पहलू ख़ान मामले में सभी 6 अभियुक्तों को बरी किए जाने से पूरी व्यवस्था पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। सवाल है कि आख़िर सभी अभियुक्त बरी क्यों कर दिए गए? क्या उनके ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत नहीं थे? लेकिन सबूत एकत्रित कर अदालत में पेश करना तो अभियोजन पक्ष का काम है, तो क्या अभियोजन पक्ष ने जानबूझ कर ऐसा किया या वह कर नहीं पाया? अभियोजन पक्ष जिन पुलिस वालों पर निर्भर रहता है, क्या उन लोगों ने ठीक से काम नहीं किया? यदि ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? ये सवाल इसलिए ज़रूरी हैं क्योंकि कोई यह नहीं कह सकता कि पहलू को नहीं पीटा गया या पिटाई से उनकी मौत नहीं हुई। तो फिर पहलू की मौत के लिए कोई न कोई तो ज़िम्मेदार होगा, कौन लोग थे ज़िम्मेदार? आख़िर अभियुक्त क्यों और कैसे बच गए?
बता दें कि राजस्थान के अलवर ज़िले से गाय खरीद कर घर लौट रहे हरियाणा के नूँह के रहने वाले पहलू ख़ान पर कुछ गोरक्षकों ने हमला किया था, उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा और दो दिन बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी। ज़िला अदालत ने फ़ैसला सुनाते हुए विपिन यादव, रवींद्र कुमार, कालूराम, दयानंद, योगेश कुमार और भीम राठी को बरी कर दिया।
बरी करने के कारण
- कोर्ट ने घटनास्थल के वीडियो को ऐडमिसेबल सुबूत नहीं माना है।
- कोर्ट ने यह भी कहा है कि पुलिस ने वीडियो की एफ़एसएल जाँच नहीं करवाई है। ऐसे में वीडियो को सुबूत के तौर पर नहीं रखा जा सकता है।
- अदालत ने कहा कि वीडियो बनाने वाले शख्स ने वीडियो बनाने के बारे में सही-सही जानकारी नहीं दी।
- कोर्ट ने फ़ैसले में कहा कि अभियुक्तों की शिनाख्त परेड जेल में नहीं कराई गई है ऐसे में गवाहों पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता है। मोबाइल की सीडीआर को भरोसेमंद सुबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है।
- कैलाश अस्पताल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पिटाई की बात स्पष्ट नहीं थी।
- पहलू खान ने जिन 6 लोगों के नाम 'डाईंग डिक्लेरेशन' यानी मरते समय बयान में बताए थे, वे अभियुक्तों में शामिल नहीं थे।
- इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि पहलू खान का बेटा कोर्ट के अंदर भी अभियुक्तों की पहचान नहीं कर सका।
जानबूझ कर केस ख़राब किया?
सवाल यह है कि वीडियो की फ़ॉरेंसिक जाँच क्यों नहीं कराई गई और कौन है इसके लिए ज़िम्मेदार? वीडियो बनाने वाले ने पूरी जानकारी क्यों नहीं दी या पुलिस ने माँगी ही नहीं? शिनाख़्त परेड तो पुलिस ने कराई, तो फिर इसमें गड़बड़ी क्यों हुई? पुलिस ने अभियुक्त किसी और को बनाया और पहलू ख़ान ने अंतिम सांस लेते वक़्त किसी और का नाम लिया, यह कैसे हो गया? क्या पुलिस ने उन लोगों को जान बूझ कर बचाया जिनके नाम पहलू ने लिए? पूरे मामले को जानबूझ कर चौपट करने का यह अच्छा उदाहरण है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। सरकार बदली, स्थिति नहीं!
लेकिन इन बातों से किसी सवाल का उत्तर नहीं मिलता है, बल्कि ये कई सवाल खड़े करते हैं। सवाल यह है कि सरकर बदलने के बाद भी स्थिति क्यों नहीं बदली? पहलू ख़ान की हत्या जिस समय हुई, राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और वसुंधरा राजे सिन्धिया मुख्यमंत्री थीं। विश्व हिन्दू परिषद गोरक्षा के मामले में मुखर रहती है और उसके लोग खुले आम गोरक्षक बने घूमते हैं। ऐसे में राज्य सरकार पर अभियुक्तों को बचाने का आरोप लगना स्वाभाविक है।
यह भी कहा गया था कि पुलिस ने जानबूझकर गड़बड़ी की है, मसलन, पुलिस ने असली हमलावरों के नाम एफ़आईआर में लिये ही नहीं, दूसरों के नाम डाले गए और वे बच निकले और यह स्वाभाविक भी है।
क्या जवाब देंगे मुख्यमंत्री गहलोत?
इसी तरह यह भी कहा गया कि अभियोजन पक्ष ने पूरे मामले की ठीक से जाँच नहीं की और जान बूझ कर केस ख़राब कर दिया गया ताकि असली ज़िम्मेदार लोग बच निकलें। लेकिन बाद में वहाँ सरकार बदली, कांग्रेस की सरकार बनी और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे पर खूब हो-हल्ला किया था और गहलोत ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया था। लेकिन फ़ैसला उनकी सरकार में आया है और नतीजा सबके सामने है, सभी अभियुक्त बरी हो चुके हैं।
बीजेपी सरकार के दौरान पुलिस ने मामले की ठीक से जाँच क्यों नहीं की, यह सवाल स्वाभाविक है। यह सवाल भी लाज़िमी है कि अशोक गहलोत ने पूरे मामले की नए सिरे से जाँच क्यों नहीं कराई? वह तो जाँच में गड़बड़ी करने का आरोप तक लगा चुके थे!
इन सवालों के राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं और इनके जवाब के राजनीतिक मायने भी निकाले ही जा सकते हैं। गोरक्षा और उससे जुड़े तमाम मामले राजनीतिक हैं, एक राजनीतिक सोच के लोग इसमें सबसे आगे रहते हैं और उनसे जुड़ी पार्टी की सरकार उन्हें बचाती है। लेकिन जब इसका विरोध करने वाले सत्ता में आते हैं तो वे क्यों नहीं इस मामले में न्याय कर पाते हैं, असली सवाल तो यह है।
क्या हम उस स्थिति में पहुँच चुके हैं जहाँ अल्पसंख्यकों, दलितों, वंचितों और समाज के हाशिए पर खड़े दूसरे लोगों पर होने वाला अत्याचार हमें अंदर से झकझोरता नहीं है? बदले हुए राजनीतिक हालात में यह सवाल अधिक अहम है।
पहलू ख़ान मामला सबसे सटीक उदाहरण है। दूध पीने के लिए गाय ले जा रहे पहलू पर हमला हुआ, पिटाई हुई, उनकी मौत हो गई। लेकिन बाद में उनके बेटे पर ही गोरक्षा क़ानून के तहत मामला दर्ज कर दिया गया। मौजूदा सरकार ने यह मामला तो हटा लिया, पर किसी दोषी को सज़ा नहीं दी गई है। हालाँकि पुलिस प्रमुख ने कहा है कि इस फ़ैसले के ख़िलाफ अपील की जाएगी। पर अभियोजन पक्ष वही रहेगा, पुलिस वाले वही रहेंगे, आगे की जाँच भी वही करेंगे। सबूत जुटाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं की होगी। वे ऐसा क्या कर लेंगे कि पूरा फ़ैसला उलट जाएगा और असली गुनहगारों को सज़ा मिलेगी? फ़ैसला बदलने के उदाहरण भी हैं, पर पहलू मामले में क्या होगा, इसका इंतजार रहेगा।
बार बार हो रही है वारदात
गाय ले जा रहे लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की वारदात देश के अलग-अलग हिस्सों में बार बार हुई है।
- बिहार के सारण जिले के बनियापुर गाँव में लोगों ने तीन लोगों को पकड़ा और आरोप लगाया कि ये उनके पशुओं को चोरी करने के लिए आए थे और उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी।
- कुछ दिन पहले ही ऐसी ही घटना त्रिपुरा के धलाई जिले के रायसियाबारी इलाक़े में हुई थी। जहाँ एक युवक बुधि कुमार पर स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि वह पशु चोरी करने की नीयत से एक व्यक्ति की गो शाला में घुस गया था। लेकिन उसे वहाँ देखकर गोशाला के मालिक ने शोर मचा दिया था और भागने की कोशिश के दौरान गाँव के कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया और बुरी तरह मारा था, जिससे उसकी मौत हो गई थी।
- पिछले महीने हरियाणा के फतेहाबाद के दायोड़ गाँव में भी गो तस्करी के शक में चार लोगों को भीड़ ने बुरी तरह पीटा था। यह भी बताया गया था कि इन लोगों को पेशाब पीने के लिए मजबूर किया गया।
- कुछ दिन पहले ही मध्य प्रदेश में गो रक्षकों ने महिला समेत तीन लोगों की बेरहमी से पिटाई कर दी थी और इसका वीडियो ख़ासा वायरल हुआ था।
- हाल ही में झारखंड के जमशेदपुर में भीड़ ने बाइक चोरी के शक में तबरेज़ अंसारी नाम के युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। तबरेज़ की हत्या के बाद से पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए थे।
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