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तेलंगाना पत्रकार गिरफ्तारी: कांग्रेस के 'बोलने की आजादी' के दावों पर सवाल क्यों?

तेलंगाना में कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। इस बार मामला दो महिला पत्रकारों, रेवती पोगदडांडा और तन्वी यादव की गिरफ्तारी का है। इन्हें राज्य सरकार और सीएम की आलोचना करने के आरोप में हिरासत में लिया गया। हैदराबाद साइबर क्राइम पुलिस ने दोनों को एक दिन पहले उनके घरों से गिरफ्तार किया। इस कार्रवाई ने कांग्रेस के 'बोलने की आजादी' और 'लोकतंत्र की रक्षा' के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। तेलंगाना में विपक्षी दल और पत्रकार संगठन इस पर कांग्रेस सरकार की आलोचना कर रहे हैं। 

रेवंत रेड्डी सरकार की आलोचना क्यों हो रही है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर दोनों पत्रकारों को किन आरोपों में गिरफ़्तार किया गया। पुलिस के अनुसार, यह कार्रवाई कांग्रेस सोशल मीडिया सेल के राज्य सचिव की शिकायत पर आधारित थी। शिकायत में कहा गया कि रेवती और तन्वी ने अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म 'पल्स टीवी' पर एक वीडियो पोस्ट किया था, इसमें एक बुजुर्ग किसान ने सीएम रेवंत रेड्डी के ख़िलाफ़ कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इस वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 'निप्पो कोडी' हैंडल से साझा किया गया। इसके बाद यह वायरल हो गया। पुलिस ने इसे 'क़ानून-व्यवस्था के लिए ख़तरा' करार देते हुए दोनों पत्रकारों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया। उनके पास से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस भी जब्त किए गए।

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रेवती ने गिरफ्तारी से पहले एक्स पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने कहा, 'पुलिस मेरे दरवाजे पर है। रेवंत रेड्डी मुझे चुप कराना चाहते हैं और मेरे परिवार पर दबाव डाल रहे हैं।' उनके इस बयान से उनके समर्थकों और पत्रकार बिरादरी में ग़ुस्सा फूट पड़ा।

इस घटना ने राज्य में विपक्षी दलों को कांग्रेस पर हमला करने का मौका दे दिया। भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने इसे आपातकाल जैसी स्थिति करार दिया। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'सुबह 5 बजे महिला पत्रकारों को गिरफ्तार करना क्या यही आपकी मोहब्बत की दुकान है, राहुल गांधी जी?' 

वहीं, बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, 'किसानों की दुर्दशा दिखाने के लिए पत्रकारों को जेल भेजा जा रहा है। यह कांग्रेस का असली चेहरा है।' दूसरी ओर, कांग्रेस की ओर से इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करती रही कांग्रेस इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। यह चुप्पी उनके दावों को और कमजोर करती नज़र आ रही है।
कांग्रेस ने हमेशा दावा किया है कि वह लोकतंत्र और बोलने की आज़ादी की रक्षक है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और मोहब्बत की दुकान जैसे नारे इसी छवि को मजबूत करने के लिए गढ़े गए थे। लेकिन तेलंगाना की इस घटना ने इन दावों पर सवाल खड़े कर दिए।
यह पहला मौक़ा नहीं है जब रेवंत रेड्डी सरकार पर प्रेस की आज़ादी को दबाने का आरोप लगा हो। पिछले साल भी सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के मामले सामने आए थे।
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पत्रकार संगठनों ने इस गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस गिरफ्तारी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है और सरकार से गिरफ्तार पत्रकारों के अधिकारों और व्यक्तिगत सुरक्षा की रक्षा करने की मांग की है। गिल्ड ने सरकार से यह भी आग्रह किया है कि वह 'यह सुनिश्चित करे कि पत्रकारों के खिलाफ की गई कोई भी कार्रवाई उचित प्रक्रिया का पालन करे और स्वतंत्र अभिव्यक्ति और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखे।' गिल्ड ने कहा, 'पत्रकार की गिरफ्तारी - विशेष रूप से सुबह-सुबह की गई कार्रवाई में - ऐसे मामलों में पुलिस बल के इस्तेमाल को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती है।'
तेलंगाना जर्नलिस्ट्स यूनियन ने इसे 'प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला' बताया और दोनों पत्रकारों की तत्काल रिहाई की मांग की। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ख़तरा करार दिया।
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पुलिस का कहना है कि यह कार्रवाई सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए ज़रूरी थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक किसान के नाराज़गी जाहिर करने का एक वीडियो वास्तव में कानून-व्यवस्था के लिए इतना बड़ा ख़तरा था? क्या सरकार आलोचना से इतनी असहज है कि उसे दबाने के लिए सुबह 5 बजे छापेमारी करनी पड़ी? और सबसे बड़ा सवाल- अगर कांग्रेस सचमुच बोलने की आज़ादी की पक्षधर है, तो यह कार्रवाई उसके सिद्धांतों के ख़िलाफ़ क्यों दिखती है?

यह घटना न केवल तेलंगाना सरकार बल्कि कांग्रेस की राष्ट्रीय छवि के लिए भी एक चुनौती है। एक ओर पार्टी बीजेपी पर लोकतंत्र को कुचलने का आरोप लगाती है, वहीं दूसरी ओर उसके शासित राज्य में ऐसी कार्रवाइयाँ उसके अपने दावों को कमजोर कर रही हैं। यदि कांग्रेस को अपनी साख बचानी है, तो उसे इस मामले में स्पष्ट जवाब देना होगा। नहीं तो, बोलने की आजादी का नारा सिर्फ एक खोखला वादा बनकर रह जाएगा।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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क़मर वहीद नक़वी
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