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भजनलाल के ख़िलाफ़ बग़ावत है किरोड़ी लाल का इस्तीफा?

राजस्थान में छह महीने की भजनलाल सरकार को तगड़ा झटका लगा है। विधानसभा का बजट सत्र शुरू होते ही वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और मीणा जाति के कद्दावर नेता डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। इसे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कार्यशैली के खिलाफ बगावत भी कहा जा रहा है। हालाँकि बाबा किरोड़ी लाल का इस्तीफा मुख्यमंत्री ने मंजूर नहीं किया है लेकिन बाबा के नजदीकी सूत्रों ने कहा है कि अब चाहे जितनी भी मान मनौव्वल की कोशिश हो मीणा मानने वाले नहीं हैं। पिछले दिनों वह दो दिन दिल्ली में थे। लेकिन पता चला है कि महामंत्री स्तर के नेता भी मुलाकात का समय नहीं दे पाए। इससे भी वह खिन्न थे। तो दिल्ली में बात बनी नहीं और जयपुर आते ही बाबा ने खुद ही एक टी वी चैनल से कह दिया कि उन्होंने सात दिन पहले ही इस्तीफा दे दिया था लिहाजा वह भजनलाल मंत्रिमंडल की बैठक में शरीक नहीं हुए। 

बड़ा सवाल उठता है कि जब सात दिन पहले इस्तीफा दे दिया गया था तो विधानसभा सत्र के चलते इसे मीडिया के सामने खुद ही क्यों लाया गया। अगर इस्तीफे के पीछे भजनलाल से नाराजगी नहीं है तो विधानसभा सत्र के बीच में इस्तीफा दे कर मुख्यमंत्री के लिए सियासी सिरदर्द क्यों पैदा किया गया। कांग्रेस वैसे ही राज्य की बीजेपी सरकार पर हमलावर हो रही है। लगातार दो बार सभी पच्चीस लोकसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार ग्यारह सीटें हारी है और कांग्रेस इसे मुद्दा बना रही है। 

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सवाल उठता है कि जब पांच सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव अगले दो तीन महीनों में होने की संभावना है तो बाबा का इस्तीफा क्या बीजेपी आलाकमान को मुश्किल में डालने वाला नहीं है? बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि डॉ. मीणा घर बैठने वाले नेताओं में से नहीं हैं। अब जब मंत्री पद का प्रोटोकॉल भी नहीं है तो धरना-प्रदर्शन करने के लिए आज़ाद हैं, जैसा कि वह अशोक गहलोत सरकार के समय किया करते थे। जयपुर में पुराने सरकारी मकान तोड़ कर बहुमंजिला मकान बनाने से जुड़े एक मामले में डेढ़ हजार करोड़ का घोटाला होने का आरोप लगाते हुए वह अपने ही मुख्यमंत्री से जांच की मांग कर चुके हैं। इसी तरह एक दो अन्य योजनाओं में गड़बड़ी की शिकायत वह प्रधानमंत्री मोदी से भी कर चुके हैं।

किरोड़ी लाल मीणा के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि वह दौसा लोकसभा सीट में उम्मीदवार के चयन से लेकर कार्यकर्ताओं की खिन्नता से दुखी थे। इसके अलावा उन्हें कम महत्व का मंत्रालय मिलने का भी मलाल था। खासतौर से यह देखते हुए उनसे जूनियर विधायकों को मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री तक बनाया गया और कुछ अन्य जूनियर विधायकों को ज़्यादा बड़े मंत्रालय दिये गये। गौरतलब है कि जब उन्हें कृषि मंत्रालय दिया गया था तब भी उन्होंने तंज कसा था कि बीस साल पहले पहली बार मंत्री बनने पर भी कृषि और बीस साल बाद भी वही कृषि मंत्रालय। इस पर तुर्रा यह कि उनके मंत्रालय से कृषि विपणन विभाग और पंचायती राज विभाग को काट दिया गया यानी वरिष्ठ मीणा नेता के सियासी पर कतरे गये। कहा जाता है कि हाल ही में उन्होंने पंचायती राज विभाग से जुड़े कुछ इंजीनियरों का तबादला कर दिया था लेकिन विभाग के सचिव स्तर के एक अधिकारी ने नया पदभार ग्रहण करने पर रोक लगा दी थी।

गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों के दौरान मीणा ने मोदी से पूर्वी राजस्थान और मीणा बहुल कुल सात सीटों पर जीत का वादा किया था और एक भी सीट हारने पर इस्तीफा देने की बात कही थी। दौसा, टोंक सवाई माधोपुर, भरतपुर और करौली-धौलपुर यानी चार सीटें बीजेपी हार गयी। कोटा, जयपुर ग्रामीण और भीलवाड़ा सीट ही बीजेपी जीत सकी। 
हैरानी की बात है कि नतीजों के बाद खुद ही मीणा ने मोदी से हुए वायदे का खुलासा भी किया और इस्तीफा देने की बात भी कही थी। पहले इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।
तब कहा गया कि दौसा से वह अपने भाई जगमोहन मीणा का टिकट चाहते थे लेकिन आला कमान नहीं माना। दौसा से बीजेपी उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा के लिए वोट मांगने वह निकले तो उनके मीणा समर्थक नहीं माने। नतीजतन सवा दो लाख के भारी अंतर से बीजेपी दौसा में हार गयी। यही हाल टोंक सवाई माधोपुर सीट का रहा जहां से कांग्रेस के हरीश मीणा चुनाव जीते जबकि यहीं से किरोड़ी लाल मीणा विधानसभा का चुनाव जीते थे।
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हैरानी की बात है कि डॉ. मीणा पर वादा नहीं निभाने पर इस्तीफा देने के लिए किसी बीजेपी नेता ने नहीं कहा। न ही आला कमान ने ही ऐसे कोई संकेत दिये। न ही मोदी ने भी किसी तरह की नाराजगी जाहिर की। लेकिन फिर भी मीणा ‘प्राण जाई पर वचन न जाई’ की चौपाई गुनगुनाते रहे। इस्तीफे की खबर सार्वजनिक करने के बाद भी ऐसा ही ट्वीट किया गया और उसके बाद मीणा शंकराचार्य के चरणों में बैठे दिखाई दिए। चेहरे पर परम संतोष के भाव थे मानो बोझ उतर गया हो। लेकिन इस्तीफे से भजनलाल सरकार का बोझ बढ़ गया है। दौसा और टोंक सवाई माधोपुर में अब विधानसभा का उपचुनाव होना है। क्या फिर डा मीणा कोई नया वायदा कर बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार में उतरेंगे या सियासत कोई नया रंग दिखाएगी। देखना दिसचस्प रहेगा। 

ऐसा इसलिए क्योंकि 2008 में मीणा बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस का साथ देने लगे थे। अशोक गहलोत सरकार में एक बार वह खुद और एक बार उनकी पत्नी गोलमा देवी मंत्री भी बनी। तब वसुंधरा राजे से नाराज होकर बीजेपी छोड़ी थी। इस समय वसुंधरा भी बीजेपी आला कमान से नाराज है। उधर लोग कह रहे हैं कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। हालांकि मेरी डॉ. मीणा के बेहद नजदीक सूत्र से बात हुई तो उनका कहना था कि फिलहाल वसुंधरा से मुलाकात का कोई इरादा नहीं है। इस इस्तीफे को एक भावुक नेता के दिल से लिए फैसले से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। क्या सूत्र की हर बात पर विश्वास किया जाना चाहिए। आने वाला समय बताएगा।

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विजय विद्रोही
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