देश भर में दंगों और उपद्रवों वाले माहौल का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ सकता है? क्या पहले से ही चरमरा रही अर्थव्यवस्था इससे ध्वस्त हो सकती है? जिस राह पर देश को हाँका जा रहा है वह आम नागरिकों से लेकर उद्योग-धंधों तक पर क्या असर डालेगा? क्या मोदी सरकार इस ख़तरे को समझ पा रही है या फिर हिंदू राष्ट्र की ज़िद में भारत को बदहाली और अराजकता की ओर धकेल रही है?