पिछले हफ़्ते ही राजस्थान के अनूपगढ़ में एक रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वादा किया कि अगर पार्टी केंद्र में सरकार बनाती है, तो वह 'युवा विरोधी' अग्निपथ योजना को खत्म कर देगी। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी नेता हनुमान बेनीवाल ने इस मुद्दे पर कई विरोध प्रदर्शन किए हैं और इस मुद्दे को अपने चुनावी भाषणों में उठाया है। तो सवाल है कि आख़िर विपक्षी नेताओं द्वारा इस मुद्दे के उठाए जाने का लोकसभा चुनाव में क्या असर हो सकता है?
इस सवाल का जवाब सेना भर्ती की तैयारी कराने के लिए पहचाने जाने वाले राजस्थान में नागौर के कुचामन सिटी के हालात से अंदाजा लगाया जा सकता है। रिपोर्टें हैं कि सेना में भर्ती के लिए तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थान और हॉस्टल वीरान पड़े हैं। यहाँ कहा जा रहा है कि अग्निपथ योजना के बाद सेना की नौकरी के प्रति घटते आकर्षण का यह सबूत है।
कहा जाता है कि कुचामन 2009 के आसपास सेना के उम्मीदवारों के लिए एक कोचिंग केंद्र के रूप में प्रसिद्ध होना शुरू हो गया था। जल्द ही यहाँ पूरे राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा और पश्चिमी यूपी से भी छात्र आने लगे। जब इसका आकर्षण अपने चरम पर था तो शहर के संस्थानों में 2 लाख से अधिक छात्र नामांकित थे, जिनमें से कई छात्रावास में रहते थे।
शहर की सबसे पुरानी कुचामन डिफेंस अकादमी के संस्थापक विनोद चौधरी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि एक समय में 'हमारे छात्रावासों में 1,500 छात्र रहते थे। हम छात्रों के बोर्ड अंकों के आधार पर प्रवेश देते थे।' लेकिन वह कहते हैं कि अब छात्र 150 भी नहीं बचे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार चौधरी इसके लिए जून 2022 में शुरू की गई अग्निपथ योजना के साथ सेना भर्ती प्रक्रिया में बदलाव को जिम्मेदार मानते हैं।
भगत सिंह हॉस्टल के मालिक छोटू राम गढ़वाल का कहना है कि इतना सारा बुनियादी ढांचा तैयार करने के बाद भी उनमें से कई लोग ईएमआई चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सैनिक छात्रावास के मालिक मनोज कुमावत का कहना है कि वह अब हॉस्टलर्स के लिए विज्ञापन कर रहे हैं; एक बार उनके पास एडवांस बुकिंग थी।
अग्निपथ योजना के तहत शामिल हुए युवाओं को अब छह महीने के प्रशिक्षण के बाद चार साल की अवधि के लिए सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाता है। कार्यकाल के अंत में उनमें से 25% तक योग्यता और संगठनात्मक आवश्यकताओं के अधीन बने रहते हैं, जबकि अन्य को लगभग 11.71 लाख रुपये की एकमुश्त राशि और लाभ देकर चलता कर दिया जाता है।
इस योजना के शुरू होने के तुरंत बाद उन राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए जो बड़ी संख्या में लोगों को सेना में भेजते थे। जहां विधानसभा चुनावों में भाजपा को असंतोष का सामना करना पड़ा, वहीं बदली हुई भर्ती प्रक्रिया का असर इन हिस्सों में देखने को मिल रहा है।
विपक्षी दल अपनी रैलियों में इस मुद्दे को उछालते रहे हैं। नागौर से चुनाव लड़ रहे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल ने इस मुद्दे पर कई विरोध-प्रदर्शन आयोजित किए हैं और इसे अपने चुनावी भाषणों में उठाया है। द इंडियन एक्सप्रेस से बेनीवाल ने अग्निपथ को 'देश के मार्शल समुदायों की कमर तोड़ने' वाला कदम बताया। उन्होंने कहा, 'राजस्थान, हरियाणा, यूपी और पंजाब के किसानों के बच्चे सबसे अधिक संख्या में सेना में शामिल होते हैं। इसलिए, अग्निपथ को हमारे किसानों और सैनिकों को नीचा दिखाने के लिए पेश किया गया था।'
आमतौर पर अपनी सरकार की योजनाओं के बारे में ढोल पिटने के लिए पहचानी जाने वाली बीजेपी अग्निपथ पर बिल्कुल शांत है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बीकानेर और झुंझुनू में अपनी सार्वजनिक बैठकों में इसका जिक्र नहीं किया। जयपुर में एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, 'हम किसी भी अग्निवीर के साथ अन्याय नहीं करेंगे। कोई भी नीति आवश्यकता के अनुसार बदली जाएगी। इसलिए, यदि आवश्यक हो, तो हम अग्निपथ नीति में संशोधन कर सकते हैं।'
नावा से बीजेपी विधायक विजय सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अग्निवीर के प्रतिकूल प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। उन्होंने कहा, 'हां, कुचामन की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है, लेकिन भाजपा की कई अन्य नीतियां हैं जिनसे जनता को लाभ हुआ है। साथ ही, यह एक योजना निर्णायक कारक नहीं होगी, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर लोग अभी भी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।'
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