‘यूपी गौ संरक्षण क़ानून’ के समुचित पालन के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के हाल के फ़ैसले ने योगी सरकार पर कस कर तमाचा जड़ा है। 5 अगस्त को शामली में गिरफ़्तार रहमुद्दीन की ज़मानत याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने निरपराध लोगों के प्रति निरंतर हो रहे गौ संरक्षण क़ानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
गौ-संरक्षण क़ानून- बिना क़सूर अभियुक्त को जेल: हाई कोर्ट
- उत्तर प्रदेश
- |
- |
- 28 Oct, 2020

गौ प्रेम का शंखनाद करने वाली बीजेपी सरकार ने देसी गायों की ब्रीड के विकास के लिए 6 साल में पहली बार 2019-20 में 2000 करोड़ रुपये का संकल्प पत्र पेश किया था लेकिन पूरे साल में आवंटन के नाम पर 'राष्ट्रीय गोकुल मिशन' की 'फ्लैगशिप' पर केवल 500 करोड़ रुपये आवंटित हुए। उसमें भी वास्तविक ख़र्च कितना हुआ, कोई नहीं जानता।
यूँ तो 7 राज्यों को छोड़कर गौ वध पर देश के सभी राज्यों में प्रतिबन्ध लागू है लेकिन जिस 'तन्मयता' से उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में अपना डंडा चलाया है, और वैधानिकता की तमाम हदों को पार कर दिया है, उसका उदाहरण देश में दूसरा नहीं मिलता। योगी आदित्यनाथ के कुर्सी पर पदासीन होने के बीते साढ़े 3 सालों में 'गौ वध संरक्षण क़ानून को लेकर लगभग 10 हज़ार से ज़्यादा मुक़दमे दायर हुए हैं। अपने फ़ैसले में माननीय न्यायालय ने कहा, ‘ज़्यादातर मामलों में गौमांस की न तो जाँच की जाती है और न उसे फोरेंसिक जाँच के लिए ही भेजा जाता है। अभियुक्त ऐसे क़सूर के लिए लगातार जेल में पड़ा रहता है जो उसने किया ही नहीं होता है।’