गैंगरीन की तरह सड़ती जा रही देश की अर्थव्यवस्था, निजीकरण की बाढ़ से जूझते जन असंतोष, सुरसा सी बढ़ती बेरोज़गारी, हाड़ तोड़ने वाली महंगाई और चकनाचूर हो चुका स्वास्थ्य सेवाओं का ढाँचा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के पास इन सभी बीमारियों से निबटने के 2 ही इलाज हैं। वे या तो देश को धार्मिक ध्रुवीकरण का इंजेक्शन देना जानते हैं या जातिवादी विभाजन का कैप्सूल खिलाना।
राजा महेंद्र प्रताप के बहाने मोदी के हसीन सपने!
- विचार
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- 16 Sep, 2021

मोदी और उनके बाक़ी सिपहसालारों को बड़े और ज्वलंत सवालों को हल करने के लिए उनकी तह में जाए बिना फौरी जोड़-तोड़ से उन्हें टालने की आदत पड़ गयी है। काफ़ी मामलों में वे कामयाब भी होते आये हैं लेकिन 7 साल के बीजेपी शासनकाल में पहली बार किसान आंदोलन उनके गले में फाँस बन कर अटक गया है।
चूंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अभी 7 महीने का वक़्त बचा है लिहाज़ा 'कैप्सूल' के साथ बीते मंगलवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना चुनावी अभियान शुरू किया। इस बार किसी विरोधी राजनीतिक दल पर निशाना लगाने की जगह इस बार उन्होंने ‘जाति’ का आखेट किया। जाट परिवार में जन्म लेने राजा महेंद्र प्रताप का नाम जप कर उन्होंने अलीगढ़ में एक नए राज्य विश्वविद्यालय की आधारशिला रख दी और इस करतब से उस विद्रोही जाट विरोध की रीढ़ तोड़ने की कोशिश की जो उनकी निगाह में इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन की रीढ़ बनी हुई है!