तमिलनाडु सरकार ने तीन नए आपराधिक कानूनों में राज्य-स्तरीय संशोधनों की समीक्षा और सिफारिश के लिए मद्रास हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज एम सत्यनारायणन के नेतृत्व में एक सदस्यीय समिति बनाई है। उम्मीद है कि समिति एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी और अधिवक्ता संघ और अन्य स्टेकहोल्डर्स से सलाह करेगी।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने नए आपराधिक कानूनों में आवश्यक राज्य-स्तरीय संशोधनों पर चर्चा करने के लिए वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों की बैठक सोमवार को सलाह के लिए बुलाई थी। उसी बैठक में इस तरह की कमेटी बनाने का फैसला लिया गया।
नए कानूनों के खिलाफ तमिलनाडु भर में वकीलों के कई संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मद्रास हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ ने तीन नए आपराधिक कानूनों के विरोध में रविवार को अदालती कार्यवाही का बहिष्कार किया था। हालांकि इससे पहले, सीएम स्टालिन ने भी इन कानूनों की आलोचना करते हुए कहा था कि इन्हें संसद में बिना पूरी चर्चा के जल्दबाजी में पारित किया गया। इन कानूनों को उस समय पास किया गया जब संसद चल रही थी। संसद से कई विपक्षी सांसदों को निलंबित करके तीनों कानून पास कर दिए गए।
तमिलनाडु में अकेले स्टालिन या उनकी पार्टी डीएमके ही तीनों नए आपराधिक कानूनों के विरोध में नहीं है। एआईएडीएमके और अन्य राजनीतिक दलों की कानूनी शाखा से जुड़े वकीलों ने भी तीन नए आपराधिक कानूनों का विरोध किया है। 5 जुलाई को मद्रास हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की मदुरै बेंच ने काम से दूर रहने और अदालत में उपस्थित न होने का फैसला किया था।
भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले नए आपराधिक कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1 जुलाई को लागू हुए। तमिलनाडु के कानून विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार का मानना है कि "कुछ बुनियादी धाराओं में कुछ त्रुटियां हैं।" 17 जून को, स्टालिन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इन कानूनों में संशोधन की जरूरत बताई थी।
कर्नाटक भी तीनों नए कानूनों को उसी रूप में लागू करने का विरोध कर रहा है। पिछले हफ्ते, कर्नाटक के कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच के पाटिल ने कहा था कि राज्य इन कानूनों में "23-25 संशोधन" करेगा।
तमिलनाडु कानून विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा, तमिलनाडु ने नए कानूनों के नाम संस्कृत में होने पर भी आपत्ति जताई है, "जो आम लोगों की भाषा नहीं है। संस्कृत न जानने वालों को न्याय पाने के लिए इन अधिनियमों का इस्तेमाल करना होगा"। बता दें कि पहले कानूनों के नाम अंग्रेजी में थे और लोगों की जुबान पर चढ़ चुके थे।
आपराधिक कानून संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III का हिस्सा हैं। संविधान का अनुच्छेद 246 (1) राज्य विधानसभाओं और संसद दोनों को समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देता है। हालाँकि, जब एक ही विषय पर राज्य और केंद्र कानून बनाते हैं और उनमें टकराव होता है तो अनुच्छेद 254 (1) में कहा गया है कि ऐसे में केंद्र का कानून लागू होगा। इसके अतिरिक्त, समवर्ती सूची के किसी विषय पर राज्य के कानून को राष्ट्रपति की सहमति की जरूर होती है। कुल मिलाकर राज्य आपराधिक कानूनों के मामले में बहुत कुछ बदलाव नहीं कर सकते।
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