क्या कर्नाटक सरकार ने धर्मांतरण कानून ख़त्म करने का फ़ैसला करके हिंदुत्व को सीधी चुनौती दे दी है? पिछली सरकार के हिंदूवादी फ़ैसलों को उलटकर क्या उसने सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ जं��� छेड़ दी है? उसके इस जंग-ए-ऐलान का प्रदेश और देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? क्या उत्तर भारत में इससे काँग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है? क्या कर्नाटक की तर्ज़ पर दूसरी काँग्रेसी और ग़ैर बीजेपी की सरकारें भी ऐसा करने का दुस्साहस दिखा पाएंगी?