कोरोना से उपजे एहतियात के चलते दिल्ली, अयोध्या के अपवाद को छोड़कर समूचा देश इस बार रामलीलाओं का आनंद उठाने से चूक जाएगा। हिंदी कैलेण्डर के अश्विन मास के दौरान देश के उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक के अधिकांश भागों में रामलीलाएँ सैकड़ों सालों से एक शानदार, विराट, अभूतपूर्व और मनोरंजक सांस्कृतिक परिघटना होती रही है। शताब्दियों से यह मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बहुजातीय और बहुनस्लीय विराट चिंतन का प्रतिनिधित्व करती आई है। आज भी इनकी अंतरात्मा लोकपक्षीय बनी रहने के बावजूद आख़िर इनके आँचल पर संकुचित विचारों का भारी-भरकम रंग कैसे चढ़ गया है, यह सोचने की बात है।