भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को चाबहार पोर्ट से कारोबार की पेशकश की है। विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डिवीजन के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने 4-5 नवंबर को काबुल का दौरा किया। जहां उन्होंने तालिबान सरकार के मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब से भी मुलाकात की।
भारत की अध्यक्षता में अफगानिस्तान पर २ दिन की क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता कल से शुरू हो रही है . पाकिस्तान ने हिस्साल लेने से पहले ही मना कर दिया था ,और अब चीन ने शेडूलिंग में दिक्कतों के बहाने निमंत्रण ठुकरा दिया है ! ऐसे में इस वार्ता के क्या मायने है, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े के बाद भारत अपनी भूमिका को लेकर पहले ही पिछड़ चूका है , इस वार्ता से क्या बदलेगा
कतर में तालिबान नेतृत्व के एक सदस्य ने कहा है कि वह भारत अफ़ग़ानिस्तान संबंध बरकरार रखना चाहता है। उसने कहा कि भारत 'इस उपमहाद्वीप के लिए बेहद महत्वपूर्ण' है।
अमेरिका ने तालिबान से वार्ता की, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद चीन, पाकिस्तान, ईरान जैसे देशों ने समर्थन की घोषणा की। लेकिन भारत ने क्या किया? कहीं भारत अलग-थलग तो नहीं पड़ता जा रहा है?
अमेरिका ने आतंकवादियों को पनाह देने वाले जिस इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान संगठन की जड़ें उखाड़ने के लिए सितंबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ाई की थी वह अब उसी से अपना पिंड छुड़ा रहा है। भारत अब वहाँ किस रूप में दिखेगा?
यह कितने दुख और आश्चर्य की बात है कि अफ़ग़ानिस्तान भारत का पड़ोसी है और उसके भविष्य के निर्णय करने का काम अमेरिका कर रहा है? भारत की कोई राजनीतिक भूमिका ही नहीं है।