राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को आए थे। करीब एक महीने बाद भी मंत्रिमंडल गठन का इंतजार जारी है। तमाम विधायकों के दिल में मंत्री बनने की हसरत पल रही है लेकिन भाजपा को डर सता रहा है और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का दिल धक-धक हो रहा है।
भाजपा ने राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी जीत हासिल की थी। वहां समय पर मंत्रिमंडल हैं का गठन हो चुका है। लेकिन यही भाजपा है, जब तेलंगाना में नया सीएम चुनने में देर हो रही थी तो उसने कांग्रेस पर कटाक्ष का कोई मौका चूका नहीं। लेकिन राजस्थान में राजनीति जिस तरफ जा रही है, वो दिलचस्प है। ऐसा लगता है कि कई शिकारी शिकार फंसने का इंतजार कर रहे हैं।
राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा का नाम बतौर सीएम आने पर सभी लोग हैरान हो गए थे। केंद्रीय मंत्री पर्यवेक्षक की हैसियत से आलाकमान की पर्ची लेकर जयपुर गए थे, जहां पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने पर्ची से भजनलाल का नाम पुकारा। विधायक दल की बैठक की सिर्फ औपचारिकता हुई थी। भजनलाल के साथ दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा ने डिप्टी सीएम की शपथ ली लेकिन अभी तक कोई विभाग आवंटित नहीं किया गया है।
भाजपा आलाकमान द्वारा सीएम के रूप में अपनी पसंद थोपने की अनिश्चितता और निर्ममता के बीच कैबिनेट में जगह पाने की उम्मीद रखने वाले भाजपा विधायक चुप्पी साधे हुए हैं। वे देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मंदिर के दौरे और यज्ञ कर रहे हैं।
सूना हुआ दरबार
इधर, वसुंधरा राजे के आसपास की हलचल भी अब कम हो गई है क्योंकि विधायक पार्टी के सबसे बड़े नेता के रूप में उनके कद के बावजूद, किसी का पक्ष लेने के जोखिम से बच रहे हैं। वसुंधरा का दरबार सूना हो गया है। पार्टी के एक नेता ने कहा- “यह नई भाजपा है, हर कोई अनजान है। हमारा नारा है 'भाजपा है तो भरोसा है', लेकिन जब बात आती है कि पार्टी नेतृत्व किसे चुनेगा तो कोई भरोसा नहीं है। हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं।''
वसुंधरा के खास भी अब दरबार में नहीं दिख रहे हैं। राजे के मुखर समर्थक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कलियाश मेघवाल, जिन्हें निष्कासित कर दिया गया और टिकट नहीं दिया गया और चुनाव हार गए। या नरपत सिंह राजवी भी राजे खेमे के एक प्रमुख नेता हैं, जिन्होंने खुद को जयपुर की सुरक्षित सीट से चित्तौड़गढ़ स्थानांतरित कर लिया था, जहां से वो पार्टी के बागी चंद्रभान सिंह से हार गए।
नतीजों के बाद कालीचरण सराफ राजे खेमे का एक और प्रमुख चेहरा बनकर उभरे थे। वो प्रोटेम स्पीकर पद के दावेदार थे लेकिन अंतिम क्षणों में आरएसएस के नेता वासुदेव देवनानी को स्पीकर बनाया गया।
चुनाव के बाद राजस्थान भाजपा में कई क्षत्रप उभर आए हैं। इस वजह से ज्यादा दिक्कत आ रही है। सूत्र कहते हैं कि भाजपा आलाकमान अब वसुंधरा और राजेंद्र राठौड़ खेमे से मिलकर चलना चाहता है। नजर लोकसभा चुनाव पर है। हालांकि राठौड़ इस बार भी हार गए। लेकिन पार्टी ने अभी उन्हें नजरन्दाज नहीं किया है। राज्य के चार धार्मिक नेताओं में से कम से कम एक महंत प्रताप पुरी, बाबा बालकनाथ, बालमुकुंदाचार्य और ओटाराम देवासी के अलावा केंद्रीय नेताओं जैसे गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर और राज्य के अन्य लोगों की सिफारिशों को भी नई मंत्रिपरिषद में जगह मिल सकती है।
मंत्रिमंडल के गठन में जाति भी आड़े आ रही है। जातीय समीकरण के हिसाब से भाजपा एक ब्राह्मण सीएम और एक राजपूत और दलित को डिप्टी सीएम बना चुकी है। इस सारे राजनीतिक खेल में जाट समुदाय को जगह नहीं मिली। राजस्थान में जाटों को नजरन्दाज कर भाजपा राजनीति नहीं कर सकती। वैसे भी जाटों के साथ नाइंसाफी का मुद्दा छाया हुआ है। जिसमें महिला पहलवानों का मामला भाजपा के गले की फांस बन गया है। अधिकांश महिला पहलवान हरियाणा की जाट हैं। हरियाणा और राजस्थान अगल-बगल के राज्य हैं।
भाजपा के लिए क्षेत्रीय संतुलन बनाना भी आसान नहीं है। सीएम और दोनों डिप्टी सीएम सभी नेता जयपुर जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि तीनों को जयपुर का प्रतिनिधित्व कहना गलत है क्योंकि सीएम शर्मा मूल रूप से भरतपुर से हैं, जबकि दीया कुमारी सवाई माधोपुर और बैरवा राजसमंद से हैं। लेकिन तीनों लंबे समय से जयपुर में ही रहते आ रहे हैं।
राजस्थान भाजपा में इन तमाम समीकरणों से ऊपर है वसुंधरा राजे का कद। भाजपा आलाकमान उन्हें अलग करके भी न भूल पा रहा है और न एडजस्ट कर पा रहा है। यही वजह है कि वो वसुंधरा से डरा हुआ है। पिछले दिनों चर्चा के तौर पर राजस्थान में ये बातें सत्ता के गलियारों में चली थीं कि जो विधायक मंत्री नहीं बने, वे वसुंधरा के पास आएंगे। वसुंधरा का खेल मंत्रिमंडल गठन के बाद शुरू होगा। कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम अशोक गहलोत बार-बार संकेत देते रहे हैं कि वसुंधरा उनकी दीदी हैं और वो दीदी को हर तरह की मदद देने को तैयार हैं। गहलोत ने यह भी कहा था कि दीदी ने एक बार उन्हें भी विधायकों की पेशकश की थी। इस बीच लोकसभा चुनाव नजदीक आ चुका है। क्या वसुंधरा इतने अपमान के बाद भी लोकसभा चुनाव में चुप बैठ जाएंगी।
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