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फाइल फोटो

राजस्थान बीजेपी में बगावत के सुर?

राजस्थान में बीजेपी में असंतोष बढ़ने लगा है। ऐसा लग रहा है कि कुछ नेता लोकसभा चुनावों के नतीजों का इंतजार कर रहे थे। चुनावों में ग्यारह सीटों की हार ने ऐसे नेताओं के दिल के दर्द को सामने रख दिया है। राजपूत नेता देवी सिंह भाटी ने राजपूत नेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ पर तीखा हमला करते हुए चुनावों में हार के लिए सबसे बड़ा कारण बताया है। झुंझुनूं में चुनाव हारने वाले शुभकरण चौधरी का साफ तौर पर कहना है कि वोटिंग के एक दिन पहले भी अग्निवीर योजना पर बीजेपी समीक्षा करने जैसा बयान दे देती तो चुनाव बदल जाता। भजनलाल सरकार में मंत्री झाबर खर्रा ने भितरघात और उम्मीदवारों के चयन को निशाने पर लिया है। 

कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा भजनलाल से लेकर प्रधानमंत्री तक को खत पर खत लिख चुके हैं। इसमें जयपुर में सरकारी आवास में डेढ़ हजार करोड़ के घोटाले से लेकर पानी-बिजली उपलब्ध नहीं कराने की शिकायतें की गयी हैं। हैरानी की बात है कि पानी- बिजली पर कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी नेताओं में रोष नजर आ रहा है। नेता अपनी ही सरकार की लापरवाही को सरेआम हवा दे रहे हैं। इसके अलावा दबे स्वर में कुछ अन्य नेता कांग्रेस से आनन फानन में नेताओं के आयात को भी हार से जोड़ रहे हैं। जाहिर है कि मोटे तौर पर आलाकमान को भी निशाने पर लिया जा रहा है और भजनलाल सरकार के प्रति नाराजगी सामने आ रही है। तो क्या यह माना जाए कि भजनलाल शर्मा को हटाकर नया मुख्यमंत्री लाया जा सकता है? क्या वसुंधरा राजे की वापसी हो सकती है? 

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देवी सिंह भाटी वसुंधरा खेमे के माने जाते हैं। उनके निशाने पर राजेन्द्र सिंह राठौड़ हैं जिनका वसुंधरा राजे से छत्तीस का आंकड़ा है। चूरू लोकसभा सीट से जाट नेता राहुल कस्वां का टिकट राठौड़ ने कटवाया और जाट वोटर नाराज हो गया। पूरा चुनाव जाट बनाम राजपूत में बदल गया। भाटी का कहना है कि पूरा माहौल ही खराब हो गया और बीजेपी को लोकसभा चुनाव में भारी नुक़सान हुआ। शेखावाटी की तीनों सीटें- नागौर, बाड़मेर और जैसलमेर के जाट बेल्ट में कांग्रेस ने बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया। भाटी ने राठौड़ पर हमला करके वसुंधरा राजे की याद दिला दी है। दिलचस्प बात है कि राहुल कस्वां भी वसुंधरा समर्थक माने जाते हैं और टिकट कटने के बाद उन्हें कांग्रेस का टिकट दिलवाने से लेकर लोकसभा भेजने में भी राजे की राजनीति काम आई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला पिछला चुनाव करीब तीन लाख वोटों से जीते थे लेकिन इस बार चालीस हजार से ही जीत पाए। उनके सामने थे बीजेपी से कांग्रेस में आए गुर्जर नेता प्रहलाद गुंजल जो राजे समर्थक माने जाते हैं। कहा जाता है कि अगर कांग्रेस के कोटा के कुछ विधायक गुंजल का साथ देते तो ओम बिरला हार भी सकते थे।

कुल मिलाकर संघ का राजस्थान बीजेपी में अच्छा खासा दबदबा है और संघ से जुड़े नेता आवाज बुलंद करने लगे हैं। भजनलाल ने प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी के साथ मिलकर हार के कारणों की समीक्षा की। इसमें चार सौ पार के नारे के नाम पर कांग्रेस के संविधान और आरक्षण को लेकर फैलाए गये भ्रम को हार का कारण बताया गया है। ऐसा मोदी और भजनलाल दोनों को बचाने के लिए किया गया है लेकिन बीजेपी के कुछ नेताओं ने हार के असली कारणों को सामने रख कर आलाकमान के खिलाफ अपने असंतोष को सतह पर ला दिया है। झुंझुनूं से हारे शुभकरण चौधरी ने अग्निवीर योजना को हार की वजह बताया है। शेखावाटी की तीनों सीटों से लेकर नागौर और बाड़मेर में भी हार का कारण अग्निवीर योजना बनी। किसानों के ग़ुस्से को बीजेपी आलाकमान नकार रही है लेकिन मंत्री खर्रा ने इस तरफ़ इशारा किया है। संघ से जुड़े नेताओं ने खुल कर कहना शुरू कर दिया है कि उम्मीदवारों के चयन में कमियां रहीं। उम्मीदवारों का चयन आलाकमान ने किया था और स्थानीय नेताओं के आकलन को नजरअंदाज कर दिया गया था। 

आमतौर पर बीजेपी के नेता भी आपसी बातचीत में कहने लगे हैं कि राज बदल गया है लेकिन ऐसा महसूस नहीं हो रहा है। यानी भजनलाल की हनक दिखाई नहीं दे रही है। बहुत से नेताओं को भजनलाल का मुख्यमंत्री बनना पच नहीं रहा है। भजनलाल की सरकार पर नौकरशाही हावी है, इससे भी विधायकों में गुस्सा है। कुछ का कहना है कि उन्हें भजनलाल सरकार के मुख्य सचिव से मिलने का समय मांगना पड़ रहा है। उधर सीएमओ (मुख्यमंत्री दफ्तर) के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में पीएमओ (प्रधानमंत्री दफ्तर) में राजस्थान डेस्क का गठन हो चुका है और सरकार वहीं से मुख्य सचिन की मार्फत चलाई जा रही है। यह बात संघ से जुड़े नेताओं को खासतौर से रास नहीं आ रही है जो मोहन भागवत के ताजा बयान के बाद उत्साहित नजर आ रहे हैं।
राजस्थान में दलित, ओबीसी और आदिवासी वोटर कांग्रेस की तरफ झुका है। बांसवाड़ा में बीजेपी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय को बड़ी उम्मीदों के साथ टिकट दिया लेकिन वह भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के युवा नेता राजकुमार रौत से ढाई लाख वोट से हार गये। इससे बीजेपी को मेवाड़ में झटका लगा है।

इसी तरह पूर्वी राजस्थान में गुर्जर, मीणा, जाट, जाटव और मुस्लिमों का नया गठजोड़ बना है जो आलाकमान के लिए चिंता का विषय है। आलाकमान इस वोट बैंक की वापसी चाहता है। असली अग्निपरीक्षा अब विधानसभा की पांच सीटों के उपचुनाव में होनी है। लेकिन कम से कम पांच नेताओं के ताजा बयानों के बाद बीजेपी आलाकमान सकते में है। इस साल के अंत में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव भी होने हैं। 

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आलाकमान को इसमें जीत की संभावनाएं जगानी हैं तो संघ को लग रहा है कि उसने बड़ी मेहनत से दलित, आदिवासी और निचली ओबीसी को हिंदु बनाने की मुहिम शुरू की थी उस पर बीजेपी की नीतियां पानी फेर रही है। कहा जा रहा है कि विधानसभा की पांच सीटों का उपचुनाव अगर बीजेपी जीतने में कामयाब नहीं हुई तो आलाकमान की गाज गिर सकती है। क्या भजनलाल की कुर्सी खतरे में पड़ेगी? क्या प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी पर तलवार लटकेगी? इन चुनावों में नाराज जातियों को ज्यादा प्रतिनिधित्व क्या दिया जाएगा और संघ का साथ मिलेगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो हवा में तैर रहे हैं। वैसे, भजनलाल ने सौ दिन की कार्ययोजना सामने रखी है। इसकी अग्निपरीक्षा विधानसभा चुनावों में हो जाएगी। भजनलाल जानते हैं कि गठबंधन की सरकार चला रहे मोदी के सामने इस समय नीतीश-नायडू को मनाने और महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड का विधानसभा चुनाव बड़ी चुनौती है। लिहाजा भजनलाल को खुद को साबित करने का समय मिला है। इसका कितना फायदा वह उठा पाते हैं और असंतुष्ट गुट कितना माहौल बना पाता है, यह देखना भी दिलचस्प होगा।
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विजय विद्रोही
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