दलित विमर्श के विलक्षण सिद्धांतकार और लेखक मोहनदास नैमिशराय पिछले तीन-चार दशकों से दलित समस्याओं पर लगातार लिखते और विचार करते आ रहे हैं। दलित समाज के यथार्थ को सामने लाने के लिये उन्होंने पत्रकारिता को अपना साधन बनाया था। ‘धर्मयुग’ और ‘संचेतना’ पत्रिका से जुड़कर लगातार दलित समाज और उसकी राजनीति पर लिखा था। मोहनदास नैमिशराय ने दलित हलकों की समस्याओं को उठाने के लिये अस्सी के दशक में ‘बहुजन अधिकार’ नामक पत्र निकाला था। इस पत्र में सवर्ण वर्चस्व और जाति-व्यवस्था पर बड़ा मारक और तीखा प्रहार किया जाता था। इसके दलित साहित्य और विमर्श को धार देने के लिये उन्होंने ‘बयान’ पत्रिका निकाली थी। दलित साहित्य के योगदान में इस पत्रिका का अपना ही स्थान है। इन सबके बावजूद मोहनदास नैमिशराय का पत्रकारिता की अपेक्षा साहित्य सृजन वाला पक्ष ज़्यादा निखर कर सामने आया है।
मोहनदास नैमिशराय की आत्मकथा, सवर्ण समाज के लिए आईना
- साहित्य
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- सुरेश कुमार
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- 21 Sep, 2020

सुरेश कुमार
लेखक मोहनदास नैमिशराय की किताब रंग कितने मेरे संग आई है। यह दलित जीवन के विभिन्न रंगों और संघषों का पता देने वाली आत्मकथा है। पढ़िए किताब की समीक्षा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि साहित्यिक और बौद्धिक दुनिया में उनकी पहचान पत्रकार से ज़्यादा एक दलित विचारक और साहित्यकार की है। मोहनदास नैमिशराय क़रीब पच्चीस साल पहले ‘अपने-अपने पिंजरे’ (1995) नामक आत्मकथा लिखी थी। इस आत्मकथा की चर्चा साहित्य हलकों में ख़ूब हुई थी। जब हिंदी के नामी दलित साहित्यकारों ने अपनी आत्मकथा ही नहीं लिखी थी, उस समय तक मोहनदास नैमिशराय की आत्मकथा का दूसरा खंड ‘अपने-अपने पिंजरे’ (2001) प्रकाशित हो चुका था। इसके बाद उन्होंने लगातार दलित साहित्य और इतिहास पर शोध जारी रखा। इसके बाद मोहनदास नैमिशराय द्वारा लिखित ‘भारतीय दलित साहित्य आंदोलन का इतिहास’ चार खंडों में प्रकाशित होकर आया था।