किसानों के ख़िलाफ़ किस हद तक सरकार और प्रशासन कार्रवाई कर रहे हैं, इसका अंदाज़ा कोर्ट की इस टिप्पणी से लगाया जा सकता है कि उसे यह कहना पड़ा है कि वह प्राकृतिक न्याय के ख़िलाफ़ न जाए। किसान आंदोलन से जुड़े उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के किसानों से संबंधित यह मामला है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को ज़िला प्रशासन से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ न जाने की बात तब कही जब वह एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में कहा गया था कि सीतापुर प्रशासन ने उन किसानों को नोटिस जारी कर बॉन्ड और ज़मानत के पैसे जमा करने के लिए कहा था जिनके पास ट्रैक्टर हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती धुरू ने याचिका में आरोप लगाया था कि ज़िला प्रशासन द्वारा काफ़ी ज़्यादा रुपये के पर्सनल बॉन्ड मांगे जाने के कारण किसान आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। इसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों से 50 हज़ार से लेकर 10 लाख रुपये तक के बॉन्ड और ज़मानत की माँग की गई थी। इसके लिए यह क़ारण बताया गया है कि वे क़ानून-व्यवस्था का उल्लंघन कर सकते हैं। धुरू ने 25 जनवरी को यह याचिका लगाई थी। इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीतापुर प्रशासन से जवाब माँगा था। इसने प्रशासन से यह भी पूछा था कि किन परिस्थितियों में इतने ज़्यादा रुपये के पर्सनल बॉन्ड और दो ज़मानतों की माँग की गई है।
बता दें कि किसान केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दो महीने से ज़्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों को रोकने के लिए दीवारें खड़ी की गई हैं और कंटीले तार लगाए गए हैं। भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। इससे पहले भी किसान ऐसी ही कई बाधाओं को पार कर दिल्ली की सीमा पर पहुँचे हैं। क़रीब ढाई महीने पहले जब किसान दिल्ली की ओर रवाना हुए थे तो कड़कड़ाती ठंड में किसानों पर पानी की बौछारें की गई थीं, लाठी चार्ज किया गया था, आँसू गैस के गोले दाग़े गए थे, रास्ते पर गड्ढे खोद दिए गए थे, भारी तादाद में पुलिस बल को तैनात किया गया था।
किसानों को रोकने की कई कोशिशों के बावजूद वे डटे रहे और आगे बढ़ते रहे। अब किसान कई राज्यों से दिल्ली जाकर आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और प्रशासन उन्हें रोकने के बंदोबस्त करने में लगा है।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में प्रशासन ने जो कार्रवाई की उसे भी उसी के तहत एक प्रयास के तौर पर देखा गया और हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ़ से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता वीके शाही ने अदालत को बताया कि 162 लोगों को 10 लाख रुपये के बॉन्ड भरने और इस तरह की राशि की दो ज़मानतों के लिए नोटिस जारी किए गए थे। शाही ने कहा कि 162 में से 43 लोग मामले में अधिकारियों के सामने पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि एक ताज़ा चालान रिपोर्ट के आधार पर उन सभी के ख़िलाफ़ कार्रवाई को हटा दिया गया है 'क्योंकि अब शांति भंग करने या सार्वजनिक शांति भंग करने की कोई आशंका नहीं है'।
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सरकारी वकील ने जस्टिस रमेश सिन्हा और राजीव सिंह को आश्वासन दिया कि 'वह डीएम को भविष्य में सचेत रहने का निर्देश देंगे जब कभी भी ऐसी कोई कार्रवाई शुरू की जाए ताकि किसी व्यक्ति को अनावश्यक परेशान न किया जाए व उनके तहत काम करने वाले एसडीएम को भी निर्देश दिया जाए।'
रिपोर्ट के अनुसार, न्यायाधीशों ने कहा कि वे आशा और विश्वास करते हैं कि डीएम और एसडीएम 'व्यक्तिगत बॉन्ड और ज़मानत के ऐसे मामलों में आदेश आदेश पारित करने में सावधानी बरतेंगे'। उन्होंने कहा कि ऐसा आदेश न हो जो मनमानी वाला और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ हो।'
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