loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
51
एनडीए
29
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
225
एमवीए
52
अन्य
11

चुनाव में दिग्गज

हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट

आगे

गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर

पीछे

झूठ है कि मैकॉले भारत को मानसिक ग़ुलाम बनाना चाहते थे

क्या लॉर्ड थॉमस बैबिंग्टन मैकॉले ने सचमुच भारत की कमर तोड़ने और इसे मानसिक रूप से ग़ुलाम बनाने के लिए इसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट कर दिया? क्या इसी मक़सद से उन्होंने भारत पर अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था थोप दी? क्या कभी हमने सोचा है कि जिस व्यक्ति का हमने दानवीकरण कर दिया है, उसकी हक़ीक़त क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं कि झूठ और तथ्यों को ग़लत सन्दर्भ में रखा गया है?
सम्बंधित खबरें
इसके लिए यह कहा जाता है कि मैकॉल ने भारत आने से पहले ब्रिटिश संसद में 2 फ़रवरी 1835 को एक भाषण दिया था, जो इस तरह है:

मैंने भारत का विस्तृत भ्रमण किया और मैंने ऐसा एक भी आदमी नहीं देखा जो भीखमंगा हो या जो चोर हो। ऐसी पूंजी हमने इस देश में देखी, ऐसा उच्च नैतिक मूल्य देखा, ऐसे प्रखर लोग देखे कि मुझे लगता नहीं है कि हम कभी भी इस देश को जीत सकते हैं, जब तक इस राष्ट्र की कमर, जो इसकी संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत में निहित है, नहीं तोड़ देते।


मैकॉले का कथित भाषण

लिहाज़ा, मैं प्रस्तावित करता हूँ कि हम इसकी प्राचीन शिक्षा पद्धति और संस्कृति को बदलें, क्योंकि अगर ये भारतीय यह सोचने लगें कि हर वह चीज जो विदेशी है और अंग्रेज़ी है वह उनकी अपनी चीजों से अच्छी और महान है तो उनका आत्म-सम्मान और उनकी संस्कृति ख़त्म होगी और (तब) वे वही होंगे तो हम उन्हें होने देना चाहते हैं- एक सचमुच का ग़ुलाम राष्ट्र।


मैकॉले का कथित भाषण

इस कथित भाषण को बार बार उद्धृत किया जाता है। भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री, माई लाइफ़’  में इसका उद्धरण दिया है।

पर क्या यह सच है? क्या वाकई मैकॉले ने यह कहा था?
  • झूठ 1 :  जिस तारीख़ और जगह (ब्रिटिश पार्लियामेंट) का यह भाषण बताया जा रहा है, मैकॉले उसके आठ महीने पहले 10 जून, 1834 को वह तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक के बुलावे पर भारत आ चुके थे। लिहाज़ा ब्रिटिश संसद में उनके भाषण देने का प्रश्न ही नहीं उठता।
  • झूठ 2 : मैकॉले ने पूरा भारत भ्रमण किया ही नहीं था।
  • झूठ 3 : फिर जिस देश में भीख माँगना एक संस्थागत स्वरूप में हो, जिसमें दान-पुण्य हो और भीख माँगना आदिकाल से चला आ रहा हो उस देश में किसी काल खंड में एक भी भिखारी पूरे देश में न दिखे यह संभव है? और वह भी तब जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने 86 साल के वर्चस्व में भारत के उद्योग, शिल्प और उससे जुड़ी ‘समृद्धि’ ख़त्म कर दी हो? 
  • झूठ 4 : मैकॉले को पूरे भारत में चोर या चोरी की एक भी घटना नहीं मिली जबकि उस काल में मेजर जनरल स्लीमन ने पिंडारियों (लुटेरों) के ख़िलाफ़ देशव्यापी अभियान चला रखा था? पिंडारियों की लूट और हत्या उस समय की सबसे बड़ी समस्या मानी जाती थी। 
  • झूठ 5 : मैकॉले घोर नस्लवादी थे और ग़ैर-यूरोपीय लोगों, ख़ास कर भारतीयों, के ज्ञान के प्रति उसमें ज़बरदस्त हिकारत का भाव था।  जो मैकाले यह कह सकता है समूचा भारतीय ज्ञान ब्रिटेन की किसी छोटी सी लाइब्रेरी की छोटी सी अलमारी में बंद किताबों से भी कम है, वह कैसे कह सकता है कि इस देश के लोगों में अद्भुत मेधा है, परिष्कृत संस्कृति और अप्रतिम नैतिकता है? 
  • झूठ 6 : उस समय तक अधिकांश भारत अंग्रेजों के कब्जे में आ चुका था और इसकी कमर तोड़ने के लिए इसकी संस्कृति और उस संस्कृति के प्रति समाज की प्रतिबद्धता की कमर तोड़ने की ज़रुरत हीं नहीं थी.
  • झूठ 7 : जिन अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग भाषण में बताया गया है वे शब्द मैकॉले के ज़माने में प्रचलित नहीं थे। फिर वर्तनी और व्याकरण की भी अशुद्धियाँ स्पष्ट हैं, मैकॉले साहित्यकार भी थे और उनकी कविताएँ स्तरीय होती थीं। 
McCaulay told to make India slave mentally? - Satya Hindi

क्या कहा था मैकॉले ने?

भारत आने के पहले ब्रिटिश संसद में दिनांक 10 जुलाई, 1833 को दिए अपने लम्बे भाषण में मैकॉले ने अपना ध्येय व अपनी अवधारणा प्रस्तुत की और अपेक्षा की कि सरकार की नीतियाँ उन्हीं के अनुरूप हों।  मैकॉले का मिशन भारतीय समाज को मॉडर्न शिक्षा से आधुनिक सोच की ओर ले जाना और उससे उनके अन्दर नए प्रजातान्त्रिक संस्थाओं के प्रति झुकाव बढ़ाना और अंत में स्वतन्त्रता की मांग करना था।

हमारे लिए यह बेहतर होगा कि एक कुशासित प्रजा के बजाय एक सुशासित समाज से जो हमसे स्वतंत्र शासन में अपने राजाओं द्वारा शासित हो, व्यापार करें, यह प्रजा ग़रीब रहे तो हमारा उद्योग भी नहीं पनपेगा। एक सभी समाज से व्यापार करना अज्ञानी और ग़रीब प्रजा पर शासन करने से बेहतर होगा....... क्या हम यह चाहते हैं कि भारत की जनता अज्ञान के गर्त में डूबी रहे ताकि हम उन पर शासन करते रहें? क्या हम उनकी अपेक्षाओं को उभारे बगैर उन्हें शिक्षित कर सकेंगें? ज्ञान होगा तो वे भी यूरोपीय संस्थाओं (प्रजातांत्रिक संस्थाओं ) की चाह करने लगेंगे।


थॉमस बैबिंग्टन मैकॉले

ऐसा दिन कब आयेगा मैं नहीं कह सकता लेकिन मैं कभी भी इस तरह की भारतीय जनता की कोशिश (स्व-शासन की) को न तो रोकूंगा न धीमा करना चाहूँगा। जिस दिन ऐसा होगा .... कि भारत की जनता नागरिक अधिकारों के लिए सोचने लगेगी, वह ब्रिटेन के इतिहास का स्वर्णिम दिन होगा।


थॉमस बैबिंग्टन मैकॉले

सच क्या है?

लॉर्ड मैकॉले का 2, फ़रवरी का भाषण एक लिखित रिपोर्ट के रूप में था, जो उन्होंने तत्कालीन वाइसराय के परिषद् के शिक्षा सदस्य के रूप में अपने मिनट्स में दिया था। उस रिपोर्ट में भी मैकॉले की कोशिश थी कि देश को वैज्ञानिक सोच की ओर उन्मुख कराया जाये और उन्हें आधुनिक विकास का लाभ मिले। यह बात सही है कि भाषण के अंश में उन्होंने भारतीय संस्कृति और ज्ञान को हिकारत से देखा और अंग्रेज़ी और विज्ञान पढाए जाने की वकालत की। पर उन्होंने ऐसा कहने के लिए आंकड़े दिए। उन्होंने ने बताया कि उनके पास सैकड़ों युवाओं के शिकायती पत्र आये हैं कि शासन से मिले वजीफ़े से वे केवल संस्कृत या अरबी की पढाई कर अपने जीवन के 12 साल बर्बाद कर चुके हैं।  उन्हें न तो गाँव में इज्ज़त मिल सकी है न हीं कहीं नौकरी। 
मैकाले ने परिषद् के सदस्यों को बताया कि किस तरह पिछले २१ साल से अंग्रेज़ सरकार हर साल एक लाख रुपये शिक्षा के विकास के लिए देती है। संस्कृत और अरबी की किताबें गोदामों में दीमक के हवाले हैं, क्योंकि कोई इसे मुफ़्त में भी लेने को तैयार नहीं है।
मैकॉले ने यह भी खुलासा किया कि भारतीय युवाओं का बड़ा वर्ग अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए महंगी ट्यूशन फ़ी देने में नहीं हिचकता है। यही कारण है कि मैकॉले गरीब युवाओं को विज्ञान और अंग्रेज़ी की शिक्षा दे कर उन्हें रोज़गारपरक बनाना चाहते थे। इसका एक मक़सद और भी था और वह यह कि इस तरह से शिक्षित युवा भारत की जनता और अंग्रेज़ी शासन के बीच एक संवाद का काम करेंगे और विकास की रफ़्तार के प्रति गाँव तक में चेतना जागृत करेंगे। लेकिन आज उनकी आत्मा शायद अपनी प्रति हो रहे अन्याय को देख कर क़ब्र में कुढ़मुढ़ाती होगी।  
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

इतिहास का सच से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें