किसानों के आंदोलन से हलकान बीजेपी को राजस्थान के निकाय चुनाव के नतीजों से राहत मिली है। विपक्ष में होते हुए भी उसने कांग्रेस से ज़्यादा सीटें हासिल की हैं। वैसे भी, बीजेपी इन दिनों जीत के रथ पर सवार है और बिहार, हैदराबाद के बाद राजस्थान में भी उसने अच्छा प्रदर्शन किया है।
दूसरी ओर, कांग्रेस का प्रदर्शन गहलोत-पायलट खेमों के बीच जारी जंग की ओर इशारा करता है। राजस्थान कांग्रेस में कुछ महीने पहले इन दोनों सियासी दिग्गजों के बीच जो घमासान छिड़ा था, उसे आलाकमान ने संभाल तो लिया लेकिन जितना सियासी नुक़सान हो सकता था वो हो चुका था। राजस्थान की आम जनता को पता लग चुका था एक ही सरकार में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते।
बढ़ेगा गहलोत-पायलट गुट का झगड़ा?
राजस्थान के निकाय चुनावों को 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले की बड़ी जंग के तौर पर देखा जा रहा था। इसलिए, बीजेपी और कांग्रेस पूरी ताक़त इन चुनावों में लगा रहे थे। लेकिन कांग्रेस में पूरी ताक़त तो गहलोत और पायलट खेमे के बीच एक-दूसरे को हराने में लगी हुई थी। चुनाव नतीजों से जहां बीजेपी को ताक़त मिली है, वहीं कांग्रेस के अंदर गहलोत-पायलट गुट का झगड़ा बढ़ सकता है।
बीजेपी को 21 जिला परिषदों में से 14 में जीत मिली है जबकि कांग्रेस को सिर्फ 5 में। पंचायत समिति के चुनाव नतीजों में से कुल 222 समितियों की 4371 सीटों में से बीजेपी ने 1911, कांग्रेस ने 1781, निर्दलीयों ने 425 और बीजेपी की सहयोगी लेकिन इन दिनों आंखें दिखा रही आरएलपी ने 57 सीटें जीती हैं।
कांग्रेस को अपने बड़े नेताओं- प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा (सीकर), स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा (अजमेर) और खेल मंत्री अशोक चांदना (हिंडोली) के गढ़ में भी हार का सामना करना पड़ा है।
पायलट का दबाव
गहलोत-पायलट का झगड़ा रोकने के लिए सोनिया गांधी ने तीन नेताओं की एक कमेटी बनाई थी। लेकिन राजस्थान में होने वाले कैबिनेट के विस्तार को लेकर दोनों नेताओं के जबरदस्त दबाव के कारण इस कमेटी में शामिल नेता भी परेशान हैं। इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी भी घोषित होनी है। पायलट चूंकि प्रदेश के अध्यक्ष रहे हैं इसलिए उन्होंने कमेटी में अपने ज़्यादा समर्थकों को शामिल करने और मंत्रिमंडल में भी उन्हें वज़नी पद दिलाने के लिए दबाव बनाया हुआ है।
सूत्रों के मुताबिक़, पायलट कैंप का कहना है कि कैबिनेट के विस्तार में देरी से पार्टी को और नुक़सान हो रहा है। इसके अलावा राज्य सरकार के बोर्ड और निगमों में भी पदों को भरा जाना है। गहलोत और पायलट के बीच सामंजस्य बनाने में कमेटी को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं।
सियासी घमासान के दौरान पायलट लगातार यही कहते थे कि जिन लोगों ने कांग्रेस को राजस्थान की सत्ता में लाने का काम किया, उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। बताया जा रहा है कि कैबिनेट के विस्तार में देरी और चुनाव नतीजों को लेकर वे दिल्ली में आलाकमान से मुलाक़ात कर सकते हैं।
पायलट इन दिनों अकेले पड़े हुए हैं क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा गहलोत के करीबी हैं। वैसे भी, कभी उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष वज़नी पदों पर काबिज रहे पायलट के पास इन दिनों न तो सरकार से जुड़ा कोई काम है और न ही संगठन से।
नतीजों के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा है कि सत्ता की ताक़त के दुरुपयोग के बाद भी कांग्रेस का प्रदर्शन ख़राब रहा। दूसरी ओर, कांग्रेस ने कहा है कि नतीजे गहलोत सरकार के विकास पर मुहर हैं।
पायलट की ओर इशारा
कुछ दिन पहले ही गहलोत और डोटासरा ने कहा था कि बीजेपी उनकी सरकार को गिराने की कोशिश कर रही है। उनका इशारा पायलट की ओर ही रहा होगा क्योंकि पिछली बार की बग़ावत पायलट के नेतृत्व में ही हुई थी। ऐसे में राजस्थान में निकाय चुनाव के नतीजों के बाद दोनों सियासी सूरमाओं के बीच जंग और तेज़ हो सकती है।
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