कांग्रेस ने राजस्थान में टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। पार्टी ने मंगलवार को उनके नाम की घोषणा कर दी थी। वह अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। तीन बार के विधायक और गहलोत सरकार के मंत्री रहे टीकाराम जूली दलित समाज से आते हैं। वह पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं।
उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने भी बधाई दी है। उन्होंने एक्स पर लिखा है कि, अलवर ग्रामीण विधायक एवं पूर्व मंत्री टीकाराम जूली जी को कांग्रेस विधायक दल का नेता मनोनीत किए जाने पर हार्दिक बधाई एवं इस नवीन जिम्मेदारी के लिए मेरी शुभकामनाएं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सदैव मुखर होकर राजस्थान की जनता के हित से जुड़े मुद्दों को पुरजोर तरीके से सदन के पटल पर रखेंगे।
उन्होंने भले ही बधाई दी है लेकिन राजस्थान की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि टीकाराम जूली का नेता प्रतिपक्ष चुना जाना सचिन पायलट खेमे की हार है। सचिन पायलट का खेमा अपने बीच के किसी विधायक को नेता प्रतिपक्ष बनवाना चाहता था लेकिन उनकी चली नहीं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने खेमे के विधायक को नेता प्रतिपक्ष बनवाने में कामयाब रहे हैं।
एक्स पर ही बड़ी संख्या में लोगों ने सचिन पायलट से सहानुभूति रखते हुए कमेंट किए हैं। लोगों ने कहा है कि कब तक आप ऐसे ही त्याग करते रहेंगे। टीकाराम जूली के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद यह तो साफ हो गया है कि चुनाव हारने के बाद भी राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत सबसे ताकतवर शख्शियत हैं और पार्टी पर उनकी पकड़ भी काफी अधिक है।
वहीं दूसरी ओर सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाकर उन्हें राजस्थान कांग्रेस से दूर किया जा चुका है। इससे सचिन पायलट के समर्थक निराश हैं।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति थी कि सचिन पायलट गुट के किसी भी विधायक को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने देना है। इस रणनीति में वह कामयाब रहे। माना जा रहा है कि अगर सचिन पायलट के गुट का कोई विधायक इस पद पर पहुंचता तो इससे गहलोत खेमे के लिए परेशानी का कारण बन सकता था।
दलित वोट बैंक को मजबूत करने करने की कोशिश
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि टीकाराम जूली के नेता प्रतिपक्ष बनने का एक बड़ा कारण उनका दलित समाज से आना भी है। राजस्थान में दलित,आदिवासी, किसान और अल्पसंख्यक कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक हैं। भाजपा दलित समाज के मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए हर संभव काम कर रही है। वह कांग्रेस के दलित वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे खुद दलित समाज से आते हैं। उनके अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस का दलित वोट बैंक मजबूत हुआ है। अब कांग्रेस राज्यों में भी दलित समाज से आने वाले नेताओं को उभारना चाहती है। यही कारण है कि कई अन्य नेताओं को यह पद न देकर पार्टी ने टीकाराम जूली पर भरोसा किया है।
कांग्रेस राजस्थान में दलित समाज से आने वाले अपने नेताओं को उभारना चाहती है ताकि इस वोट बैंक को भाजपा की तरफ जाने से रोका जाए। इसी कोशिश में भी टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है। वह राजस्थान के पहले ऐसे दलित नेता हैं जो नेता प्रतिपक्ष बने हैं।
इसके साथ ही टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष बनाने का एक कारण उनका पढ़ा- लिखा और राजस्थान के हर मुद्दे की बेहतर जानकारी रखने वाला नेता होना भी है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि टीकाराम जूली पूर्व की अशोक गहलोत सरकार में जब मंत्री थे तब विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ आते थे।
विधानसभा में पूछे गए हर सवाल का बतौर मंत्री वह बेहतरीन जवाब देते थे। इसके लिए वह काफी होमवर्क करके विधानसभा आते थे। इससे जूली की एक बेहतर इमेज बनती गई जो कि उनके नेता प्रतिपक्ष बनने में काम आई है। वह कानून में स्नातक भी हैं, इसलिए उन्हें विधानसभा के नियमों की भी अच्छी जानकारी है।
कांग्रेस के विधानसभा में 70 विधायक हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाएगी। वहीं टीकाराम जूली के लिए यह एक बेहतरीन अवसर है कि वह अपने को एक बड़े नेता के तौर पर उभारे। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अब उनके पास मौका है कि वह राजस्थान कांग्रेस में खुद के कद को काफी बड़ा कर लें।
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