दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर इन दिनों सरयू नगरी से 'अयोध्या की रामलीला' का लाइव प्रसारण चल रहा है। 17 अक्टूबर से शुरू होकर 9 दिनों के लिए प्रसारित होने वाली इस 'अयोध्या की रामलीला' को एक दिन (अवधि 3 घंटा प्रतिदिन) भी बर्दाश्त कर पाना उन दर्शकों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है जो दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों की गुज़री रामलीलाओं को देख चुके हैं। करोड़ों रुपये की फ़ीस के सरकारी भुगतान अदायगी और एक दर्ज़न से ज़्यादा टीवी कैमरा ('मल्टी कैम') यूनिट (जिनके लगभग 30 टेक्नीशियनों और कर्मचारियों के टीए/डीए पर अतिरिक्त लाखों रुपये व्यय किये गए होंगे) के कुल ख़र्चों की सहायता से 27 घंटों का यह प्रसारण दूरदर्शन की अब तक की सबसे कमज़ोर और उबाऊ प्रस्तुतियों के रूप में दर्ज़ होगा जिसकी झोली में विज्ञापन भी इक्का-दुक्का ही थे।
अयोध्या की रामलीला: कमज़ोर, उबाऊ प्रस्तुति रामलीला का अपमान!
- विचार
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- 21 Oct, 2020

दिलचस्प बात यह है कि जैसे-जैसे दूरदर्शन पर धार्मिक खंडकाव्यों के प्रसारण ने ज़ोर पकड़ा, शहरों और क़स्बों में होने वाली रामलीलाओं पर साम्प्रदायिकता की राजनीति हावी होने लग गई। बीते 30 वर्षों का युग सांस्कृतिक परचम के सांप्रदायिक राजनीति की ध्वजा में परिवर्तित होते चले जाने का युग है जिसकी चरम परिणति ‘अयोध्या की रामलीला’ है।