तेलंगाना का शिक्षा जगत स्तब्ध है। छात्र ही नहीं, अभिभावक, शिक्षक और दूसरे लोग भी गमगीन, शांत और परेशान हैं, वे क्षुब्ध भी हैं। तेलंगाना में इंटरमीडिएट परीक्षा में गड़बड़ी होने की वजह से 22 छात्रों ने ख़ुदकुशी कर ली है, जिससे ऐसा लगता है मानो पूरी शिक्षा व्यवस्था ही फेल हो गई है। कॉरपोरेट शिक्षा व्यवस्था, अभिभावकों की अपेक्षाएँ और उस बोझ को ढोने में नाकाम छात्रों की निराशा को राज्य की लुंजपुंज परीक्षा प्रणाली और लापरवाही ने कई गुणा बढ़ा दिया। लेकिन इतनी बड़ी घटना पर देश में कोई हलचल नहीं हुई है, टेलीविज़न चैनलों पर इस पर कोई बहस नहीं हो रही है, सोशल मीडिया भी चुप है, मानो यह कोई बड़ी बात नहीं है। इससे कई सवाल खड़े होते हैं।
अनियमितताएँ
कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जहाँ विद्यार्थी को परीक्षा में ग़ैर हाज़िर बताया गया, लेकिन उसे पास घोषित किया गया। कई विद्यार्थी ऐसे भी हैं जिनके शून्य अंक मिले। अगर बात इस साल के इंटर परीक्षा परिणामों की की जाय तो अनियमितता का एक बढ़िया उदाहरण मंचारियाल ज़िले की जी. नव्या का है।बारहवीं की परीक्षा में नव्या को तेलुगु के पेपर में शून्य अंक मिला, जबकि उसे ग्यारहवीं में तेलुगु में 90 अंक मिले थे। नव्या का दावा है कि अगर उसकी उत्तर पुस्तिका की दुबारा जांच करवाई गई तो उसे 90 से कम अंक नहीं मिलेंगे।
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कार्रवाई का भरोसा
विद्यार्थी संगठनों ने सरकार से ख़ुदकुशी करने वाले विद्यार्थियों के परिजनों को 50 लाख रुपये की मुआवजा राशि देने की भी माँग की है। कुछ अभिभावकों ने उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया है। विद्यार्थियों और अभिभावकों के आंदोलन को उग्र होता देखकर राज्य सरकार ने फेल हुए सभी विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं की दुबारा जांच करवाने का भरोसा दिलाया है। साथ ही यह भी संकेत दिया है कि मामले की जांच करवायी जाएगी और जो अधिकारी दोषी पाये जाएंगे, उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी।मुआवजे पर चुप्पी
लेकिन ख़ुदकुशी करने वाले विद्यार्थियों के परिजनों को मुआवज़ा देने की मांग पर सरकार की चुप्पी से सभी विद्यार्थी संगठन काफी नाराज़ हैं और इनका आंदोलन जारी है। सभी विद्यार्थी हर दिन सड़कों पर या सरकारी दफ़्तरों के सामने धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। विद्यार्थियों को सभी विपक्षी पार्टियों- कांग्रेस, टीडीपी, बीजेपी और वामपंथी पार्टियों का पुरज़ोर समर्थन मिल रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस साल विद्यार्थियों की खुदकुशी के सबसे ज़्यादा मामले सामने आये हैं। और तो और, इंटर बोर्ड ने खुद अनियमितताओं की बात स्वीकार की है, जिससे समूचा शिक्षा विभाग कटघरे में खड़ा है। सरकार ने भी कोई सख़्त कार्रवाई नहीं की है। इससे भी विद्यार्थी काफी ग़ुस्साए हुए हैं।दक्षिण के सभी राज्यों विशेषकर आंध्र, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में कई अभिभावक सातवीं या आठवीं से ही अपने बच्चों को इंजीनियरिंग या मेडिकल कोर्सों के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में लगा देते हैं।
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