अमेरिका ने जिस तालिबान को उखाड़ने की ठानी थी उसी से सत्ता हस्तांतरण के लिए वार्ता की। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद चीन ने समर्थन की घोषणा की है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान तो खुलेआम समर्थन में हैं ही। ईरान और रूस ने भी तालिबान को मान्यता देने की बात कही है। लेकिन भारत ने क्या किया? तालिबान के ख़िलाफ़ है या समर्थन देने के पक्ष में? इस पर कुछ साफ़ नहीं है। कहीं अफ़ग़ानिस्तान में भारत अलग-थलग तो नहीं पड़ता जा रहा है? वह भी तब जब भारत अफ़ग़ानिस्तान में अब तक क़रीब 3 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। 

तालिबान के प्रति जिस त्वरित गति से चीन, पाकिस्तान, ईरान और रूस जैसे देशों ने प्रतिक्रिया दी है उसकी शुरुआत दरअसल, तब ही हो गई थी जब अमेरिका ने अपने सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने की घोषणा की थी। बल्कि उससे पहले से ही पाकिस्तान, चीन और रूस ख़ास दिलचस्पी ले रहे थे और तालिबान से उनकी बातचीत की ख़बरें भी चल रही थीं। जब तालिबान के साथ अमेरिका की समझौता वार्ता चल रही थी तो इन देशों की कहीं न कहीं काफ़ी ज़्यादा सक्रियता थी।