तीसरी बार राजस्थान के सीएम बनने जा रहे अशोक गहलोत को काफ़ी तेज़तर्रार और कुशल राजनेता माना जाता है। हाल के गुजरात और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने यह बात साबित कर दी थी। उन्होंने राजस्थान में भी सचिन पायलट के साथ मिल कर राजनैतिक कौशल का परिचय दिया।
गहलोत के चुनाव प्रबंधन की विरोधी भी तारीफ़ करते हैं। वह फ़िलहाल पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और राहुल गाँधी के क़रीबी सलाहकार के तौर जाने जाते हैं। लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले अशोक गहलोत 1998 से 2003 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। अशोक गहलोत को 13 दिसम्बर 2008 को दूसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। 8 दिसम्बर 2013 के चुनावी नतीजों के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
3 मई 1951 को जोधपुर में जन्मे गहलोत ने विज्ञान और क़ानून में स्नातक डिग्री ली तथा अर्थशास्त्र विषय लेकर स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है।
राजनीतिक करियर
गहलोत साल 1980 में पहली बार जोधपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए। उन्होंने जोधपुर संसदीय क्षेत्र का 1984-1989, 1991-96, 1996-98 तथा 1998 से 1999 तक प्रतिनिधित्व किया। गहलोत तीन बार केन्द्रीय मंत्री बने। उन्होंने इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी तथा पी.वी. नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में केन्द्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान वह पर्यटन व नागरिक उड्डयन और खेल मंत्रालय का कार्यभार संभाल चुके हैं। हालाँकि, इस बीच जून, 1989 से नवम्बर, 1989 तक छोटी अवधि के लिए गहलोत राजस्थान सरकार में गृह तथा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के मंत्री भी रहे थे। सरदारपुरा (जोधपुर) विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित होने के बाद गहलोत फ़रवरी 1999 में राजस्थान विधानसभा के सदस्य बने। गहलोत फिर इसी विधानसभा क्षेत्र से 2003 में और 2008 में भी निर्वाचित हुए।
प्रबंधन में पारंगत
गहलोत पर लगे थे भ्रष्टाचार के आरोप
राजस्थान की राजनीति में स्वच्छ छवि के नेता माने जाते रहे अशोक गहलोत पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उनके अपने बेटे के हित साधने के चक्कर में निजी निवेशकर्ताओं को फ़ायदा पहुँचाने के आरोप लगे थे। वसुंधरा राजे ने आरोप लगाया था कि जयपुर की ओम मेटल्स को गहलोत सरकार ने 457 करोड़ रुपए के ठेके प्रदेश में कालीसिंध नदी पर बाँध बनाने का दिया। आरोप था कि इस ओम मेटल्स में गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लीगल कंसलटेंट थे और कम्पनी को यह ठेका केवल गहलोत के प्रभाव के कारण मिला था और यह ठेका देने में नियमों को दरकिनार किया गया। अजमेर संभाग में करीब दो सौ करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में गहलोत सरकार पर लगाए गए थे।
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