राजस्थान में बग़ावत का झंडा बुलंद करने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की ‘वापसी’ से क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नाराज़ हैं। इस पूरे सियासी घमासान में पायलट पर बीजेपी के द्वारा उनकी सरकार को गिराने के लिए रची जा रही साज़िश में शामिल होने का आरोप लगा चुके गहलोत के समर्थक विधायक भी पायलट खेमे की कांग्रेस में वापसी से नाराज बताए जाते हैं।
सूत्रों के मुताबिक़, गहलोत कांग्रेस आलाकमान द्वारा पायलट और उनके समर्थक विधायकों को पूरा समय देने, खुलकर बातचीत करने और कमेटी का गठन किए जाने से नाख़ुश हैं। इस पूरे घमासान के दौरान गहलोत का लगातार जोर इस बात पर रहा था कि पार्टी आलाकमान पायलट खेमे के बाग़ी विधायकों से किसी तरह की बात न करे। गहलोत यह तक कह चुके थे कि ऐसे लोगों को जनता के सामने एक्सपोज किया जाना चाहिए।
इसका सीधा मतलब है कि गहलोत किसी भी सूरत में पायलट की कांग्रेस में वापसी नहीं चाहते थे लेकिन पहले राहुल और प्रियंका का ख़ुद पायलट के पास पहुंचना और फिर उन्हें व उनके समर्थक विधायकों को अपने घर बुलाना, गहलोत और उनके समर्थक विधायकों के लिए झटका है।
नाराज़गी का ऐसा ही इशारा गहलोत ने मंगलवार को पायलट की वापसी के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में दिया है। मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘100 से अधिक विधायकों के एकजुट रहने से इतिहास बन चुका है और एक भी विधायक हमें छोड़कर नहीं गया। मैंने अपने विधायकों से कहा है कि जब तक मैं जिंदा रहूंगा, आपके अभिभावक के रूप में रहूंगा।’
गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत करते हुए कहा, ‘हम उन्हें कैसे भूल सकते हैं और उनका विश्वास बनाए रखेंगे।’
यह कहकर गहलोत ने साफ कर दिया कि उनकी प्राथमिकता उनके साथ मुश्किल में खड़े विधायक हैं न कि पार्टी से बग़ावत करने वाले। बस यहीं से साफ हो जाता है कि यह घमासान फिलहाल नहीं थमेगा।
गहलोत ने आगे कहा कि जो लोग आए हैं, वे किन परिस्थितियों में गए थे और उनसे क्या वादे किए गए थे। उन्होंने कहा कि उनकी मुझसे क्या नाराज़गी है, वह हम दूर करने का प्रयास करेंगे।
इसके बाद गहलोत जैसलमेर चले गए, जहां उन्होंने एक रिजॉर्ट में अपने समर्थक विधायकों को रखा है। पायलट और अन्य बाग़ी विधायकों की वापसी के बाद गहलोत खेमे के विधायकों के नाराज़ और निराश होने की ख़बरों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उन्हें मनाने का प्रयास कर रहे हैं।
एनडीटीवी के मुताबिक़, इन विधायकों ने हाल में कहा था कि पार्टी से बग़ावत करने वाले इन सियासी नुमाइंदों को उनके द्वारा किए गए विश्वासघात के लिए सजा दी जानी चाहिए और उन्हें पार्टी में वापस आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
पायलट अपने रूख़ पर कायम
सोमवार रात को राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात के बाद सचिन पायलट ने इस बात को दोहराया था कि जिन लोगों ने मेहनत करके राजस्थान में सरकार बनाई थी, उनकी हिस्सेदारी, भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए और राजस्थान सरकार को जनता से किए अपने वादों को पूरा करना चाहिए। उनका इशारा साफ था कि वे गहलोत के काम करने के तरीक़े से ख़ुश नहीं हैं।
मंगलवार को भी पायलट टीवी चैनलों पर कहते रहे कि यह उनका फर्ज था कि वे सरकार के कामकाज से जुड़े मुद्दों को लेकर ज़रूरी होने पर विरोध दर्ज कराएं और वही उन्होंने किया।
जारी रहेगा झगड़ा!
राजस्थान कांग्रेस में आने वाला समय और चुनौतियों से भरा हुआ है। क्योंकि आलाकमान की तीन सदस्यीय कमेटी के लिए पायलट और गहलोत के झगड़ों को सुलझाना बेहद मुश्किल काम होगा। क्योंकि इस प्रकरण के बाद दोनों खेमे अपनी तलवारों को वापस म्यान में नहीं रखेंगे और मुख्यमंत्री पद के लिए खिंची इन तलवारों से संगठन और सरकार दोनों को नुक़सान हो सकता है।यह कहना ग़लत नहीं होगा कि कांग्रेस में इन दोनों सियासी सूरमाओं के बीच अनवरत जारी इस युद्ध का फ़ायदा कहीं बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव में न उठा ले। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान को इस मामले में सिर्फ फ़ौरी राहत मिली है न कि लंबे समय वाला आराम।
मध्य प्रदेश से सीखा सबक
राजस्थान के संकट में कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश में हुए घटनाक्रम से सबक सीखते हुए ड्राइविंग सीट को संभाल लिया।
मध्य प्रदेश में दिग्विजय-कमलनाथ के दावों के भरोसे रहकर सरकार बचाने का ख़्वाब पाले आलाकमान को ज्योतिरादित्य सिंधिया से बात न करने का खामियाज़ा भुगतना पड़ा था। लेकिन राजस्थान में संकट शुरू होने के बाद से ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पायलट से लगातार बातचीत की और अंत में वह और राहुल ख़ुद उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने गहलोत के 102 विधायक होने के दावे के भरोसे न रहकर पार्टी आलाकमान पर जो दायित्व फ़र्ज है, वह बख़ूबी निभाया और अपनी सरकार को गिरने से बचा लिया।
अब यह कांग्रेस आलाकमान को तय करना है कि पायलट को दिल्ली बुलाया जाए या राजस्थान में रखा जाए। सुलह के फ़ॉर्मूले में क्या तय हुआ है, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि गहलोत और पायलट की सियासी अदावत इस घटनाक्रम के बाद कम नहीं होगी बल्कि और बढ़ेगी।
अपनी राय बतायें