1987 में एमजीआर के निधन के बाद जिस तरह एआईएडीएमके पर विभाजन की तलवार लटकी थी, कुछ वैसी ही स्थिति मौजूदा समय में भी बनी। तब पार्टी दो खेमों में बंट गई थी, तो क्या मौजूदा समय में पार्टी संभल पाएगी? एआईएडीएमके में बँटवारे का ख़तरा टलता हुआ दिख रहा है या बढ़ता हुआ? एआईएडीएमके की जनरल काउंसिल की बैठक में सोमवार को ई.के. पलानीस्वामी को पार्टी का अंतरिम महासचिव चुना गया है। इसके साथ ही उन्होंने पन्नीरसेलवम को पार्टी से निकाल दिया है। हालाँकि, बैठक से पहले ई.के. पलानीस्वामी यानी ईपीएस और ओ. पन्नीरसेलवम यानी ओपीएस के गुटों में पत्थरबाजी और हाथापाई भी हुई। तो सवाल है कि क्या बैठक में जो तय हुआ उससे दोनों खेमे उस पत्थरबाज़ी और हाथापाई को भूलकर एकजुट हो पाएँगे? और क्या पार्टी अब अंदरुनी क़लह से आगे बढ़कर डीएमके के सामने कड़ी चुनौती पेश कर पाएगी?