तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने एक बार फिर से फ़ेडरल फ़्रंट बनाने की कवायद शुरू कर दी है। नये सिरे से मुलाक़ातों का दौर शरू हुआ है। केसीआर ने सोमवार को केरल के मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी नेता पिनराई विजयन से मुलाक़ात की। आने वाले दिनों में वह डीएमके के स्टालिन, जेडीएस के देवेगौड़ा, बसपा की मायावती, सपा के अखिलेश यादव, बीजू जनता दल के नेता और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और टीएमसी की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाक़ात करेंगे। केसीआर की कोशिश ग़ैर-भाजपाई और ग़ैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाने की है। दिलचस्प बात यह है कि केसीआर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाएंस यानी यूपीए के घटक दलों जैसे डीमके, जेडीएस के नेताओं से भी बातचीत कर रहे हैं।
केसीआर को लगता है कि इस बार की लोकसभा त्रिशंकु होगी, न तो एनडीए को बहुमत मिलेगा और न ही यूपीए को। ऐसी स्थिति में तीसरे मोर्चे की सरकार बनने के आसार ज़्यादा रहेंगे। केसीआर इस तीसरे मोर्चे को फ़ेडरल फ़्रंट नाम देना चाहते हैं।
सूत्रों कर मुताबिक़, केसीआर की नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। इसी वजह से उन्होंने फ़ेडरल फ़्रंट की पहल की है। सूत्र बताते हैं कि केसीआर एक ख़ास रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। इस रणनीति के तहत वह ख़ुद को दक्षिण से प्रधानमंत्री पद के इकलौते दावेदार के रूप में पेश करेंगे। इसी वजह से उन्होंने दक्षिण की सभी बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों की मदद जुटानी शुरू कर दी है। वाईएसआर पार्टी के नेता जगन मोहन रेड्डी पहले ही केसीआर के फ़ेडरल फ़्रंट पर अपनी मुहर लगा चुके हैं। वामपंथी पार्टियाँ भी केसीआर के साथ हैं। केसीआर को उम्मीद है कि इस बार के चुनाव में तमिलनाडु से डीएमके को सबसे ज़्यादा सीटें मिलेंगी। इसी वजह से वह स्टालिन की मदद हासिल करने के लिए भी एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।
फ़िलहाल केसीआर को छोड़कर किसी अन्य नेता की नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं है। वैसे, इस बार पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा भी चुनाव मैदान में हैं। लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि 85 साल के बुजुर्ग नेता देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने की संभावना कम है। दिलचस्प बात यह है कि चुनाव से कुछ महीने पहले देवेगौड़ा ने चुनावी राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया था, लेकिन फिर अचानक उन्होंने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। देवेगौड़ा ने इस बार कर्नाटक की तुमकुर सीट से अपनी किस्मत आजमायी है। फिर भी उम्र के लिहाज़ से वह प्रधानमंत्री रेस से बाहर हैं। और तो और, उनकी पार्टी जेडीएस सिर्फ़ आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उधर, एनसीपी के शरद पवार ने मायावती, ममता बनर्जी या चंद्रबाबू नायडू में से किसी एक को प्रधानमंत्री बनाने की सिफ़ारिश की है। चूँकि इन तीनों में से चन्द्रबाबू दक्षिण से हैं, वह केसीआर के रास्ते में आड़े आ सकते हैं। लेकिन केसीआर को लगता है कि इस बार के चुनाव में चन्द्रबाबू की टीडीपी की क़रारी हार हो रही है और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को काफ़ी ज़्यादा सीटें मिल रही हैं। इसी वजह से केसीआर ने जगन को अपने साथ ले लिया है।
फ़ेडरल फ़्रंट के सामने कई चुनौतियाँ
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फ़ेडरल फ़्रंट बनाना आसान नहीं है। तीसरा मोर्चा बनने के लिए कई चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ा सवाल इसी बात को लेकर है कि इस मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा? केसीआर ने पहल की है, लेकिन सवाल यही है कि क्या मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, शरद यादव, शरद पवार, नवीन पटनायक, स्टालिन सरीखे नेता उनका नेतॄत्व स्वीकार करेंगे? मान लिया जाए कि अगर कोई और नेता बनने की कोशिश करता है तो क्या दूसरे नेता इस नेता को स्वीकार करेंगे?
तीसरा मोर्चा बनने की स्थिति में भी वह बीजेपी या फिर कांग्रेस की मदद लिए बिना सरकार नहीं बना सकता है। ऐसे में प्रधानमंत्री चुनने में समर्थन करने वाली राष्ट्रीय पार्टी की भूमिका भी लाज़मी है।
इन सबके बीच सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि केसीआर केंद्र की राजनीति करना चाहते हैं और उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। केसीआर केंद्र में जाकर अपने बेटे के. तारक रामा राव केटीआर को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। लेकिन क्या फ़ेडरल फ़्रंट बन पाएगा, यह 23 मई के बाद ही पता चलेगा जब चुनाव परिणाम आएँगे और यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावना है या नहीं। लेकिन केसीआर की तरह ही क्षेत्रीय पार्टियों के कई नेता यही चाहते हैं कि केंद्र में इस बार ग़ैर-बीजेपी और ग़ैर-कांग्रेस सरकार हो।
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