राजस्थान में
राजनीतिक संकट के बाद कई दिनों से विधानसभा सत्र बुलाने के लिए चली आ रही खींचतान के बीच अब राजस्थान के गवर्नर ने 14 अगस्त से विधानसभा सत्र बुलाने का आदेश दे दिया है। गहलोत सरकार 31 जुलाई से ही सत्र को बुलाना चाह रहे थे और इसीलिए एक के बाद एक तीन बार वह प्रस्ताव भेज चुके थे। यह खींचतान गहलोत सरकार और राज्यपाल कलराज मिश्र के बीच बनी रही। गहलोत सरकार की ओर से विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भेजे गए
तीसरे प्रस्ताव को भी राज्यपाल ने आज ही खारिज कर दिया था। गहलोत सरकार ने मंगलवार को राज्यपाल को तीसरी बार
प्रस्ताव भेजा था और कहा था कि वह हर हाल में 31 जुलाई को विधानसभा का सत्र बुलाना चाहती है।
राजभवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजस्थान विधानसभा के पाँचवें सत्र को मंत्रिमंडल द्वारा भेजे गए 14 अगस्त से शुरू करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। इसमें यह भी कहा गया है कि राज्यपाल मिश्र ने राजस्थान विधानसभा के सत्र के दौरान कोविड-19 से बचाव के लिए आवश्यक प्रबंध किए जाने के निर्देश मौखिक रूप से दिए हैं।
राजनीतिक संकट से निकलने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जल्द से जल्द विधानसभा सत्र बुलाना चाहते थे ताकि वह बहुमत साबित कर सकें। उनको लगता है कि सचिन पायलट और उनके गुट के 18 विधायकों के बाग़ी हो जाने के बाद भी उनके पास बहुमत है। इसीलिए वह विधानसभा में बहुमत साबित करना चाहते हैं।
अब ज़ाहिर है फ़्लोर टेस्ट में मुख्यमंत्री पास होते हैं तो छह माह के लिए उनकी सरकार सुरक्षित हो जाएगी। इसीलिए वह विधानसभा सत्र 31 जुलाई से बुलाना चाह रहे थे।
यदि अदालत के आदेश की यथास्थिति के दौरान विश्वास मत आयोजित किया जाता है, तो बाग़ी विधायकों को अयोग्य ठहराया जा सकता है यदि वे अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ मतदान करते हैं। लेकिन जब तक विधानसभा सत्र नहीं बुलाया जाएगा तब तक यह संभव नहीं है।
राज्यपाल ने 14 अगस्त से सत्र बुलाने की जो अनुमति दी है उससे लगता है कि राज्यपाल ने जिन बातों को लेकर आपत्ति की थी उसे गहलोत सरकार ने मान लिया है। राज्यपाल ने 27 जुलाई को जारी बयान में कहा था कि सैद्धांतिक रूप से वह विधानसभा सत्र बुलाए जाने के विरोध में नहीं हैं। उन्होंने कोरोना संकट का ज़िक्र करते हुए तीन शर्तें रखी थीं। इन शर्तों के अनुसार विधानसभा सत्र तीन हफ़्ते तक नहीं बुलाया जा सकता था।
27 जुलाई को राज्यपाल ने ये तीन शर्तें रखी थीं-
- कि विधायकों को कोरोना संकट के बीच इतने शॉर्ट नोटिस पर बुलाना मुश्किल होगा तो क्या उन्हें नोटिस के लिए 21 दिन का समय नहीं दिया जाना चाहिए?
- फ़िजिकल डिस्टेंसिंग का कैसे पालन किया जाएगा?
- कि क्या मुख्यमंत्री विश्वास मत को लाना चाहते हैं, क्योंकि प्रस्ताव में इसका ज़िक्र नहीं है और लोगों के बीच मुख्यमंत्री बयान दे रहे हैं कि वह विश्वास मत लाना चाहते हैं?
अब जो 14 अगस्त से सत्र बुलाने की बात कही गई है और कोरना वायरस को देखते हुए बचाव के जो मौखिक आदेश दिए गए हैं उससे तो यही लगता है कि ये तीनों शर्तें क़रीब-क़रीब पूरी हो गई हैं। हालाँकि अब देखने वाली बात यह होगी कि 102 विधायकों का समर्थन होने का दावा करते रहे अशोक गहलोत 14 अगस्त को विधानसभा में 102 विधायकों का समर्थन हासिल कर पाते हैं या नहीं।
अपनी राय बतायें