केंद्रीय स्तर पर G-23 गुट और पंजाब में पार्टी नेताओं के बीच चल रहे घमासान से जूझ रही कांग्रेस के लिए राजस्थान में फिर से मुसीबत खड़ी हो सकती है। हुआ यूं है कि बाड़मेर जिले की गुड़ामलानी सीट से विधायक हेमाराम चौधरी ने मंगलवार को स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है। चौधरी को पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का करीबी माना जाता है।
चौधरी ने कहा है कि इस्तीफ़ा स्वीकार होने के बाद ही वह इसका कारण बताएंगे। माना जा रहा है कि अब राजस्थान कांग्रेस में पिछले साल गहलोत-पायलट के गुटों के बीच चला जोरदार सियासी संघर्ष फिर से जिंदा हो सकता है।
पायलट का दिया था साथ
हेमाराम चौधरी छठी बार विधायक बने हैं और राज्य सरकार की आलोचना करते रहे हैं। चौधरी उन 19 विधायकों में शामिल थे, जिन्होंने पिछले साल सचिन पायलट का खुलकर साथ दिया था।
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा है कि हेमाराम चौधरी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और उनकी चौधरी से बात हुई है। डोटासरा ने हालात को संभालते हुए कहा कि यह घर का मामला है और इसे सुलझा लिया जाएगा।
चौधरी ने बीते मार्च में राजस्थान की विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र की ख़राब सड़कों का मुद्दा उठाया था और पूछा था कि कांग्रेस और बीजेपी में क्या अंतर है। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके इलाक़े में सड़क बनने में 2 से 2.5 करोड़ का घपला हुआ है और इस मामले की सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए।
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निकाय चुनाव पर पड़ा था असर
गहलोत-पायलट के संघर्ष के बीच जब बीते साल दिसंबर में निकाय चुनाव हुए थे तो उसमें कांग्रेस का प्रदर्शन सत्ता में होने के बाद भी ख़राब रहा था और बीजेपी को कांग्रेस से ज़्यादा सीटें मिली थीं। इसका सीधा कारण गहलोत-पायलट खेमों के बीच जारी जंग को माना गया था।
राजस्थान कांग्रेस में बीते साल हुए घमासान को तो आलाकमान ने जैसे-तैसे संभाल लिया था लेकिन उसके बाद भी गहलोत और पायलट के बीच रिश्ते सामान्य हुए हों, ऐसा कभी नहीं लगा। कोरोना काल में भी दोनों नेताओं के बीच जो तालमेल दिखना चाहिए था, वह नदारद रहा।
कैबिनेट के विस्तार का पेच
गहलोत-पायलट का झगड़ा रोकने के लिए सोनिया गांधी ने तीन नेताओं की एक कमेटी बनाई थी। लेकिन राजस्थान में लंबे वक़्त से रोके गए कैबिनेट के विस्तार को लेकर पेच फंसा हुआ है। गहलोत और पायलट के बीच सामंजस्य बनाने में इस कमेटी को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं।
पायलट और गहलोत ने अपने ज़्यादा से ज़्यादा समर्थकों को कैबिनेट में शामिल करने और उन्हें वज़नी पद दिलाने के लिए दबाव बनाया हुआ है। इसके अलावा राज्य सरकार के बोर्ड और निगमों में भी खाली पदों को भरा जाना है। सूत्रों के मुताबिक़, पायलट कैंप का कहना है कि कैबिनेट के विस्तार में देरी से पार्टी को और नुक़सान हो रहा है। आने वाले दिनों में इसे लेकर पार्टी में घमासान तेज़ हो सकता है।
आगे आए आलाकमान
राजस्थान में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और यह उन गिने-चुने राज्यों में है, जहां कांग्रेस सत्ता में है। कांग्रेस की हालत बेहद ख़राब है और हाल ही में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। केंद्रीय स्तर पर मचे घमासान के अलावा कई राज्यों में कांग्रेस इकाइयों में नेताओं के बीच जबरदस्त गुटबाज़ी है। ऐसे में आलाकमान को राजस्थान में गहलोत-पायलट गुट का झगड़ा फिर न बढ़ जाए, उससे पहले ही कमान संभालनी होगी।
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