अप्रैल का महीना है और मौसम गर्म होने लगा है। सियासी मौसम भी गर्म है। हर राजनैतिक दल चुनावी रैलियाँ कर रहे हैं और देश को नयी उम्मीदें बेच रहे हैं। यह विचित्र है कि देश की आधी आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है इसके बावजूद किसानों के मुद्दों को राजनेताओं के भाषणों में ढूँढना पड़ रहा है।
चुनावी भाषणों में किसानों को ढूँढिए, आख़िर वे हैं कहाँ?
- पाठकों के विचार
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- 9 Apr, 2019
सियासी मौसम गर्म है। हर राजनैतिक दल देश को नयी उम्मीदें बेच रहे हैं। पर किसानों के मुद्दों को राजनेताओं के भाषणों में ढूँढना पड़ रहा है।

पिछले पाँच वर्षों में सरकारी आँकड़ों में ही कृषि क्षेत्र में हो रही गिरावट को लेकर सरकारी नीतियाँ सवालों के घेरे में हैं। इस चुनाव में सरकार किसानों को पिछले 5 वर्ष का हिसाब देने में नाकाम दिख रही है। सत्तापक्ष के भाषणों में किसानों की आय वृद्धि कम होने को लेकर कहीं भी ज़िक्र नहीं है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत देश के अंतिम किसान के खेत तक पानी पहुँचा है या नहीं पहुँचा है, इस सवाल का जवाब भी नहीं मिल रहा है। प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के अंतर्गत निजी कंपनियों को इतना बड़ा फ़ायदा कैसे हो रहा है और किसान इस बीमा योजना को लेकर इतने निराश क्यों है, इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है।