क्या उत्तर भारत और दक्षिण भारत में जनसंख्या असंतुलन है और इस वजह से राजनीति पर इसका असर होने वाला है? कम से कम जिस तरह का इशारा पहले आँध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने किया और अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने साफ़-साफ़ कह दिया है, उससे तो यही संकेत मिलता है। स्टालिन ने कहा है कि 'जब लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में कमी आ रही है तो कम बच्चे पैदा करने तक सीमित क्यों रहें? हमें 16 बच्चों का लक्ष्य क्यों नहीं रखना चाहिए?'
दोनों मुख्यमंत्रियों की ऐसी टिप्पणी उन रिपोर्टों के बाद आई है जिनमें कहा गया है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्गठन करने की योजना बना रही है। यानी अब जो निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्सीमन होगा, इसके लिए जनसंख्या को काफ़ी हद तक आधार बनाया जा सकता है। जैसी चिंता अब दक्षिण के नेता जता रहे हैं, उसके अनुसार जनसंख्या कम होने का मतलब होगा कि लोकसभा निर्वाचन सीटों की संख्या अपेक्षाकृत कम हो जाएगी।
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर ऐसी ही चिंता जताते हुए एमके स्टालिन ने सोमवार को तमिलनाडु के लोगों से इस पर विचार करने का आग्रह किया। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'तमिल में एक पुरानी कहावत है, 'पधिनारुम पेत्रु पेरु वझवु वझगा', जिसका अर्थ है कि लोगों के पास 16 अलग-अलग प्रकार की संपत्ति होनी चाहिए।'
स्टालिन चेन्नई में मानव संसाधन और सीई विभाग द्वारा आयोजित नि:शुल्क विवाह समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'लेकिन आज, जब लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में कमी आ रही है, तो यह सवाल उठता है: हमें खुद को कम बच्चे पैदा करने तक सीमित क्यों रखना चाहिए? हमें 16 बच्चों का लक्ष्य क्यों नहीं रखना चाहिए?'
चंद्रबाबू नायडू ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार एक ऐसा कानून लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत केवल दो या उससे अधिक बच्चों वाले लोग ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ सकेंगे।
उन्होंने राज्य की बढ़ती उम्र की आबादी और देश के जनसांख्यिकीय संतुलन पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर चिंता व्यक्त की। दक्षिणी राज्यों, खासकर आंध्र प्रदेश की बढ़ती उम्रदराज आबादी के बारे में चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने दंपतियों से अधिक बच्चे पैदा करने का आग्रह किया।
नायडू ने यह भी कहा, 'हम अधिक बच्चों वाले परिवारों को प्रोत्साहन देने और दंपतियों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के बारे में सोच रहे हैं। हमने दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने वाले पहले के क़ानून को निरस्त कर दिया है। हम एक नया क़ानून लाएंगे, जिसके तहत दो से अधिक बच्चों वाले लोग ही चुनाव लड़ने के पात्र होंगे।
उन्होंने दक्षिण भारत और इसमें भी खासकर आंध्र प्रदेश में वृद्धावस्था संकट के बढ़ते संकेतों के बारे में चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि भारत 2047 तक जनसांख्यिकीय बढ़त बनाए रखेगा, लेकिन देश के दक्षिणी हिस्सों में पहले से ही वृद्ध आबादी के प्रभाव दिखने लगे हैं।
नायडू ने कहा, 'जापान, चीन और कई यूरोपीय देशों जैसे देश वृद्ध आबादी के परिणाम भुगत रहे हैं, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्ग है।' इसके अलावा उन्होंने युवाओं के पलायन के असर की ओर इशारा किया, क्योंकि कई लोग बेहतर अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों या विदेश जा रहे हैं, जिससे गाँवों में बुजुर्ग लोग रह गए हैं। नायडू ने कहा, 'आंध्र प्रदेश और देश भर के कई गांवों में युवा पीढ़ी शहरों में चली गई है, जिससे केवल बुजुर्ग लोग ही रह गए हैं।'
नायडू ने दक्षिणी राज्य में घटती प्रजनन दर का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भारत की औसत जनसंख्या वृद्धि 1950 के दशक में 6.2 प्रतिशत से घटकर 2021 में 2.1 प्रतिशत हो गई है और आंध्र प्रदेश में यह संख्या घटकर 1.6 प्रतिशत रह गई है।
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उन्होंने इस गिरावट के परिणामों पर चिंता व्यक्त की तथा चेतावनी दी कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो आंध्र प्रदेश को 2047 तक वृद्धावस्था की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, 'यह कोई वांछनीय भविष्य नहीं है तथा हमें अभी से कदम उठाना चाहिए।'
उन्होंने कहा, 'हम पहले से ही घाटे में हैं। दो से कम बच्चे होने से युवा आबादी में तेजी से गिरावट आती है। दो से अधिक बच्चे होने से स्थिर जनसंख्या सुनिश्चित होगी।' नायडू ने कहा, 'हमारे पास जनसांख्यिकीय लाभ केवल 2047 तक है। 2047 के बाद आंध्र प्रदेश में युवाओं की तुलना में बुज़ुर्गों की संख्या ज़्यादा होगी। जापान, चीन और यूरोप के कई देशों में ऐसा पहले से ही हो रहा है। ज़्यादा बच्चे पैदा करना भी आपकी ज़िम्मेदारी है। आप यह सिर्फ़ अपने लिए नहीं कर रहे हैं, यह देश के लिए भी फ़ायदेमंद है, यह समाज की सेवा भी है।'
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