुरा में सफाईकर्मी के रूप में काम करता था लिहाज़ा अन्य वाल्मीकि युवकों की तुलना में उसकी नियमित आय थी।
यही वजह है कि गाहे-बगाहे भाइयों, मित्रों और रिश्तेदारों के साथ उसका बर्ताव हमेशा मददगारी का रहता था। उनके बीच वह बड़ा लोकप्रिय था लिहाज़ा, वे सब उसके प्रशंसक थे।