आईपीएल में गुजरात टाइटंस की जीत सिर्फ नई फ्रैंचाइजी और नये कप्तान हार्दिक पांड्या के लिए एक बड़ी बात नहीं है। अगर क्रिकेट के लिहाज से देखा जाए तो हार्दिक ने एक बहुत पुराने मिथक को भी तोड़ा है।
चाहे टेस्ट क्रिकेट हो या वन-डे क्रिकेट, हमेशा से इस बात पर ज़ोर दिया जाता रहा है कि हर खिलाड़ी के लिए कप्तान की भूमिका में कामयाब होना संभव नहीं और इसलिए वक्त रहते प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को ऐसी बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
क्रिकेट में शुरु से ही उप-कप्तान का पद नहीं होता था लेकिन 80 के दशक में ये चलन आया। उस दौर में उप-कप्तान का कोई वजूद नहीं होता था बस ये माना जाता था कि वो खिलाड़ी अगला कप्तान बनने के लिए तैयार है।
90 के दशक में उप-कप्तान ऐसे खिलाड़ियों को बनाया जाने लगा, जिनके जरिये मौजूदा कप्तान पर थोड़ा दबाव बनाया जा सके। अगर अपवाद के तौर एलन बोर्डर या फिर ग्रेम स्मिथ को छोड़ दिया जाए तो क्रिकेट इतिहास में हमेशा से उन्हीं खिलाड़ियों को कप्तानी मिलती आ रही है जिन्हें फर्स्ट क्लास क्रिकेट में या फिर घरलू क्रिकेट में इसके लिए हुनरमंद माना गया।
पुरानी मान्यताएं हो रही ध्वस्त?
टी20 फॉर्मेट ने क्रिकेट की कई पुरानी मान्यताओं को गेंद और बल्ले के क्षेत्र में ध्वस्त किया और अब यही काम ये फॉर्मेट कप्तानी में कर रहा है। अब खुद ही देखिये कि भारत के सबसे कामयाब कप्तानों (आंकड़ों के लिहाज से) में से एक विराट कोहली किस तरह से आईपीएल में 2013 से ले कर 2022 तक संघर्ष ही करते रह गये। वहीं रोहित शर्मा ने एक के बाद एक धड़ाधड़ 5 ख़िताब मुंबई इंडियंस के लिए जीत लिए जिसके चलते अब वो टीम इंडिया के कप्तान हैं।
रोहित को फिर भी मुंबई के लिए कप्तानी का अनभुव था और उन्हें भी भविष्य के लीडर के तौर पर देखा जाता था। कुछ ऐसा ही हाल केएल राहुल और ऋषभ पंत का है। चूंकि राहुल और पंत धाकड़ बल्लेबाज़ हैं तो कोई ये सवाल भी नहीं करता कि किस वजह से इन दोनों को भारतीय क्रिकेट में भविष्य का कप्तान माना जा जा रहा है?
कितने लोगों को ये बात पता है कि राहुल ने भी कप्तान के तौर पर अब तक कोई झंडे नहीं गाड़े हैं और पंत परेशान होकर दिल्ली रणजी टीम की कमान अतीत में छोड़ चुके हैं? पंत दिल्ली कैपिटल्स के लिए कोई बहुत कामयाब नहीं रहे हैं।
दिल्ली को इस बात का भी मलाल हो रहा होगा कि जिस श्रेयस अय्यर को उन्होंने अचानक से ही 2018 में कप्तानी दी थी उन्हें 2021 में हटाना नहीं चाहिए था।
हार्दिक नहीं होते थे कप्तान!
हार्दिक इससे पहले अपने स्कूल या कॉलेज को छोड़ दें तो अपने मोहल्ले या यूं कहें अपने घर की टीम में भी कप्तान नहीं होते थे। वहां पर भी कप्तानी की ज़िम्मेदारी बड़े भाई क्रुणाल पर होती थी जो पिछले साल वड़ोदरा के लिए रणजी की कप्तानी भी कर रहे थे। लेकिन, इस साल अचानक ही नई फ्रैंचाइजी ने पांड्या पर दाव लगाया और वो सुपर डुपर हिट हो गये।
अगर पांड्या की कप्तानी को आपने इस सीज़न आईपीएल में देखा होगा तो वो अपने आपको कोहली की तरह चिढ़ाते हुए अंदाज़ में हर समय ज़रुरत से ज्यादा आक्रामक होने की भंगिमा में नहीं रखते हैं।
पांड्या में महेंद्र सिंह धोनी और रोहित शर्मा की कैप्टन कूल वाली छवि दिखती है और कुछ हद तक अंजिक्या रहाणे की रणनीतिक सोच भी।
ये अलग बात है कि रहाणे की कप्तानी को हर कोई भूल जाता है लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में अहम खिलाड़ियों के बगैर एक मुश्किल टेस्ट सीरीज़ जीतना रहाणे की कप्तानी के बिना संभव नहीं था।
ख़ैर, पांड्या की कामयाबी ने ये दिखाया कि अब वो वक्त गया कि जहां किसी कप्तान को ग्रूम करने के लिए बहुत वक्त चाहिए होता है। टी20 के फटाफट नतीजे वाले स्वभाव की ही तरह आपको कप्तान का चयन भी फटाफट वाले अंदाज़ में करने की ज़रुरत है। पुरानी साख और प्रतिष्ठा को यहां बहुत ज़्यादा अहमियत देने की ज़रुरत नहीं है। वैसे यही बात शेन वार्न ने पहले ही आईपीएल में साबित की थी। लेकिन, वार्न को फिर भी बेहद शानदार सूझ-बूझ वाला खिलाड़ी माना जाता था और अक्सर ये कहा गया कि अपनी विवादास्पद छवि के चलते ही ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ताओं ने उन्हें कप्तानी नहीं दी।
वैसे, देखा जाए तो पांड्या ने ये तथाकथित विवादास्पद छवि वाले तर्क को सीधे छक्का लगाते हुए मैदान से बाहर कर दिया है। आखिर दो साल पहले एक टीवी शो में पांड्या ने जो इटंरव्यू दिया था उससे ज़्यादा विवाद और क्या हो सकता था किसी युवा खिलाड़ी के लिए।
संजू सैमसन
पांड्या के साथ-साथ राजस्थान रॉयल्स को फाइनल में ले जाने वाले संजू सैमसन ने भी कहीं ना कहीं इस बात को रेखांकित किया है। वाकई में क्रिकेट में और ख़ास तौर पर टी20 क्रिकेट में अतीत की साख को अनावश्यक अहमियत दी जाती है। पिछले साल रॉयल्स के लिए सैमसन बहुत कामयाब नहीं थे लेकिन श्रीलंका के पूर्व कप्तान कुमार संगाकारा ने उनमें कुछ ख़ास देख लिया था जैसा कि आशीष नेहरा ने पांड्या में देखा था और मालिकों को इस बात के लिए मना लिया कि सैमसन को ही कप्तान की ज़िम्मेदारी दी जाए। ये देखते हुए भी कि रविचंद्रण अश्विन जैसा विकल्प 2022 में रॉयल्स के पास था।
लेकिन, संगाकारा को ऐसी बातों की परवाह नहीं थी। वो तो सैमसन के इतने कायल थे कि उन्होंने फ्रैंचाइजी के साथ मिलकर ‘सैमसन-संगाकारा जोड़ी से कप्तानी और लीडरशिप की बारीकियां सीखें’ जैसा एक औपचारिक कोर्स भी शुरु करवा दिया!
अगर पांड्या ट्रॉफी नहीं भी जीतते तो सैमसन की कामयाबी इस बात को साबित करती कि वाकई में क्रिकेट अब अब बदल रहा है और सिर्फ एक स्टार बल्लेबाज़ होने भर से ही आपकी कप्तानी का दावा मज़बूत नहीं हो जाता। पांड्या और सैमसन जैसे खिलाड़ी जिनकी लीडरशिप क्षमता को कोई गंभीरता से ले नहीं रहा था वो टूर्नामेंट के बाद दो सबसे प्रभावशाली कप्तान के तौर पर उभरे।
ये अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है क्योंकि आईपीएल में इस बार धोनी और फैफ डूप्लेसी, केन विलियमसन जैसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के बड़े दिग्गज भी कप्तानी कर रहे थे।
अपनी राय बतायें