दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ईद-उल-फितर की बेहद अहमियत है। यह त्योहार इसलाम के अनुयायियों के लिए एक अलग ही ख़ुशी लेकर आता है। ईद के शाब्दिक मायने ही ‘बहुत ख़ुशी का दिन’ है। ईद का चाँद आसमां में नज़र आते ही माहौल में एक ग़जब का उल्लास छा जाता है। हर तरफ़ रौनक ही रौनक अफरोज हो जाती है। चारों तरफ़ मुहब्बत ही मुहब्बत नज़र आती है। एक मुकद्दस ख़ुशी से दमकते सभी चेहरे इंसानियत का पैगाम माहौल में फैला देते हैं। शायर मोहम्मद असदुल्लाह ईद की कैफियत कुछ यूँ बयाँ करते हैं, ‘महक उठी है फजा पैरहन की खुशबू से/चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है।’
कोरोना काल में ईद: जकात, सदका, फितरा पर ग़रीबों व लाचारों का पहला हक़
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- 25 May, 2020

दुनिया कोरोना वायरस के भयानक संक्रमण से जूझ रही है, करोड़ों लोग अपने काम-काज छोड़ अपने घरों में बैठे हैं और लाखों परिवार को भूखा सोने की नौबत आ गई है। ऐसे में ईद का ख़ुशियाँ तभी आएँगी जब लोगों को भूखे पेट न सोने दें।
क़ुरआन के मुताबिक़ पैगंबर-ए-इसलाम ने फरमाया है, ‘जब अहले ईमान रमज़ान के मुकद्दस महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोज़ों-नमाज़ों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं, तो अल्लाह एक दिन अपने उन इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। लिहाज़ा इस दिन को ईद कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम देते हैं।’