उदयपुर में दर्जी की हत्या के खिलाफ गुरुवार को हिंदू संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान पत्थरबाजी भी हुई लेकिन पुलिस ने हालात को काबू में कर लिया। उधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी पीड़ित के घर पहुंचे और उनके परिजनों को सांत्वना दी। गहलोत ने उन्हें 51 लाख रुपये का चेक भी सौंपा।
इस घटना के विरोध में गुरूवार को जयपुर बंद का आह्वान किया गया है। बंद का अच्छा असर है और बड़ी संख्या में दुकानें बंद हैं।
उदयपुर में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए और उन्होंने जुलूस निकाला। इस दौरान पुलिस का अमला भी तैनात रहा। राजस्थान में तनाव के माहौल को देखते हुए पूरे राज्य में धारा 144 को लागू किया गया है।
बता दें कि कन्हैया लाल की दो लोगों ने उनकी दुकान में घुसकर हत्या कर दी थी। इनमें से एक शख्स गौस मोहम्मद साल 2014 में पाकिस्तान के कराची गया था।
पुलिसकर्मी की मौत
उदयपुर की घटना को लेकर राजस्थान के राजसमंद में भी तनाव हो चुका है और बुधवार को यहां हुई हिंसक झड़प में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। यह घटना भीम कस्बे में हुई थी। जुलूस निकाल रहे लोगों को जब पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो पुलिस पर पथराव किया गया इसमें एक पुलिसकर्मी संदीप चौधरी की मौत हो गई।
कन्हैया लाल की हत्या में पकड़े गए दोनों अभियुक्त भीम कस्बे के ही रहने वाले हैं। यहां पर भारी तादाद में पुलिस बल को तैनात किया गया है। हत्या करने वालों ने इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया था और साथ ही हत्या की जिम्मेदारी भी ली थी।
पुलिस ने इस मामले में कई और लोगों को हिरासत में लिया है और केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर एनआईए इस मामले की जांच कर रही है। हत्या के अभियुक्तों का पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठन दावत-ए-इस्लामी से लिंक मिला है।
राजस्थान पुलिस के डीजीपी एमएल लाठर ने कहा है कि हत्या पूरी तरह पूर्व नियोजित थी और इसमें कई लोग शामिल थे। कन्हैया लाल की हत्या बीजेपी नेता नूपुर शर्मा के द्वारा पैगंबर मोहम्मद साहब पर की गई टिप्पणी का समर्थन करने के चलते की गई। नूपुर शर्मा की टिप्पणी को लेकर भारत में कई जगह पर जोरदार प्रदर्शन हुए थे और दुनिया के कई मुल्कों ने अपना विरोध दर्ज कराया था।
कन्हैया लाल को लगातार जान से मारने की धमकियां दी जा रही थीं। उन्होंने इस बारे में पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी और सुरक्षा देने की मांग की थी। हालांकि बाद में इस मामले में सुलह समझौता हो गया था और कन्हैया लाल ने पुलिस से कहा था कि वह आगे कोई कार्रवाई नहीं चाहते। लेकिन बावजूद इसके उन्हें धमकियां मिल रही थी और बाद में उनकी हत्या कर दी गई।
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