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हेमंत सोरेन
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अमेरिका में फ़ेसबुक पर जो आरोप लगे हैं उसका असर सीधे-सीधे वाट्सऐप और इंस्टाग्राम पर भी पड़ सकता है। ऐसा इसलिए कि अमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमिशन यानी एफ़टीसी और अमेरिका के 48 राज्यों ने फ़ेसबुक पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को ख़त्म करने के गंभीर आरोप लगाए हैं और मामला अदालत में पहुँचा है। अब माना जा रहा है कि फ़ेसबुक को वाट्सऐप और इंस्टाग्राम को बेचना पड़ सकता है यानी ये दोनों कंपनियाँ मार्क ज़ुकरबर्ग के हाथों से निकल सकती हैं।
इससे एक सवाल यह भी उठता है कि क्या इन कंपनियों के यूज़रों पर असर पड़ेगा और पड़ेगा तो किस तरह? इन तीनों कंपनियों के 6 अरब से ज़्यादा यूज़र हैं। इनमें से फ़ेसबुक और वाट्सऐप के ही ढाई-ढाई अरब से ज़्यादा यूज़र हैं।
आरोप है कि फ़ेसबुक ने अपना दबदबा बनाए रखने और प्रतिस्पर्धा ख़त्म करने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों का अधिग्रहण कर लिया। फ़ेसबुक ने 2012 में इंस्टाग्राम का और 2014 में मैसेजिंग ऐप वाट्सऐप का अधिग्रहण किया था। फ़ेडरल और स्टेट रेगुलेटरों ने कहा है कि ये अधिग्रहण निरस्त होना चाहिए।
वहीं 46 राज्यों और वाशिंगटन की तरफ़ से न्यूयॉर्क के अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स ने कहा है, ‘लगभग एक दशक के लिए फ़ेसबुक ने अपने प्रभाव और एकछत्र राज का उपयोग छोटे प्रतिद्वंद्वियों को ख़त्म करने के लिए किया है।’
इस आरोप को पुष्ट करने के लिए फ़ेसबुक के सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग के 2008 के एक ईमेल का हवाला भी दिया गया है। उस ईमेल में उन्होंने कहा था कि प्रतिस्पर्द्धा करने से बेहतर खरीद लेना है। एफ़टीसी ने इसके अलावा फ़ेसबुक पर थर्ड पार्टी ऐप डेवलपर्स को नहीं उभरने देने का भी आरोप लगाया है।
इन्हीं आरोपों के बीच एफ़टीसी ने अदालत से माँग की है कि फ़ेसबुक को अपने बिज़नस के कुछ हिस्से बेचने के लिए कहा जाए और आगे ऐसे किसी अधिग्रहण के लिए नियामक की मंजूरी ज़रूरी किया जाए। इसके अलावा थर्ड पार्टी डेवलपर्स पर लगी पाबंदियों को हटाया जाए।
हालाँकि, कहा जा रहा है कि फ़ेसबुक के ख़िलाफ़ की गई इस शिकायत का इतनी जल्दी निपटाना संभव नहीं है। माना जा रहा है कि यह लड़ाई लंबी खींच सकती है। यह इसलिए कि फ़ेसबुक ने जो अपनी सफ़ाई दी है उसमें इसके संकेत मिलते हैं। फ़ेसबुक ने कहा है कि उसने इंस्टाग्राम और वाट्सऐप का जो अधिग्रहण किया है वह अमेरिकी नियम-क़ायदों के तहत ही है इसलिए उसपर आपत्ति नहीं की जा सकती है।
ऐसे जवाब से अब इस मामले में क़ानूनी लड़ाई लंबी चलने की उम्मीद है। अदालत में अब फ़ैसला किसके पक्ष में आता है, सब उसपर निर्भर है। लेकिन यदि अदालत का फ़ैसला फ़ेसबुक के ख़िलाफ़ आता है और इंस्टाग्राम और वाट्सऐप को बेचना पड़ता है तो सवाल है कि इससे इन सोशल मीडिया यूज़रों पर क्या असर पड़ेगा।
माना जा रहा है कि इससे यूज़रों पर तत्काल कोई असर तो नहीं पड़ेगा। लेकिन सोशल मीडिया का परिदृश्य बदल सकता है। यह बदलाव इस रूप में हो सकता है कि फिर तीनों कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है और फिर नये-नये फीचर्स भी आ सकते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसा पहले 1990 के दशक में माइक्रोसॉफ़्ट का एक इंटरनेट एक्सप्लोरर था, लेकिन जब प्रतिद्वंद्विता बढ़ी तो फिर गूगल क्रोम जैसा इंटरनेट ब्राउजर भी आ गया।
दूसरा, असर यह पड़ सकता है कि कंपनियों के सिक्योरिटी और इनफॉर्मेशन सिस्टम को नए सिरे से तैयार करना पड़ सकता है। हालाँकि इसमें अभी कई और चीजें साफ़ नहीं हैं कि दोनों कंपनियों को अलग करने के लिए क्या-क्या मैकेनिज़्म अपनाए जाएँगे।
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