आईपीएल के पहले प्ले ऑफ़ में गुजरात टाइटंस ने क्वालिफायर-1 मुक़ाबले में राजस्थान रॉयल्स को बेहद आसानी से मात दी। आख़िरी ओवर में गुजरात को 16 ओवर चाहिए थे और गेंदबाज़ी की कमान थी प्रसिद्ध कृष्णा के हाथों में लेकिन अनुभवी डेविड मिलर ने लगातार एक के बाद एक 3 छक्के जड़ दिये और हर किसी को ये संदेश देने की कोशिश की कि उन्हें हल्के में लेने का अंजाम क्या होता है। जी हाँ, मिलर को इस साल की शुरुआत में मेगा ऑक्शन में हर किसी ने हल्के में ही लिया था और इसकी वजह थी उनके खेल में निरंतरता का अभाव। लेकिन, आशीष नेहरा, जो कि गुजरात के कोच हैं, ने मिलर को अपनी लिस्ट में रखा था। नेहरा की हिदायत साफ़ थी कि मिलर को कोई नहीं पूछने वाला है, उनकी पुरानी साख़ को ध्यान में रखते हुए और इसी का फायदा उनकी टीम को उठाना है। लेकिन नेहरा की ये चाल सिर्फ़ मिलर को कम रुपये ख़र्च करके टीम में शामिल करने तक सीमित नहीं रही। फाइनल तक गुजरात को ले जाने में मिलर की भूमिका सबसे निर्णायक रही है।
टाइटंस के लिए कप्तान हार्दिक पंड्या (45.30 की औसत से 453 रन और स्ट्राइक रेट 132.84) ने भले ही मिलर से ज़्यादा रन बनाये हैं (ज़्यादा भी क्या सिर्फ़ 4 रन!), लेकिन साउथ अफ्रीका के मिलर के औसत 64.14 और 141.19 के स्ट्राइक रेट की बात ही कुछ और है।
सबसे ख़ास बात यह है कि 32 साल के मिलर के रन ज़्यादातर समय उस वक़्त में आये हैं जब वो नंबर 4 या 5 पर बल्लेबाज़ी कर रहे थे और उनकी टीम बेहद मुश्किल हालात में फँसी रहती है। जैसा कि मंगलवार रात को राजस्थान के ख़िलाफ़ हुआ। “ये बेहद ज़रूरी होता है कि आप गेंदबाज़ों से एक क़दम आगे चलकर अपनी योजना बनायें”, मिलर ने ये बात इस लेखक को एक ख़ास इटंरव्यू में बतायी। लगभग आधे घंटे की बात-चीत में मिलर ने अपनी सोच और तरीक़ों के बारे में कुछ दिलचस्प खुलासे किये।
सत्यहिंदी के साथ ख़ास बातचीत में मिलर बताते हैं, “आपको हमेशा अपने कोच और साथी खिलाड़ियों से बात करती रहनी पड़ती है। आपको ये देखते रहना पड़ता है कि डेथ ओवर्स में बल्लेबाज़ी करने के समय किस तरह की चुनौतियाँ हैं और उसमें किस तरह के बदलाव हो रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर आप बदलने और सीखने को तैयार नहीं तो आप पीछे छूट जायेंगे। कामयाब होने के लिए बेहद ज़रूरी है कि आप अतीत में ना जीयें और हमेशा आगे की तरफ रुख़ करें।”
टूर्नामेंट के दूसरे मैच में चेन्नई एकदम आसान जीत की तरफ बढ़ रही थी लेकिन मिलर ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया था। हाँ, यह ज़रूर है कि मिलर को इस सीज़न में दूसरे छोर पर कभी कप्तान पंड्या का साथ मिला है तो कभी राहुल तेवतिया का।
“तेवतिया के साथ मुझे बल्लेबाज़ी करने में बहुत मज़ा आता है। जब भी वो मैदान पर आते हैं तो चाहे स्कोर कितना भी बड़ा क्यों ना हो और रन रेट कितना भी ऊपर क्यों न चला जाए, उनको फर्क ही नहीं पड़ता है। वह कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिससे विरोधी टीम पस्त होती है और वह जीत का एक नया रास्ता ढूंढ लेते हैं”, ऐसी तारीफ़ करते हुए मिलर खिलखिला उठते हैं।
जब तेवतिया की मिलर ने इतनी तारीफ की तो हमने उनसे ये भी पूछ डाला कि क्या भारतीय खिलाड़ी सिर्फ आईपीएल तक के लिए ही ठीक हैं क्योंकि बीसीसीआई के चयनकर्ता तो तेवतिया को राष्ट्रीय टीम में मौक़ा देने से अब भी हिचक रहे हैं? अभी हाल ही में साउथ अफ्रीका के ख़िलाफ 5 टी20 मैचों की सीरीज़ का ऐलान हुआ तो उसमें तेवतिया को जगह नहीं मिली थी। वह कहते हैं, “देखिये, आपको टीम इंडिया के चयन में यथार्थवादी होने की ज़रूरत है। अब आप खुद सोचो कि भारत जैसे देश में प्रतिभाओं की भरमार है और ऐसे में ये बिल्कुल संभव नहीं है कि हर बेहतरीन खिलाड़ी को एकदम सही समय पर मौक़ा मिल ही जाए। दूसरे देशों के मुक़ाबले भारत के लिए खेलना किसी भी खिलाड़ी के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन हाँ मैं इतना ज़रूर मानता हूँ कि तेवतिया का चयन होना चाहिए था।”
बायें हाथ के मिलर की छवि एक ज़ोरदार प्रतिभा के तौर पर बनी है जिन्होंने महज 17 साल की उम्र में साउथ अफ्रीका की घरेलू क्रिकेट टीम Dolphins के लिए खेली। लेकिन, क्रिकेट के अलावा मिलर की दिलचस्पी हॉकी, टेनिस, स्कवैश में भी थी और चूँकि साउथ अफ्रीका में युवाओं के पास हमेशा 3-4 खेल चुनने का विकल्प होता है तो वो काफी हुनरमंद थे। बहरहाल, जैसे जैसे मिलर बड़े होते गये उन्हें ये समझ में आता गया कि ऊपरवाले ने उनमें क्रिकेट की प्रतिभा बाक़ी खेलों के मुक़ाबले ज़्यादा दी है और बेहतर होगा कि वो इसके साथ न्याय करें। मिलर और उनके चाहने वालों को इस बात का मलाल रहता है कि एक दशक से भी ज़्यादा समय से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के बावजूद मिलर को टेस्ट क्रिकेट में जगह नहीं मिली। और अब इसकी संभावना भी नहीं दिखती है।
पिछले दो साल तक आईपीएल में भी वो जूझते ही दिख रहे थे। क़रीब एक दशक के जुड़ाव के बाद पंजाब से हटने के बाद 2020 में मिलर जब राजस्थान से जुड़े तो उन्हें उस साल सिर्फ़ 1 मैच खेलने का मौक़ा मिला। इसके बाद 2021 में उन्हें मैच तो मिले लेकिन लगातार नहीं। एक मैच खेलत और दूसरे में बाहर बैठना पड़ता। निजी तौर पर मिलर के लिए ये परेशान करने वाली बात थी लेकिन उन्होंने कभी किसी से शिकायत नहीं की या फिर नाराज़गी ज़ाहिर नहीं की। लेकिन, वो अब यह बात कहने में नहीं हिचकते हैं कि गुजरात के साथ उनकी कामयाबी की सबसे बड़ी वजह क्या है। “गुजरात के कप्तान और टीम मैनेजमेंट ने मुझे ज़बरदस्त तरीक़े से साथ किया। आशीष नेहरा हों या फिर हार्दिक, उन्होंने मुझे ये भरोसा दिया कि मैं बिना फिक्र के खेलूँ क्योंकि मैं हर मैच खेलूंगा। आपको पता है कि अगर एक खिलाड़ी के सर पर हमेशा बाहर जाने की तलवार लटकी रहे तो वो अपना स्वभाविक खेल नहीं दिखा पाता है। उस लिहाज से मेरा हर मैच में खेलना एक बहुत ही अच्छी बात रही है”, ऐसा कहते हुए मिलर थोड़े भावकु भी हो जाते हैं।
लेकिन, पूरे सीज़न शानदार खेल दिखाने के बावजूद अब मिलर पर इस बात का दबाव होगा कि वो फ़ाइनल में रविवार को एक बार फिर बेहतरीन खेल दिखायें। इससे न सिर्फ़ गुजरात पहली बार खेलते हुए चैंपियन बन सकती है बल्कि मिलर भी पहली बार किसी आईपीएल ट्रॉफी जीतने वाली टीम का हिस्सा हो सकते हैं।
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