समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव अब धीरे-धीरे चुनावी मोड में आ रहे हैं। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में उनकी सक्रियता और पत्नी डिंपल यादव को मिली जीत के बाद माना जा रहा था कि वो अब फिर से चुप होकर बैठ जाएंगे। लेकिन अब अखिलेश 2024 की तैयारी करते नजर आ रहे हैं। पार्टी को नए सिरे से सक्रिय करने के लिए अब वो पूरे यूपी का दौरा शुरू करने जा रहे हैं। चाचा शिवपाल सिंह यादव से शीत युद्ध थमने के बाद भी अखिलेश काफी रिलैक्स महसूस कर रहे हैं।
अखिलेश यादव 20 दिसंबर को कानपुर जा रहे हैं, जहां वो जेल में बंद इरफान सोलंकी से मुलाकात करेंगे। सपा का आरोप है कि योगी सरकार सपा विधायक इरफान सोलंकी को बेवजह परेशान कर रही है। इस कार्यक्रम के लिए सपा विधायक (आर्य नगर) अमिताभ वाजपेयी ने पोस्टर भी जारी किया है। इस पोस्टर में अखिलेश को छोटे नेताजी लिखा गया है। दरअसल, हाल ही में एक कार्यक्रम में शिवपाल यादव ने यह नाम अखिलेश को दिया है। शिवपाल ने कहा था कि अखिलेश को अब छोटे नेताजी कहा जाए। उन्होंने पूरी पार्टी से यह अपील की थी। अखिलेश को भी यह नाम अभिभूत कर गया और पहला पोस्टर कानपुर में सपा विधायक ने जारी कर दिया।
इसी तरह अखिलेश 22 दिसंबर को झांसी जा रहे हैं, जहां वो जेल में बंद पूर्व विधायक दीप नारायण से मुलाकात करेंगे। दरअसल, सपा का मानना है कि हर जिले में प्रमुख सपा नेताओं पर फर्जी केस दर्ज कर उन्हें जेल में डालने की साजिश योगी सरकार कर रही है। इसके खिलाफ बोलना और खड़ा होना जरूरी है। यूपी के अन्य जिलों से भी सपा मुख्यालय ने अखिलेश के दौरे के कार्यक्रम मांगे हैं।
मैनपुरी उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित कल शुक्रवार को पहली बार अखिलेश सपा मुख्यालय पहुंचे थे। जहां वो करीब चार घंटे तक रहे। कल तमाम जिलों से पार्टी कार्यकर्ता और नेता निकाय चुनाव में पार्टी टिकट के लिए आवेदन करने आए थे। अखिलेश ने एक-एक कार्यकर्ता से मुलाकात की और पूछा कि क्या वो निकाय चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं। अखिलेश ने कहा कि जल्द ही वो उनके जिले में आएंगे।
समझा जाता है कि अखिलेश यह तैयारी 2024 के मद्देनजर कर रहे हैं। क्योंकि यूपी में बीजेपी के मुकाबले फिलहाल सपा ही मुख्य पार्टी है, जिसकी जिम्मेदारी बीजेपी को चुनौती देने की ज्यादा है। योजना यह है कि स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान पार्टी काडर को पूरी तरह सक्रिय कर दिया जाए और बीच में अखिलेश का दौरा भी होता रहेगा। इससे पार्टी को 2024 की तैयारी में मदद मिलेगी। इसी के मद्देनजर शिवपाल यादव की भूमिका पार्टी संगठन में बड़ी होने जा रही है।
तमाम उतार-चढ़ाव के बाद अखिलेश को यह समझ आ गया है कि पार्टी में कद्दावर नेताओं की बहुत जरूरत है। शिवपाल के सामने आने के बाद यह कमी दूर हो जाएगी। अखिलेश ने हाल ही में चाचा को बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कही थी। अखिलेश को मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के दौरान यह भी समझ आ गया कि शिवपाल संगठन के नजरिए से बहुत मदद कर सकते हैं। मैनपुरी की जीत का काफी श्रेय शिवपाल को दिया गया है।
अखिलेश की गलतियां
अखिलेश जाग तो गए लेकिन काफी देर भी कर दी है। पार्टी कार्यकर्ताओं की मुख्य शिकायत ही यह रही है कि पिछले विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में अखिलेश पूरी तरह से घर बैठे रहे। आजमगढ़ के पिछले लोकसभा उपचुनाव में वो प्रचार करने नहीं गए। बीएसपी में जाने से पहले गुड्डू जमाली आजमगढ़ से टिकट मांगते रहे लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया तो उनके चुनाव प्रचार के लिए एक दिन भी नहीं पहुंचे। इस बार जब पत्नी को मैनपुरी से जिताने की जिम्मेदारी आई तो घर-घर वोट मांगने पहुंचे लेकिन इस बार भी रामपुर और खतौली में चुनाव प्रचार करने नहीं पहुंचे। हालांकि खतौली में जयंत चौधरी की पार्टी रालोद लड़ रही थी, लेकिन गठबंधन की सीट होने की वजह से जाना बनता था। रामपुर को लेकर तो अखिलेश की गलतियां एक नहीं अनेक हैं। वरिष्ठ सपा नेता आजम खान जब तक जेल में रहे, अखिलेश कभी भी उन्हें मिलने नहीं पहुंचे। उनके मुकाबले जब शिवपाल नाराज चल रहे थे तो आजम से मिलने कई बार सीतापुर जेल में पहुंचे।
पैगंबर पर टिप्पणी को लेकर यूपी में प्रदर्शनकारी मुसलमानों की जब धर पकड़ शुरू हुई और उनके घर बुलडोजर से गिराए जाने लगे तब भी अखिलेश की खामोशी बरकरार रही, उनके सिर्फ चंद ट्वीट ही दिखाई देते थे। जबकि उस समय लोग समाजवादी पार्टी से राज्यव्यापी आंदोलन की उम्मीद कर रहे थे। यूपी विधानसभा में इस बार सपा से 34 मुस्लिम विधायक जीत कर पहुंचे हैं। सपा-रालोद गठबंधन को कुल 125 सीटें मिली थीं। सपा का वोट शेयर भी बढ़कर 36 फीसदी तक पहुंच गया। इतने सारे संकेतों के बावजूद अखिलेश अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर खड़े नहीं हुए। ऊपर आजमगढ़ का जिक्र आ चुका है। वहां लोकसभा उपचुनाव में मुसलमानों का वोट बंटने और सपा से मोह भंग होने के कारण बीजेपी वो सीट सपा से छीन ले गई।
इस समय अखिलेश के सामने 2024 के मद्देनजर मुस्लिम और यादव वोट समेटे रखना ही सबसे बड़ी चुनौती हैं। बीएसपी प्रमुख मायावती भी तमाम वजहों से सक्रिय हो रही हैं। वो तमाम मुस्लिम नेताओं को बीएसपी में शामिल करा रही है। यादव वोट काफी बड़ी तादाद में बीजेपी में चला गया है। इन सारी वजहों से अखिलेश के सामने 2024 की चुनौतियां बड़ी हैं। अगर वो लोकसभा आम चुनाव में 20-25 सीटें नहीं जीत पाए तो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की पहचान कभी नहीं बन पाएगी, जिसका सपना नेता जी मुलायम सिंह यादव अपने साथ लेकर जा चुके हैं।
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